‘‘विकास दुबे एनकाउंटर’’ (मुठभेड़) पूरे देश में ही नहीं, बल्कि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी चर्चित है। यह घटना न केवल स्वयं ‘‘सवालों में सवाल’’ लिये हुये है, बल्कि उपरोक्त ‘‘शीर्षक’’ प्रश्न भी पुनः उत्पन्न करता है। लगभग हर ‘एनकाउंटर’ के बाद उस पर हमेशा प्रश्नचिन्ह अवश्य लगते रहे हैं। उक्त ‘प्रश्नचिन्ह’ क
ऐसा समय होता हैं जब हमारा दिमाग किसी चीज से कसकर चिपक जाता है, और यह शायद ही कभी मददगार होता है:मैं सही हूं, दूसरा व्यक्ति गलत है। वह व्यक्ति अपना जीवन गलत तरीके से जी रहा है, उसे बदलना चाहिए।मेरी प्राथमिकता सबसे अच्छा तरीका है, अन्य गलत हैं। यही वह चीज है जो मैं चाहता हूं, मैं कुछ और नहीं चाहता।मुझ