भारतीय संस्कृति के अनुसार दिवाली साल का प्रमुख त्यौहार और बड़ा पर्व होता है। दिवाली का त्यौहार जीवन में ख़ुशी, उल्लास, नयी रौशनी लेकर आता है। इस बार दिवाली 27 अक्टूबर को आ रही है। यह त्यौहार क्यों खास है इसका पता बाज़ारो की रौनक से पता लगाया जा सकता है। चारो तरफ सजावट, बाजारों में धूम, घर पर लगी रौशनी और हर घर बनती मिठाइयां।
भगवान् श्री राम वनवास से लौटकर अयोध्या आना-
सबसे चर्चित कथा- प्रभु श्री राम अपने 14 साल के वनवास के बाद अयोध्या वापस लौटने पर नगर वासी ने उनके स्वागत के लिए दिए लगाए थे। तभी से दिवाली मनाई जाती है। रामायण के मुताबिक, 14 वर्ष के वनवास में रावण के वध के बाद जब प्रभु श्री राम, अनुज लक्षमण, पत्नी सीता के साथ अयोध्या वापस लोटे तो, नगरवासी ने उनके स्वागत में पुरे नगर में दिए लगाए।
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उस दिन अमावस्या की रात थी, चारो और अंधकार था। दीपक की रौशनी से अमावस्या की काली रात भी रौशनी से जगमगा गयी। मान्यता अनुसार तभी से दिवाली के दिन दिए जलाकर और खुशिया मनाये जाने की शुरुवात हुई।
भगवान् श्री कृष्ण ने किया था नरकासुर का वध-
एक पौराणिक कथा यह भी है की दिवाली के ठीक एक दिन पहले भगवान् कृष्ण ने राक्षस नरकासुर का वध किया था। नरकासुर का वध कर के नगरवासियो को उसके आतंक से मुक्त किया था। नरकासुर के वध होने की ख़ुशी में अगले दिन सभी ने ख़ुशी के रूप में दिवाली का पर्व मनाया।
माता लक्ष्मी के साथ गणेश जी की पूजन-
दिवाली के साथ जुडी यह भी मान्यता है की, एक राजा ने लकड़हारे से खुश होकर उसे चन्दन का पूरा जंगल उपहार में दे दिया। लेकिन वह लकड़हारा उस चन्दन की कीमत को नहीं समझ सका। वह हर दिन चन्दन की लकड़ियां काट कर लाता और उसपर खाना बनाता। एक दिन यह बात राजा के पास पहुंच गयी तब राजा को समझ आया की धन का उपयोग केवल बुद्धिमान व्यक्ति ही कर सकता है। इसलिए माना जाता है की दिवाली के दिन माता लक्ष्मी के साथ भगवान् गणेश जी की भी पूजा की जाती है।
राजा और साधु की कथा-
चौथी कथा के मान्यता के अनुसार, एक बार एक साधु को राजसुख भोगने की इच्छा हुई। उस साधु ने माँ लक्ष्मी को प्रशन्न करने के लिए कड़ी तपस्या करने लगा। उसकी तपस्या से प्रशन्न होकर माता लक्ष्मी ने साधु को मनवांछित फल प्राप्ति का वरदान दे दिया। साधु वरदान पाकर अहंकारी हो गया और वह उसी के नगर के राजा के महल में जाकर राजा के सिहासन पर चढ़ कर राजा के मुकुट की निचे गिरा दिया। मुकुट के निचे गिरते है उसमे से सांप निकल कर चला गया, इस तरह राजा की जान बच गयी। राजा साधु से खुश होकर कुछ मांगने को कहा तो साधु ने राजा सहित सभी को महल से बहार जाने को कहा। राजा के वचन के मुताबिक सब लोग राजा के साथ राजमहल से बहार निकल गए।
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राजा के बहार जाते ही महल खंडर हो गया और फिर से राजा की जान बच गयी। राजा ने फिर से सबकी जान बचाने के लिए साधु की प्रशंशा की। लेकिन साधु अपनी गलती समझ गया और गणेश जी को प्रशन्न करके फिर से वह साधु बन गया। ऐसा माना जाता है की तभी से दिवाली के दिन माता लक्ष्मी जी के साथ भगवान् गणेश जी और माता सरस्वती जी की पूजा की शुरुवात हुई।