जीवन की डोर बंधी,
रिश्तों के भंवर में फंसी।
आशा और निराशा बीच,
संबंधों की डोर में फंसी।।
विश्वास और आस्था बीच,
एक दूजे में पनपती रहे।
हम सब साथ साथ रहे,
विचारों का सम्मान भी रहे।।
विचारों का दर्पण भी हो,
शब्दों का आदान प्रदान भी।
मन में मंथन करते रहे हम,
नए शब्दों का संगम भी।।
खुद से खुद में जुड़ते चले,
प्रतिबिंब सा मन पलता रहे।
अक्स खुद का दर्पण में हम,
देख गर्व सा ऐसे पनपता रहे।।
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