गहरे जख्म हर कोई एक नया जख्म दे जाता है। कभी वो अपने होते है। तो कभी अपने दोस्त जो दिल के करीब होते है। कभी कोई अनजाने रास्ते में अनजाने में। तो कभी कोई इन जख्म को किस -किस को बया करे। जिनको बया किया वो और ज्यादा जख्म दे गए। बया भी उन को कर बैठे जो इंसानियत जानते ना थे। वो उन गहरे जख्म को और गहरे करते रहे। और हम एक मुस्कराहट लिए बैठे रहे। कुछ बोला भी पर वो हमे समझाने लगे। की ये कुछ नहीं बस दो पल का तुमको हसाने के लिए एक मज़ाक था और कुछ नहीं। मेरी बातों को दिल पर क्यो लेते हो हम तो बस ऐसे ही मजाक कर लेते हैं। तब पता चला कि जिसे हमने अपने गहरे जख्म दिल के बताये वो तो और भी गहरे कर देते हैं। मजाक -मजाक में सच ही कहाँ है किसी ने अकेले ही रो लेना पर अपने दिल के भाव किसी को नहीं बोलना नहीं तो एक मजाक बन कर रह जाऔगे। ये दिल के गहरे जख्म है हर कोई नहीं समझ पाया है।