परछाई माँ मैं तेरी ही परछाई हूँ, तुमने ही तो मेरे को हर पल सहारा दिया। तेरे बिन तो मैं कुछ नहीं, जब भी अकेले पड़ी, तब तब तुमने ही साथ दिया। तेरी परछाई हूँ तभी तो, इतनी हिम्मत और हौसला बुलंद है, नही तो कब की टूट चुकी होती। दुःख में शामिल हमेशा तुम ही रही मेरे, जब भी किसी को ढुंडा तेरे अलावा कोई नहीं दिखा मेरे को। तुमने मेरे को सीने से लगा के हिम्मत दी, माँ मै तो तेरी ही परछाई हूँ। तेरे अलावा कौन है मेरा, जब मैने ठोकर खाई, सब रिश्ते नाते तोड़ गये, बस एक तुमने ही हर राह पर साथ दिया, माँ मै तेरी ही परछाई हूँ। लेखक -अजूं सिंह