जो बीत गया सो बीत गया ,
उस पर क्यों शोक मनाते हो ,
जो छूट गये सो छूट गये,
उस पर क्यो अश्रु बहाते हो ,
जो है अभी उस पर क्यों नहीं चिंतन करते हो ,
जो बीत गया सो बीत गया
उस पर क्यों शोक मनाते हो ।।
जब तारा कोई टूटता है,
क्या गगन शोक मनाता है ,
जब धूल गर्दिश बन हवा में उड़ती ,
क्या धरा शोक मनाती है ,
जब बारिश बूंद बन धरा पर गिरती ,
क्या बादल शोक मनाता है ,
जो बीत गया सो बीत गया ,
उस पर क्यों शोक मनाते हो ।।
जब पतझड़ बन पत्ते धरा पर गिरते ,
क्या वृक्ष शोक मनाता है,
जब किरण सूर्य से निकल चहुँ दिशा में फैलती ,
क्या सूर्य शोक मनाता है ,
जब फूल पथ पर गिरकर चरण की धूल बनते ,
क्या फूल शोक मनाता है ,
जो बीत गया सो बीत गया ,
उस पर क्यों शोक मनाते हो ।।
जब वीर जवान देश पर शहीद होता,
क्या वीरता उसकी शोक मनाती है ,
जब फल टूट धरा पर गिरती ,
क्या शाखा शोक मनाती है।
जब लहरे तट छोड़ समुद्र में समाती
क्या तट शोक मनाता है।
जो बीत गया सो बीत गया
उस पर क्यों शोक मनाते हो।।
जब बाण तरकस से छूटती ,
क्या तरकश शोक मनाता है ,
जब हिम - खण्ड हिमालय से टूटता
क्या हिमालय शोक मनाता है ,
जब राही पथ से छूटते ,
क्या पथ शोक मनाता है ,
जो बीत गया सो बीत गया
उस पर क्यों शोक मनाते हो ।।
जब रात्रि अपनी तिमिरता फैलाती ,
क्या दिवा शोक मनाती है ,
जब आत्मा काया से छूटती ,
क्या मृत्यु शोक मनाती है ,
जो बीत गया सो बीत गया ,
उस पर क्यों शोक मनाते हो ।।
विनोद पाण्डेय " तरु "