🌹 *राष्ट्र चेतना* 🌹
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🌹 *भाषा व शब्द* 🌹
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*भाषा व शब्द किसी लेखनी की आत्मा होती है । लेखिनी भाषा और शब्द की शरीर होती है । भाषा व शब्द ही लेखिनी के उत्कृष्टता को प्रदर्शित करती हैं । भाषा व शब्द का उचित प्रयोग व समायोजन ही लेखिनी को सशक्त और भावपूर्ण बनाती हैं । किसी भी लेखिनी की उत्कृष्टता इस बात पर निर्भर करती है कि उस लेखिनी की भाषा व शब्द की मर्यादा कितनी सशक्त रखी गई है अर्थात शब्द व भाषा ही लेखिनी के आंख और कान दोनों होते हैं ।। इसलिए शब्द व भाषा का प्रयोग बहुत ही सोच समझकर प्रभावपूर्ण करना ही लेखिनी का प्रथम व अनिवार्य शर्त व रचनाकार का दायित्व दोनों होते हैं* ।। *भाषा व शब्द का मर्यादा केवल लेखिनी पर ही नहीं निर्भर करती बल्कि इसका प्रभाव हमारे व्यवहारिक जीवन पर भी व्यापक स्तर पर पड़ता है* ।। *भाषा और शब्द का प्रयोग ही हमारे मनोदशा की परिछाई होती है । भाषा व शब्द ही हमारे व्यवहार , सोच , समझ ,योग्य और अयोग्य के परिचय होती है ।। भाषा व शब्द का प्रयोग ही एक पुरुष को महान और अधम बनाता है इसलिए भाषा व शब्द का एक जादुई प्रभाव पूरे व्यक्तित्व पर होता है* ।। *इतिहास में जितने भी महापुरुष हुए हैं उनके भाषा और शब्द बहुत ही मर्यादित , सम्मानित ओजपूर्ण , प्रभावपूर्ण जनमानस के जज्बे को हिला देने वाली थी* ।। तभी तो 19वीं शताब्दी में *जब संचार के इतने साधन नहीं थे। आवागमन इतने साधन नहीं थे ।।महापुरुषों ने आजादी प्राप्त करने के लिए एक बड़ा जन आंदोलन खड़ा कर दिया उसका एक ही माध्यम था जनसभाएं । इन जनसभाओं मे उस समय के अपने नेता भाषण देते थे और भाषा और शब्दों का ऐसा प्रयोग करते थे कि जनमानस पर एक अमिट प्रभाव छोड़ते थे और देखते ही देखते आंदोलन का जल सैलाब उमड़ पड़ता था* ।। *ब्रिटिश सरकार की जड़े हिल गए । अंततः भारत को खाली करना पड़ा ।। आजाद करना पड़ा* । *यहां भी भाषा व शब्द का प्रयोग का एक व्यवहारिक समझ के लिए उदाहरण दिया गया* ।
अब समझते हैं *भाषा और शब्द के प्रयोग का महत्व आज से नहीं बल्कि आदि अनंत काल से चला आ रहा है* । *भाषा और शब्द का प्रभाव हमारे जन मानस पर या मन के अंतःपटल पर ही नहीं पड़ता बल्कि हमारे मन ,वचन, शरीर व कर्म सब पर प्रभाव डालता है* ।।
बात *द्वापरयुग* की है । *भगवान श्री कृष्ण के बुआ के पुत्र शिशुपाल था ।। शिशुपाल बहुत ही अशिष्ट, मर्यादाहीन व असभ्यता व अमर्यादित का व्यक्ति था । वह उस समय का सबसे अधिक असभ्य व्यक्ति था । उसने जैसे प्रतिज्ञा कर रखी थी कि जहां-जहां भगवान श्री कृष्णा जाएंगे और हमारी मुलाकात होगी वहां वहां मैं उनकी बेजती करूंगा, अपमानित करूंगा और शिशुपाल जहां-जहां मौका पता था भरपूर भगवान श्री कृष्ण को अपमानित करता था और हमारे प्रभु मुस्कुरा करके सुनते थे* ।। *यह सब अनवरत चलता रहा । एक दिन शिशुपाल की मां अर्थात भगवान श्री कृष्ण की बुआ बड़ी चिंतित हुई , उन्होंने सोचा कि कब तक चलेगा अनीति ? कब तक अनीति शिशुपाल का साथ देगा , वह भी भगवान श्री कृष्ण के सामने जो जगत कर्ता है ,पालन हार है* ।। *उसने शिशुपाल को कई बार समझाने का प्रयास किया लेकिन उसके ऊपर अपनी मां के शब्दों का कोई प्रभाव नहीं हुआ।। उसने कहा मैं ग्वाल वाले अर्थात श्री कृष्ण को भगवान नहीं मानता । वह एक साधारण सा गाय चराने वाला ग्वाला है* ।। *उनकी मां समझाया वह कुछ भी हो साधारण हो या असाधारण लेकिन सम्मान हर व्यक्ति का होना चाहिए ।। चाहे वह सामान्य मानव हो या देव पुरुष । सम्मान तो सम्मान होती है । लेकिन शिशुपाल को यह सब बातें समझ में नहीं आयी । अंत में शिशुपाल की मां की एक दिन व्यथा इतनी बढ़ गई कि उनसे रहा नहीं गया और वह भगवान श्री कृष्ण के पास गयी और उन्होंने अपनी सारी मन की व्यथा बतायी व बोली हे मधुसूदन मैं मानती हूं कि मेरा पुत्र असभ्य है* । *उसने असभ्यता की सारी सीमाएं लाघ डाली है । उसने हमेशा आपको अपमानित ही करता है । फिर भी मेरा पुत्र है ।उसकी रक्षा कीजिएगा । अपना सुदर्शन मत चलाइएगा। भगवान ने अपनी बुआ को समझाया आप तो जानती हैं मेरा आगमन धर्म "की स्थापना के लिए हुआ है* । *अनीति और अधर्म का साथ देना भी एक तरह अधर्म को पालना और बढ़ावा देना ही होता है* ।। *फिर भी आप कहती हैं तो मैं आपको वचन देता हूं शिशुपाल के 100 गलतियां मै माफ करूंगा ,चाहे वो कितना भी अपमान करें , कितने ही अशुभ ,असभ्य शब्द व भाषा का प्रयोग करें।। मैं उसको सौ गलतियां तक सुरक्षा प्रदान करूंगा* ।। लेकिन जैसे ही 101 गलती होगा उसका अंत निश्चित है ।खैर विधि का विधान था । शिशुपाल अपमान पर अपमान करता गया ।। जैसे ही सौ की गलतियां उसने पूरा की ।अंत में सुदर्शन द्वारा उसका वध किया गया ।। तो यहां भी शब्द व भाषा का ही महत्व था शिशुपाल कोई अस्त्र लेकर कृष्णा पर वार नहीं कर रहा था। *केवल अशिष्ट , अशुभ और असभ्य शब्द और भाषा का ही प्रयोग कर रहा था अंततः वह मृत्यु को प्राप्त हुआ*
*इसलिए शब्द व भाषा हमेशा हमारे मर्यादित रखें* ।।
और दूसरी बात *त्रेता युग की कहते* हैं भगवान राम की। *राम और रामायण के कालखण्ड का संबंध है । रामायण पूरे राम के चरित्र का दीपदान* है ।। रामायण में राम और रावण का युद्ध का जिक्र आता है ।। *अगर आप पूरे रामायण के कालखण्ड में देखे तो रावण भी शब्द व भाषा की मर्यादा भूल गया था । पूरे कालखंड में रावण ने राम को वनवासी , बन में टहलने वाला कह कर पुकारता रहा । हालांकि इस पर मंदोदरी उनकी पत्नी कई बार विरोध किया ।* *उन्होंने कहा कि वह भगवान है । श्री राम है । उनको आप इस तरह का अपमानित न किया करें । ""लेकिन जब नाश मनुष्य पर छाता है* *सबसे पहले बुद्धि मर जाता है""* यह कहावत रावण के ऊपर चरितार्थ होती है ।। *रावण कहता मैं नहीं मानता हूं भगवान है वह। वह तो वन में भटकने वाला एक बन का वासी है ।इस तरह के अशुभ और असभ्य शब्द और भाषा का प्रयोग करता रहा और तब तक करता रहा जब तक राम और रावण का अंतिम युद्ध नहीं हो गया* ।। *जब रावण का राम का अंतिम युद्ध हुआ तो रावण का वध हुआ ।। यहां भी अगर देखा जाए तो शब्द व भाषा की मर्यादा की महत्व पाए जाते हैं* ।
*इसलिए शब्द व भाषा के मर्यादा हमेशा बनाए रखें* ।।
अब आते हैं इस आधुनिक युग में जो इस समय का कालखंड चल रहा है ।।हमारे पीढ़ी भी काफी असभ्य हो चुकी है । *किसी भी मां-बाप को अगर अपने संतान के वास्तविकता जानना है तो संतान को गुप्त तरीके से 10 मित्रों के बीच में देखें , फिर अपने संतान के व्यवहार की जांच पर करें* । *आपको पता चलेगा कि जो संतान घर में इतना शांत ,सभ्य और शिषटाचार से आता है वही संतान 10 मित्रों के बीच में किस तरह के असभ्य और *अशोभनीय आचरण और अश्लील भाषाओं का प्रयोग करता है* ।। *आपके पैरों की तले जमीन खिसक जाएगी ।।जिसका अनुकरण हम खुद करते हैं अर्थात कथनी -करनी मे अंतर नहीं हो सकती** । *अगर सामने वाले से आप सम्मान चाहते हैं तो सबसे पहले शब्द व भाषा की मर्यादा को मर्यादित रखें अर्थात व्यक्ति चाहे किसी भी उम्र का हो , छोटा ,बड़ा सम्मान का हकदार तभी होगा जब तक उसकी शब्द व भाषा मर्यादित है अन्यथा नहीं* ।। *आज की पीढ़ी की सहनशीलता बिल्कुल बहुत कमजोर हो चुकी है । छोटी-छोटी बातों पर असहज हो जाते है। मारने और मिटाने पर तैयार हो जाते है* , *चाहे पड़ोस का हो या चाहे अपने घर का हो , अपने भाई हो या अपनी बहन हो* ।। *इसका प्रमाण आए दि *न समाचार पत्रों में मिलता है* ।। *कोई किसी का सिर काट ले रहा* है ।। *पुत्र अपनी मां का सर काट ले रहा है धन के चक्कर में , जमीन के चक्कर में* । *इतनी लालच की साया बढ़ चुकी हैं ।। कुल मिलाकर यहां भी शब्दों के मर्यादा और भाषा के मर्यादा को नियमित रखना ही पड़ेगा* ।। *अन्यथा हमारे पीढ़ी हमें बढ़ते उम्र में बाहर का रास्ता कब दिखा दे इसका न कोई भरोसा है न हीं गारंटी* ।। *भाषा व शब्द की मर्यादा बढ़ते हुए उम्र के लिए तो मानो एक प्रथम अनिवार्य शर्त हो जाती हैं* । *वृद्ध और उम्र दराज व्यक्तियों के लिए भाषा व शब्द का तो प्रयोग बहुत ही मर्यादित होना चाहिए तभी आपके पीढ़ी पेड़ के रूप में उसके फल, फूल तना वा पत्ती हरे भरे होंगे अर्थात मर्यादित होंगे* । *अन्यथा जब जड़ ही हमारी असभ्य रूपी रोग से ग्रसित होगा तब फूल, पत्ती, फल को हरे-भरे अर्थात मर्यादा पूर्ण होने की आशा न करें* ।।।
*इसलिए शब्द व भाषा के मर्यादा हमेशा संयमित, मर्यादित और अपेक्षापूर्ण रखें।।*
*यही रीति नीति दोनों कहते हैं*
🚩🙏 *शुभ दिन* 🚩🙏
🚩🙏 *जय श्री राम* 🚩🙏
🚩🙏 *जय बजरंग बली* 🚩🙏
🚩🙏 *जय बागेश्वर धाम* 🚩🙏
🙏 *जय सनातन धर्म* 🙏
*विनोद पांडेय "तरु* "