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मनोवृत्ति

8 अप्रैल 2024

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बक्त का मंजर बढ़ता गया,
वह अपने सवाल में कुछ न कुछ करता ही गया।
मैं तो था एक प्रतिभागी, जो कभी न था अवसरवादी।
हुआ यूं कुछ मेरे साथ, मेरी दुनिया ही बदल गयी अपने आप। यूं तो तालीम मिली मानव को इंसान बनाने की,
पर तालीम ही नजर आयी अपनी वजूद बचाने की।
यह भी एक दौर था, जिसमें हुआ कुछ और ही था, काबिलियत को मायूसी, सौदेबाजों को ताजपोशी मिली
न जाने इनको कैसे मनमोहन, मुलायम व जोशी मिले।
सब करते जुगल किशोर, करते उलट फेर में फेर,
उलझे को और उलझाते, ऊपर से खूब सहलाते।
अपने को मसीहा बनाते, और न जाने उन्हें कितना सताते।दरिद्र को दरिद्र बनाते,अपना राज बढ़ाने का स्वयंबर रचाते। नैतिकता कोई इनसे सीखे, झूठ बोलना फ्री में खरीदे।
होते ये रंगमंच के अच्छे कलाकार,
कभी टोपी तो कभी हवाई जहाज पर सवार।
हाथ जोड़ना, चरण छूना, ये होते इनके औजार,
कभी ये करते हम पे वार, तो कभी होते खुद के शिकार।
सफेद टोपी, सफेद लिबास, ये होते इनके पोशाक।
दूर से दिखते एक पहलवान,पर होते एक गीदड़ के मेजबान।
करते तो वादों की बीछार, जिसमें होता
योजनाओं का साज ही साज
पर ये कहते बौछार को बौछार समझो,
कभी न इसको मूसलाधार समझो।
हम गरजते हैं ज्यादा, पर बरसते हैं कम,
अब तो समझो, कितना तरस खाते हैं हम।
सच को एक पल में झूठ बनाते, राई को फौरन पहाड़  बनाते खाई को खाड़ी बनाते, मजहब के नाम पे लड़ाते ।
देश की लूटकर खण्डहर बनाते, अपने घर को खूब सजाते  रिश्ते ये पल में बनाते, कुछ आजमाते तो कुछ जलाते।
कहते हम हैं नेता, हमको न दे ठेका,
हमसे कुछ न होता, सिवाय जुबान ही देता। ।    


                                           विनोद पांडेय "तरु" 

मीनू द्विवेदी वैदेही

मीनू द्विवेदी वैदेही

वाह बहुत खूब लिखा है आपने सर👌👌👌 आप मेरी कहानी प्रतिउतर और प्यार का प्रतिशोध पर अपनी समीक्षा और लाइक जरूर करें 🙏🙏

9 अप्रैल 2024

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रचनाएँ
साहित्य चेतना
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साहित्य संग्रह ,काव्य व लेख
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हर हाल में चलना सीखो

31 अगस्त 2022
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हर हाल में चलना सीखो हर पल हँसना - रहना सीखो निंद्रा - तंद्रा त्यागना सीखो अपने आपको जगाना सीखो हर हाल में चलना सीखो हर पल का हँसना - रहना सीखो।। हर हाल में चलना सीखो हर - पल हँसना - रहना सीखो न

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नव वर्ष

1 जनवरी 2023
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नव वर्ष आया नव मंगल लाया नव सृजन का आह्वान लाया ।। नव वर्ष आया नव संकल्प  लाया भूले-बिसरे का नव याद लाया।। नव वर्ष आया नव विचार लाया व्यसन   छोड़ने का पैगाम लाया ।।

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पुरुषार्थ

9 जनवरी 2023
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पुरुष है पुरुषार्थ कर नव- सृजन का आह्वान कर मन को उदीप्त तन को प्रदीप्त कर ' अलभ्य को लभ्य नव राह को प्रशस्त कर पुरुष हैं पुरुषार्थ कर नव- सृ

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सीखो

15 जनवरी 2023
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फूलों से नित हंसना सीखो और चंद्रमा से सौमयता सीखो || भौरो से नित गाना सीखो और हिमालय से दृढ- धैर्यता सीखो || ऋतुओं से नित परिवर्तन सीखो और अरुण से प्रकाश देना सीखो ||

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जो बीत गया सो बीत गया

30 जनवरी 2023
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जो बीत गया सो बीत गया , उस पर  क्यों शोक  मनाते हो , जो छूट गये सो छूट गये, उस पर क्यो अश्रु बहाते हो , जो है अभी उस पर क्यों नहीं चिंतन करते हो , जो बीत गया सो बीत

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सावन आया बारिश  लाया

30 जनवरी 2023
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सावन आया बारिश  लाया ' मन को फिर हर्षाने आया, बारिश की टप -टप बूदो से, हवा की मन्द -मन्द झोको से, प्रकृति को फिर बहलाने आया , सावन आया बारिश  लाया ' मन को फिर हर्षाने आया

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भाषा व शब्द

19 दिसम्बर 2023
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🌹 *राष्ट्र चेतना* 🌹 ******************* 🌴🌴🌴🌴🌴🌴 🌹 *भाषा व शब्द* 🌹 ****************************  *भाषा व शब्द किसी लेखनी की आत्मा होती है । लेखिनी भाषा और शब्द की शरीर होती है । भाषा

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शिकायत

1 मार्च 2024
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 🌹 *राष्ट्र चेतना* 🌹 ******************** 🌴🌴🌴🌴🌴🌴         🌹 *शिकायत* 🌹       ┅━❀꧁꧂❀━┅┉           🌹 🌹 🌹 🌹 🌹🌹🌹 🌴🌴🌴🌴🌴🌴🌴🌴🌴                        *अगर देखा जाए तो

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माँ  

2 मार्च 2024
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                                             माँ                                 ┅━❀꧁꧂❀━┅┉                                             🌹 🌹 🌹 🌹 🌹                                      🌴🌴🌴🌴🌴

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साहस

4 मार्च 2024
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🌹  🌹 *राष्ट्र चेतना* 🌹🌹 🌴🌴🌴🌴🌴🌴🌴🌴 🌹🌹🌹 *साहस* 🌹🌹🌹 ***************************** 🌴🌴🌴🌴🌴🌴🌴🌴🌴 *साहस एक सर्वोत्तम मानवीय  गुण है । साहस व्यक्तिगत होता है । हर व्यक्त

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मनोवृत्ति

8 अप्रैल 2024
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बक्त का मंजर बढ़ता गया, वह अपने सवाल में कुछ न कुछ करता ही गया। मैं तो था एक प्रतिभागी, जो कभी न था अवसरवादी। हुआ यूं कुछ मेरे साथ, मेरी दुनिया ही बदल गयी अपने आप। यूं तो तालीम मिली मानव को इंसान

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स्वयं से प्रश्न

10 अप्रैल 2024
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इस गम-ए-नसीहत को राह नहीं दिखता बुलाने पर भी कोई पास नहीं दिखता। बेताबी और भी बढ़ जाती जब हाथ कुछ खास नहीं आती। उदासी का मंजर गम का सैलाब बन जाता उम्मीदों का घड़ा टूट अपने वजूद में

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स्वयं से प्रश्न

10 अप्रैल 2024
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इस गम-ए-नसीहत को राह नहीं दिखता बुलाने पर भी कोई पास नहीं दिखता। बेताबी और भी बढ़ जाती जब हाथ कुछ खास नहीं आती। उदासी का मंजर गम का सैलाब बन जाता उम्मीदों का घड़ा टूट अपने वजूद में

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