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माँ  

2 मार्च 2024

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                                             माँ

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माँ-माँ होती हैं।। मां के अनुपस्थिति में या तो लोग बिखर जाते हैं या निखार जाते हैं ।। मां अपने उपस्थिति में अपने बच्चों को निखारती है और अनुपस्थिति में भी बच्चों को निखारती है इस पृथ्वी लोक पर भी रहकर मां अपने बच्चों को निखारती है स्वर्ग रूप में भी जाकर अपने बच्चों को निखारती है अगर किसी चीज की जरूरत है तो वह मां की प्रेम ,लगन , प्रेरणा , शिक्षा और साहस उसके द्वारा दिए गए हृदय में रखने और संयोजने की ।। यह सब सारी संपत्ति मां के द्वारा दिए गए एक प्रेरणा के रूप में रखने से बेटे या बेटी को सदैव एक अमूर्त रूप में हमेशा संदेश देते रहते हैं ।। बस जरूरत है तो उसके लगाव से जुड़े रहने के लिए आत्मिक रूप से ही या अमूर्त रूप से।।  मां बाप की मृत्यु असामयिक हृदय को विचलित कर  देते हैं , मन को विचलित कर देती है ।  दिशाहीन और साहसशीन बना देते हैं ।। लेकिन इसी में से एक साहस का पुंज निकलता है जो हमें एक सफल ,कठोर अधिक संयमित  व्यक्ति भी बना देता है ।। उदाहरण के तौर भगवान महावीर के मां-बाप की मृत्यु मात्र 30 साल की उम्र में हो गई थी जिससे उनके मन और  व्यक्तित्व पर असर  होता है इस संसार से उनका मन खिन्न  हो जाता है और वह सत्य की खोज में निकल पड़े ।।  लगातार भ्रमण किया  और अध्यात्म के तौर पर भटकते,   लड़ते -गिरते हुए अंत में महावीर से भगवान महावीर कहलाये है।। यहां भी मां-बाप के अनुपस्थिति में  उन्हें महावीर से भगवान महावीर की उपाधि मिली ।। खैर मां-बाप के असामयिक  मृत्यु एक अंतहीन  कभी  न भरने वाली खालीपन दे देती है ।। इस खालीपन को जिसने आत्मसात करके उनके प्रेरणा को मांनकर कुछ बनने व आगे बढ़ाने की ठान लेता है वह आगे बढ़ता है और निखरता है ।। इसी तरह लाल  बहादुर शास्त्री के भी मां-बाप बचपन में से ही गुजर गए थे लेकिन उन्होंने एक सच्चा नेक ईमानदार प्रधानमंत्री का अदम्य परिचय दिया ।। सामान्य कद काठी के होते हुए  भी ऐसी अमिट स्वरूप प्रकट की जो आज भी हृदय में अमिट  के रूप में पड़ी हुई है कभी-कभी सोचता हूं काल भी  कितना कूर  है ।। जिस समय किसी बेटे या बेटी की मां को असामयिक काल में के मुंह में ग्रास करता हुआ होगा तो  यह कितना निर्दयी हो जाता होगा ।। मैं सोचता हूं क्या इसको दया नहीं आती।   काल कितना निर्दयी होता है ।। खैर मेरा बस चले तो मै  काल के पहियों  को रोक दू और उससे पूछू हे काल तो इतना निर्दय कैसे हो गया।।  इस समय एक मां को अगर तू लेकर चला जाएगा तो  इन निराश्रित बच्चों का क्या होगा ।। माना की पुनर्जन्म के आधार पर उसे बेटे या बेटी का की मां की उम्र इतनी ही दिन की थी तो तू तो काल था।   तो क्यों नहीं पिता के रूप में एक मजबूत डांट लगाकर इस मृत्यु लोक में आने से ही मना कर देते हैं और कहते मत जा छोटी उम्र लेकर मत जा किसी की मां के रूप में  या किसी की बेटा- बेटी के रूप में बनकर।। कम समय है। कम समय में ही वापस आ जाएगा लेकिन दर्द उस मां को होगी यह उस बेटे को होगी लेकिन काल  ऐसा नहीं करता और एक अंतहीन  दर्द को देखकर चला जाता है ।। खैर इस मृत्यु लोक में जो भी आया है उसको जाना ही होगा आज हम कल कोई और ।।  सब के नंबर लगी हुई है।   इस पृथ्वी की मृत्युलोक  मे परमात्मा के  रूप  भगवान श्री कृष्णा  भी आये  थे और उनको भी यहां जाना पड़ा।  मैं कौन हूं ।। भगवान राम को भी महाकाल के समय अनुसार जाना ही पड़ा। वह अलग बात है के काल  स्वयं उनसे जाने का आग्रह किया था।।  यह विधि का विधान है।।  यह तो होना ही  है लेकिन माँ -माँ होती हैं उसका जाना इस तरह होता है जैसे एक शरीर बिना सर के।।  एक पेड़ बिना पत्तों का । एक खेत बिना फसलों का ।। एक नदी  बिना पानी के ।। ऐसे  शूरवीर बेटे- बेटियों को जिनकी मां असामयिक या पूर्ण रूप से जीवन जीये बिना  चले गए फिर भी उनके बेटी या बेटियां जिम्मेदारियां को संभालते हुए आगे बढ़ रहे हैं नई ऊंचाइयों को छू रहे हैं  समाज के लिए एक प्रेरणा है* ।।।

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रचनाएँ
साहित्य चेतना
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साहित्य संग्रह ,काव्य व लेख
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हर हाल में चलना सीखो

31 अगस्त 2022
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हर हाल में चलना सीखो हर पल हँसना - रहना सीखो निंद्रा - तंद्रा त्यागना सीखो अपने आपको जगाना सीखो हर हाल में चलना सीखो हर पल का हँसना - रहना सीखो।। हर हाल में चलना सीखो हर - पल हँसना - रहना सीखो न

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नव वर्ष

1 जनवरी 2023
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नव वर्ष आया नव मंगल लाया नव सृजन का आह्वान लाया ।। नव वर्ष आया नव संकल्प  लाया भूले-बिसरे का नव याद लाया।। नव वर्ष आया नव विचार लाया व्यसन   छोड़ने का पैगाम लाया ।।

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पुरुषार्थ

9 जनवरी 2023
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पुरुष है पुरुषार्थ कर नव- सृजन का आह्वान कर मन को उदीप्त तन को प्रदीप्त कर ' अलभ्य को लभ्य नव राह को प्रशस्त कर पुरुष हैं पुरुषार्थ कर नव- सृ

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सीखो

15 जनवरी 2023
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फूलों से नित हंसना सीखो और चंद्रमा से सौमयता सीखो || भौरो से नित गाना सीखो और हिमालय से दृढ- धैर्यता सीखो || ऋतुओं से नित परिवर्तन सीखो और अरुण से प्रकाश देना सीखो ||

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जो बीत गया सो बीत गया

30 जनवरी 2023
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जो बीत गया सो बीत गया , उस पर  क्यों शोक  मनाते हो , जो छूट गये सो छूट गये, उस पर क्यो अश्रु बहाते हो , जो है अभी उस पर क्यों नहीं चिंतन करते हो , जो बीत गया सो बीत

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सावन आया बारिश  लाया

30 जनवरी 2023
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सावन आया बारिश  लाया ' मन को फिर हर्षाने आया, बारिश की टप -टप बूदो से, हवा की मन्द -मन्द झोको से, प्रकृति को फिर बहलाने आया , सावन आया बारिश  लाया ' मन को फिर हर्षाने आया

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भाषा व शब्द

19 दिसम्बर 2023
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🌹 *राष्ट्र चेतना* 🌹 ******************* 🌴🌴🌴🌴🌴🌴 🌹 *भाषा व शब्द* 🌹 ****************************  *भाषा व शब्द किसी लेखनी की आत्मा होती है । लेखिनी भाषा और शब्द की शरीर होती है । भाषा

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शिकायत

1 मार्च 2024
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 🌹 *राष्ट्र चेतना* 🌹 ******************** 🌴🌴🌴🌴🌴🌴         🌹 *शिकायत* 🌹       ┅━❀꧁꧂❀━┅┉           🌹 🌹 🌹 🌹 🌹🌹🌹 🌴🌴🌴🌴🌴🌴🌴🌴🌴                        *अगर देखा जाए तो

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माँ  

2 मार्च 2024
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                                             माँ                                 ┅━❀꧁꧂❀━┅┉                                             🌹 🌹 🌹 🌹 🌹                                      🌴🌴🌴🌴🌴

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साहस

4 मार्च 2024
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🌹  🌹 *राष्ट्र चेतना* 🌹🌹 🌴🌴🌴🌴🌴🌴🌴🌴 🌹🌹🌹 *साहस* 🌹🌹🌹 ***************************** 🌴🌴🌴🌴🌴🌴🌴🌴🌴 *साहस एक सर्वोत्तम मानवीय  गुण है । साहस व्यक्तिगत होता है । हर व्यक्त

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मनोवृत्ति

8 अप्रैल 2024
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बक्त का मंजर बढ़ता गया, वह अपने सवाल में कुछ न कुछ करता ही गया। मैं तो था एक प्रतिभागी, जो कभी न था अवसरवादी। हुआ यूं कुछ मेरे साथ, मेरी दुनिया ही बदल गयी अपने आप। यूं तो तालीम मिली मानव को इंसान

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स्वयं से प्रश्न

10 अप्रैल 2024
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इस गम-ए-नसीहत को राह नहीं दिखता बुलाने पर भी कोई पास नहीं दिखता। बेताबी और भी बढ़ जाती जब हाथ कुछ खास नहीं आती। उदासी का मंजर गम का सैलाब बन जाता उम्मीदों का घड़ा टूट अपने वजूद में

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स्वयं से प्रश्न

10 अप्रैल 2024
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इस गम-ए-नसीहत को राह नहीं दिखता बुलाने पर भी कोई पास नहीं दिखता। बेताबी और भी बढ़ जाती जब हाथ कुछ खास नहीं आती। उदासी का मंजर गम का सैलाब बन जाता उम्मीदों का घड़ा टूट अपने वजूद में

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