पुरुष है पुरुषार्थ कर
नव- सृजन का आह्वान कर
मन को उदीप्त
तन को प्रदीप्त कर '
अलभ्य को लभ्य
नव राह को प्रशस्त कर
पुरुष हैं पुरुषार्थ कर
नव- सृजन का आह्वान कर //
साहस को साक्षात्कार कर
मृत्यु को भी ललकार कर
लक्ष्य का आह्वान कर
भटके का राह बन कर
निराशा का आस बन कर
नव- जीवन का आह्वान कर
पुरुष है पुरुषार्थ कर
नव - सृजन का आहवान कर //
मृत्यु भय त्याग कर
इसे अटल सत्य मान कर
कर्तव्य नित्य पूर्ण कर
हर लक्ष्य-बाधा दूर कर
श्रेषठता का परि पूर्ण कर
पुरुष है पुरुषार्थ कर
नब- सृजन का आह्वान कर //
हर जीव में श्रेष्ठ मानकर
स्व-शक्ति पहचान कर
हर कमजोरी पहचान कर
उस पर इच्छित वार कर
लौह - पुरुष निर्माण कर
पुरुष है पुरुषार्थ कर
नव- सृजन का आहवान कर //
मन - मंदित दूर कर
तन शिथिलता दूर कर
नव-ऊर्जा का आहवान कर
नव मुग का निर्माण कर
पुरुष हैं पुरुषार्थ कर
नव- सृजन का आह्वान कर //
सूझ- बूझ का आत्म सात् कर
हर समस्या का समाधान कर
भटके का राही बनकर
टूटे का सारथी बन कर
उसका मार्ग प्रशस्त कर।
पुरुष है पुरुषार्थ कर
नब- सृजन का आह्वान कर//
विनोद पाण्डेय "तरू”