इधर कुछ नहीं लिख पाया हूँ । ऐसा नहीं है कि मेरे शब्दों खत्म हो
गए है, बहुत कुछ कहना चाहता हूँ , अपनी मुलाक़ात के बारे में लिखना
चाहता हूँ, वो इंतज़ार , वो बेकरारी , तुम्हारी सलाह सब कुछ उतार देना चाहता हूँ कागज पे; पर समझ नहीं पा
रहा शुरुआत कहाँ से करूँ और कहाँ पर अधूरा छोड़ दूँ । हाँ , मैं कुछ अधूरा
लिखना चाहता हूँ ताकि उसे पूरा करने की नाक़ाम कोशिश करता रहूँ । कम से कम इसी
बहाने वो दिन तो याद आते रहेंगे ।
पता नहीं हाँथों को क्या हो गया
है ? जब से लौटा हूँ आज पहली बार कलम उठाई है और न जाने क्यों सब से
पहले तुम्हारा ही नाम लिखा है । अब सवाल मत पूछना, तुम्हे पता है मेरे पास कोई जवाब
नहीं है , है तो बस ये दो लाइनें
"लिखे रहने दो ये हर्फ़ यूँ ही
दरख़्तों पर
पढ़ेगा नाम कल मेरा, कोई तेरे नाम के आगे ।"