इलाहाबाद से सटे कौशाम्बी जिले के पूरामुफ्ती के मनौरी की सोनी और इलाहाबाद के रोहन के घर में उस वक्त काफी खुशियां थीं। खुशी लाजिमी भी है। क्योंकि दोनों जल्द ही एक-दूसरे की जिंदगी का अहम हिस्सा बनने वाले थे। यानि की दोनों की शादी तय हो चुकी थी। आखिकार होते-करते वो रात भी आ गई। जिस रात को सैकड़ों लोगों के सामने अग्नि देवता को साक्षी मानकर दोनों ने सात जनमों के बंधन में बंध गए। हमेशा एक-दूसरे के सुख-दुख को बांटने का वादा भी किया। पर, अचानक ये क्या हो गया। दोनों की खुशियों पर आखिर किसका ग्रहण लग गया। अभी तो शादी के महज छह महीने ही बीते थे। दोनों में अक्सर किसी ने किसी बात को लेकर तकरार होने लगी। कमरे से शुरू हुई तकरार आखिर में समाज में इज्जत की परवाह किए बगैर थाने तक पहुंच गई। मतलब साफ हो गया कि रिश्ते में मिठास की जगह कड़वाहट आ गया। सात जन्मों की डोर से गृहस्थी की गाड़ी रुक गई। यहां तक की बंधन तोड़ने की नौबत आ गई। बात जब हद से ज्यादा बढ़ गई तो थाने में पंचायत की गई। पंचायत में दोनों तरफ से कई सम्भ्रांत नागरिकों को भी बुलाया गया। पंचों ने नवदम्पति को साथ रहने के लिए काफी समझाया। पर, कहा गया है न कि दो चीजें बहुत ही नाजुक होती हैं रिश्ते और शीशे। बस फर्क इतना है कि शीशे गलतियों से टूट जाते हैं और रिश्ते गलतफहमियों से...। आखिर कौन से ऐसी गलतफहमी रोहन और सोनी के बीच थी जिसका हल वह खुद न निकाल सके और अलग रहने का निर्णय ले लिया। अंत में वही हुआ। जो आप पहले से समझ चुके। सात जनमों का यह सफर बीच राह में ही टूट गया। घंटों चली पंचायत के दौरान शादी में हुए लेनदेन का सामान दोनों पक्षों ने एक-दूसरे को वापस कर दिया और हमेशा के लिए अलग हो गए।