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एक चिट्ठी तुम्हारे नाम

7 जुलाई 2016

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माय डियर मोटी 

(मेरे जान की दुश्मन)

हफ़्तों बाद आज सोचता हूँ तुम्हें ख़त भेज ही दूँ पर उसके लिए जरूरी है पहले उसे लिख डालूँ । जानता हूँ नाराज़ हो । होना भी चाहिए पर अब अगर हर ख़त का जवाब ख़त मिलते ही लिख दूँ तो फिर वो बात नहीं होगी जो अभी है । हमारे लॉन्ग डिस्टेंस रिलेशनशिप में जरूरी है कि तुम लगातार लिखती जाओ और मैंने हफ़्तों बाद सब का इकट्ठा जवाब दूँ ।

अब आलसी मत कहना । सच कड़वा होता है और तुम्हारी बातों की मिठास महसूस करने के बाद मैं स्वाद नहीं बिगाड़ना चाहता । ख़ैर मुद्दे पर लौटता हूँ, दरअसल इधर तुमने अपने ख़तों में कुछ ऐसे सवालात किए हैं जिनका जवाब दे पाना उतना ही मुश्किल है जितना कश्मीर की समस्या का हल निकालना पर उम्मीद करता हूँ तुम्हें तुम्हारे जवाब जल्द ही मिले और मेरी जान छूटे । (मुस्कुराओ मत, जानता हूँ ये ख़्वाब अधूरा ही रहेगा)। वैसे एक शिकायत है तुमसे । हिचकियाँ आनी कम हो गई है, हाँ खाते वक्त ज़बान जरूर कट रही आज कल । पहले तो सिर्फ शक था पर अब यकीन से गालियां देने वाले का नाम बता सकता हूँ पर कही पढ़ा है "प्यार से अगर जहर भी मिले तो रख लेना चाहिए" फिर ये तो सिर्फ गालियाँ हैं । मग़र यार कुछ तो रहम करो गरीब पर । इतना प्यार भी अच्छा नहीं, फिर मैं तो वामपंथी या दक्षिणपंथी भी नहीं फिर ऐसी हरकतों से क्या फ़ायदा । स्कोर फिर वही रहेगा 7 पर एक ।
अच्छा सुनो, इन दिनों हालात बहुत खराब हैं । जानता हूँ तुम्हारे लिए नई बात नहीं पर इस बार मुझसे ज्यादा मुल्क और यूनिवर्सिटीज के हालात अच्छे नहीं । चाय -पान की दुकानों पर बोल बोल कर हमने ऐसे ही देश को राम भरोसे छोड़ रखा था अब यूनिवर्सिटीज में भी महाभारत का गीता ज्ञान एपिसोड चालू है । मिडिया वाले भी इतना छीछालेदर कर चुके हैं की अब कृष्ण कन्हैया भी सोच रहे होंगे की आखिर बोला क्या था भाई , और कुछ बोला भी था की नहीं । ग्रह-नक्षत्र खराब चल रहे अभी । ऊपर से लग्न का सीजन भी आ गया है । सुना है आजकल लड़के वाले GD/PI में ये सवाल धड़ल्ले से पूछ रहे । ध्यान रहे सामने वाली पार्टी किसी भी दल की हो सकती है इसलिए मेरे हिसाब से बाबा का दिया फार्मूला 44 आजमा लेना । 
अब बात आज़ादी की । हाँ 47 में मिल गई थी पर लांच तो अब जा के हुई न । वो भी 251 में । इसमें बाटा के टैग की तरह 9999 मात्र नहीं लगा है । एकदम शुद्ध देसी रोमांस टाइप है । आज एक झलक देख लो शादी में , चार महीने बाद पता चलेगा भाभी की बुआ की ननद की मझलकी पुतोह की मौसेरी बहन थी ललका सूट वाली । पर 4g के टाइम में चार महीना रुका जायेगा क्या , और दुनिया वाला सब इतना जल रहा एक आदमी की तरक्की से । माने हद है । चलो फ्रॉड है 251 वाला तो । कितने लोगों का bp लो से हाई हो के मेंटेन हो गया साइट खोलने के कारण पता भी है । कितने तोंद वाले लोग सुबह उठने और जॉगिग करने लगे इसी बहाने । डॉ की फ़ीस भी 251 से ज्यादा होती है । सोचना कभी । चलो अब अपनी बकबक बंद करता हूँ पर तुम चालू रहना । और हाँ मार्च का जानलेवा महीना आ रहा कुछ डिपॉजिट बढ़ा दो । तुम्हारी trp बढ़ाने को तो सारी क़ायनात लगी है । कुछ नजरें इनायत इधर भी कर दो ।

तुम्हारा और सिर्फ तुम्हारा
(जब तक किसी और का न हो जाऊ)
#अभिजीत

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रचनाएँ
kuchtumhareliye
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लिखने को बहुत कुछ है और बताने को सैकड़ों किस्से , कमी है तो बस एक वक्त की ... जानता हूँ जितना मेरे पास है उससे कही कम तुम्हारे पास पर ये बाते सिर्फ मेरी तो नहीं इसमें काफी कुछ तुम्हारा भी है ,तो अब जब हम साथ बैठ नहीं पाते, चाय पर गप्पे नहीं लड़ा सकते तो क्या उन अनगिनत शामों के हवाले से मैं इतनी सी गुजारिश नहीं कर सकता की तुम अपनी सहूलियत से अपने वक्त पर आओ और फिर से सुनने सुनाने का रूठने मनाने का वो सिलसिला चालू करो जो बंद है महज रोटी के चक्कर में ...
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कोई मेरी किताब क्यों पढ़े ?

27 मई 2016
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कल रात जब मैंने एक फेसबुक मित्र से "कुछ तुम्हारेलिए" के बारे में पूछा तो जवाब एक सवाल के रूप में आया....'मैं/कोईतुम्हारी किताब क्यों पढ़े ?इस सवाल ने उन दिनों कीयाद दिला दी जब प्रतियोगी परीक्षाओं के इंटरव्यू की तैयारी कर रहा था और इंटरव्यूदे भी रहा था । इसी सवाल से मिलता जुलता एक सवाल वहां भी पूछा जा

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क्योंकि लिखना जरुरी है

29 मई 2016
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फेसबुक या कम्प्यूटर पर कीबोर्ड की सहायता से लिखना अलग बात है औरअसल जिंदगी में कागज पर कलम चलना अलग । आज तकनीकी तौर पे हम जितना दक्ष होते जा रहे उतना ही पीछे हम व्यवहारिक तौर पे होते जा रहे । आज बरसों बाद जब ख़त लिखने को कागज़ और कलम ले कर बैठा तब एहसास हुआ कि असल जिंदगी में मैंने आख़री ख़त लखनऊ से लिखा

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‪#‎जवाबी_चिट्ठी‬

31 मई 2016
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इधर कुछ नहीं लिख पाया हूँ । ऐसा नहीं है कि मेरे शब्दों खत्म होगए है, बहुत कुछ कहना चाहता हूँ , अपनी मुलाक़ात के बारे में लिखनाचाहता हूँ, वो इंतज़ार , वो बेकरारी , तुम्हारी सलाह सब कुछ उतार देना चाहता हूँ कागज पे; पर समझ नहीं पारहा शुरुआत कहाँ से करूँ और कहाँ पर अधूरा छोड़ दूँ । हाँ , मैं कुछ अधूरालिखना

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21वीं सदी का पहला वेलेंटाइन डे

31 मई 2016
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तकरीबन पंद्रह – सोलह  साल पहले ऐसे ही किसी फ़रवरी के महीने में पहलीबार मौसम की विविधता को समझा और महसूस किया था । उस समय शहर छोटा था या हम कहनामुश्किल है लेकिन अखबारों और हिंदी फ़िल्मो की बदौलत हम जान चुके थे कि फ़रवरी कीचौदहवी तारीख को आसमान में चौदवी का चाँद निकले या ना निकले ज़मी पर चाँदनी पुरेशबाब प

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एक चिट्ठी तुम्हारे नाम

7 जुलाई 2016
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माय डियर मोटी (मेरे जान की दुश्मन)हफ़्तों बाद आज सोचता हूँ तुम्हें ख़त भेज ही दूँ पर उसके लिए जरूरी है पहले उसे लिख डालूँ । जानता हूँ नाराज़ हो । होना भी चाहिए पर अब अगर हर ख़त का जवाब ख़त मिलते ही लिख दूँ तो फिर वो बात नहीं होगी जो अभी है । हमारे लॉन्ग डिस्टेंस रिलेशनशिप में जरूरी है कि तुम लगातार लिखती

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दोस्त तुम्हारे लिए

13 जुलाई 2016
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आज फ्रेंडशिप डे नहीं पर ना जाने क्यों तुम्हे याद करने का बड़ा मन हो रहा । शायद मैं एक बुरा दोस्त हूँ या फिर स्वार्थी या दोनों जो तुम्हारी खबर नहीं लेता । पर यार तुम किस मिट्टी के बने हो जो मेरी आवाज पर दौड़ पड़ते हो । मुझसे जुड़ा हर दिन , समय और जगह तुम्हे आज भी बखूबी याद है और मैं फेसबुक के भरोसे रहता

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कुछ तुम्हारे लिए : प्रेम रंग में डूबी हुई कविताएँ । जयेन्द्र कुमार वर्मा की समीक्षा

26 जुलाई 2016
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प्रेम जीवन का आधार है। प्रेम के अभाव में जीवन की कल्पना ही व्यर्थ है। प्रेम ही व्यक्ति में जीवन के प्रति मोह उत्पन्न करता है। प्रेम ही व्यक्ति में सपने जगाता है। रंग-विरंगे सपने। और उन सपनों में डूबकर मन अनायास ही गाने लगता है, गुनगुनाने लगता है, मचलने लगता है, चहचहाने लगता है, फुदकने लगता है। और यह

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छह महीन में टूट गई सात जनमों की डोर

28 अगस्त 2016
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इलाहाबाद से सटे कौशाम्बी जिले के पूरामुफ्ती के मनौरी की सोनी और इलाहाबाद के रोहन के घर में उस वक्त काफी खुशियां थीं। खुशी लाजिमी भी है। क्योंकि दोनों जल्द ही एक-दूसरे की जिंदगी का अहम हिस्सा बनने वाले थे। यानि की दोनों की शादी तय हो चुकी थी। आखिकार होते-करते वो रात भी आ ग

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