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इक शाम वो हसीन ठी।

22 मई 2022

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एक शाम  वो हसीन  सी ,
मुझे याद है तुम्हे शायद  नही,
जब आती थी पाने राहत सी,
जो अब न मुन्तजिर है तुम्हे  रही,,
बस दिन  ही तो कुछ  बदले,है।
तुम हो अमीर संग  किसी,
मै भले ही वो न दिला सका,
जिसकी तुम्हे जरूरत  रही,
पर मै अभी भी अमीर हू,
पाई प्यार की दौलत  बडी,
तुम पा गई  हो,वो सभी,
जो जरूरी न थी तब कही,
तुम फकीर की फकीर रही ,
मै अमीर  सा  रईस  ही, 
वो  शाम एक हसीन  सी ,
याद आ  गई  अचानक  कही,
तेरे लौट आने के बाद,,
जो चाह तेरी अब न रही,,
वो शाम  एक हसीन सी,
जब पहलू मे तू मेरे रही,
क्यू याद  वो है आ रही,
कही तुम्हे भी तो नही,
अब आ चुके है दूर हम ,
न लौट पाएगे वही,
जब चाह गई  थी,तुम्हारी बदल,
तो बदल गया  था ,मै भी तभी,
क्यू रखता बेजान  ख्वाहिशे,
जो होनी थी  न जिंदा  कभी,
कई  शामे रात बन गई, 
दिन  भी फिर मेरा  उगा नही,
एक शाम  आखिरी याद है ।
जब कह रही थी तुम  कही,
अब हम न  फिर मिल  पाएगे,
जरूरत तुम्हारी थी बदल गई, 
बस वो  आखिर  एक शाम  का,
पैगाम  बिछुडन  था तभी,
अब लौटने का न फायदा, 
होगी बदनाम  तुम यू ही,,
अब लौटने का न फायदा,
न कायदा, न इरादा ही,
एक शाम  वो भी थी,कभी,
इक  शाम आज की भी रही,
[जब चाह थी तुम्हारी रही,
अब न रही वो चाह ही,]::--(2)
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संदीप  शर्मा। देहरादून से 

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रचनाएँ
संदीप की कलम से।
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जयश्रीकृष्ण पाठकगण सुधिजन व मित्रगण। आज मै अपनी पुस्तक "संदीप की कलम से" लेकर आपके बीच उपस्थित हुआ हू। यह मेरी पहली किताब की शक्ल अख्तियार कर रही प्रस्तुति है जो मै अपनी परम आदरणीय माता जी "श्री श्रीमति सुषमा शर्मा जी" को सादर स्नेह के साथ अर्पित कर रहा हू क्योकि उनके लेखन के शौक ने मुझे भी प्रेरित किया कि मै इन शब्दो को समेटू व किसी अर्थ को प्रस्तुत करू ।इसके लिए मै shabd in.com को भी धन्यवाद देता हू कि उन्होने इसके लिए एक मंच तैयार किया। आप सब के स्नेह को प्रस्तुत हू लेकर अपनी पहली पुस्तक "संदीप की कलम से "।स्नेह व आशीर्वाद दीजिएगा। आभार आप सबका। निवेदक। संदीप शर्मा। देहरादून से।जयश्रीकृष्ण
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आईने।

7 मई 2022
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मेरी बर्बादियों का जश्न मनाने वालो,के, मैने देखो कैसे चित्र सजाए है, जो दीवारो पे दिखे लटके है सब, खाली फ्रेम उनमे मैने, देखिए "आइने " लगवाए है, नाम लू तो कहा अच्छा लगता है, वो

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तन्हाई।

7 मई 2022
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तन्हाई की आवाज संदीप कहा होती है ,यह तो दिल मे गहरे से दफन होती है।तूने कभी क्या छुआ है उसे,किया हो जो महसूस, तो पता होगा,कुछ भी कह लो ,तब न चुभन का दर्द हुआ होगा।यह

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मां।

8 मई 2022
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माॅ एक पर्याय अनेक,सबसे सस्ता, उपलब्ध विवेक,रिश्तो की जननी समवेत , तेरे रूप अनवरत दरवेश। मां तो केवल एक शब्द है।जो कर देता सब निशब्द है,पीडा,विनती,सहना,मिनती, सब है माॅ की कोई न

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मातृ दिवस।

8 मई 2022
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मातृ दिवस , क्यू है विवश , क्या वृद्धाश्रम मे मां है? या खत्म संवेदना है। जिसने तुम्हे स्वीकारा तुमने उसको ही अस्वीकारा कैसा उपकार है, तुम पर तो धिक्कार है, सोच न ज्यादा , अभ

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मां से ही सब हाॅ।

8 मई 2022
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मां से आई ममता,मां से आया प्यार,मां से उपजा वात्सल्य,मां से आया विश्वास। मां से आई महानता,मा से आई, आस,मां से आया नेह भाव ,मां से आया राग,माॅ से ही आरंभ हुआ सृजन, मां से ही उपजे भाव,माॅ से छ

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पहाड से।

12 मई 2022
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वो कतरे जो छलके ऑखो से जनाब के, क्या समझते हो , जख्म रहे थे छोटे , अरे नही वो ही तो थे गहरे " पहाड "से, @@@@@संदीप शर्मा।

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तरबूज का आचार।

22 मई 2022
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देखता हू अक्सर खाने व खजाने को ,रेसिपी बहुत आती है ,पर जाने कहा चली जाती पचाने को,पाक कला का अक्सर कालम,खाली ही पाया ,इसीलिए मै पाक कला पर,एक रचना लेकर आया अरे

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रूबरू।(कव्वाली)

22 मई 2022
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रूबरू मै रहू ,उसके आगोश मे,, मय की उसमे रहू,आंऊ न होश मे,वो जो सजदा करे,,आऊ मै जोश मे,रूबरू मै रहू उसके आगोश मे।।उसको पाने की बस, जुस्तजू इक रहे,खो न ,दू मै उसे ,बस यही होश रहे।

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ख्याल अच्छा है ख्वाब का।

22 मई 2022
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रूबरू रहू मै उसके ,कभी तो रे ऐसा हो,बार बार देखे, मुझे वो,अजी ये कैसा हो,मुख पे हो नकाब उसके, अजी जो ऐसा हो,उठा के बार बार देखे मुझे ,खुदा ये कैसे हो।उसकी महक,आए मुझे , यदि जो ऐसा हो,रहे स

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इक शाम वो हसीन ठी।

22 मई 2022
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एक शाम वो हसीन सी ,मुझे याद है तुम्हे शायद नही,जब आती थी पाने राहत सी,जो अब न मुन्तजिर है तुम्हे रही,,बस दिन ही तो कुछ बदले,है।तुम हो अमीर संग किसी,मै भले ही

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