माॅ एक पर्याय अनेक,
सबसे सस्ता, उपलब्ध विवेक,
रिश्तो की जननी समवेत ,
तेरे रूप अनवरत दरवेश।
मां तो केवल एक शब्द है।
जो कर देता सब निशब्द है,
पीडा,विनती,सहना,मिनती,
सब है माॅ की कोई न गिनती,
सुन्दर असुन्दर को अपनाए,
काले गोरे का भेद भुलाए,
सबको छाती से लिपटाकर,
अपने ऑचल मे लिए समाए,
हॅसते होगे देवता गण भी,
क्या रचना रची ब्रह्म जी,
ईश्वर को भी बौना करती ,
इक माॅ की आशीष की विनती।
माॅ की तुलना मां से ही होती,
और सच मे न कोई कसौटी,
मां का ऑचल,गोद भी उसकी,
सारा दुख सोख है लेती।
मां की कही कोई तुलना है,
पाप है इसको जो भूला है,
इस धरती पर भगवान सरीखी,
और न किसी लोक मे देखी।
यह सच है सब मोड वह देती,
खोटा पन ,खा कर वो सोटी,
करवा कर अपमान वो अपना ,
तुमको सदा सम्मान वो देती,
दुख को दूर भगा वो देती,
खुद सुख से दूर वह होकर,
तुम्हारे सुख की चाह संजोती।
माॅ क्या है,कोई धन से निर्धन, है,,
इसकी महिमा का कर सकते वर्णन, है,,
एक आशीष से सुख सम्पदा लुटा दे,
लक्ष्मी कुबेर को भी भुलवा दे,।
सब सब को छोटा यह करती,
माॅ की महिमा, हिम सी शक्ति।
कहोगे क्या मै कहता जाऊंगा,
सुनोगे जो सुनाता ही जाऊंगा,
भूल रहे हो कविता को जोकि,
मां पर है ,कभी खत्म न होगी,
जो पढ कर मन मे आए न प्यार,
संदीप के शब्द तो फिर गए बेकार,
तुझको मानव है धिक्कार,
जो समझे न तो इसका व्यवहार।
मां सृजना है ,सृजन की जननी,
इसकी महिमा कहा से करनी,
यह तो सृजिता सृष्टि की है,
ईश्वर की भी दृष्टि यही है।
आप सबको मातृ दिवस की बधाई,
जोर लगा कहना जय माई
सब मिल करो वंदना मात की,
यह है विशुद्ध आत्मा परमात्म की,
#####
संदीप शर्मा। देहरादून से।
लिखना चाहता हू पर बहुत कुछ छूट रहा है।फिर प्रयास करूगा।जय श्रीकृष्ण।