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कारवाँ गुज़र गया गुबार देखते रहे

12 फरवरी 2016

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स्वप्न झरे फूल से, मीत चुभे शूल से

लुट गये सिंगार सभी बाग़ के बबूल से

और हम खड़े-खड़े बहार देखते रहे।

कारवाँ गुज़र गया गुबार देखते रहे।


नींद भी खुली न थी कि हाय धूप ढल गई

पाँव जब तलक उठे कि ज़िन्दगी फिसल गई

पात-पात झर गए कि शाख़-शाख़ जल गई

चाह तो निकल सकी न पर उमर निकल गई


गीत अश्क बन गए छंद हो दफन गए

साथ के सभी दिऐ धुआँ पहन पहन गए

और हम झुके-झुके मोड़ पर रुके-रुके

उम्र के चढ़ाव का उतार देखते रहे।

कारवाँ गुज़र गया गुबार देखते रहे।


क्या शबाब था कि फूल-फूल प्यार कर उठा

क्या जमाल था कि देख आइना मचल उठा

इस तरफ़ जमीन और आसमाँ उधर उठा

थाम कर जिगर उठा कि जो मिला नज़र उठा


एक दिन मगर यहाँ ऐसी कुछ हवा चली

लुट गई कली-कली कि घुट गई गली-गली

और हम लुटे-लुटे वक्त से पिटे-पिटे

साँस की शराब का खुमार देखते रहे।

कारवाँ गुज़र गया गुबार देखते रहे।


हाथ थे मिले कि जुल्फ चाँद की सँवार दूँ

होठ थे खुले कि हर बहार को पुकार दूँ

दर्द था दिया गया कि हर दुखी को प्यार दूँ

और साँस यूँ कि स्वर्ग भूमी पर उतार दूँ


हो सका न कुछ मगर शाम बन गई सहर

वह उठी लहर कि ढह गये किले बिखर-बिखर

और हम डरे-डरे नीर नैन में भरे

ओढ़कर कफ़न पड़े मज़ार देखते रहे।

कारवाँ गुज़र गया गुबार देखते रहे।


माँग भर चली कि एक जब नई-नई किरन

ढोलकें धुमुक उठीं ठुमक उठे चरन-चरन

शोर मच गया कि लो चली दुल्हन चली दुल्हन

गाँव सब उमड़ पड़ा बहक उठे नयन-नयन


पर तभी ज़हर भरी गाज़ एक वह गिरी

पुँछ गया सिंदूर तार-तार हुई चूनरी

और हम अजान से दूर के मकान से

पालकी लिये हुए कहार देखते रहे।

कारवाँ गुज़र गया गुबार देखते रहे।

-गोपालदास 'नीरज'

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neerajkipaati
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12 फरवरी 2016
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अब तो मज़हब कोई ऐसा भी चलाया जाए

12 फरवरी 2016
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अब तो मज़हब कोई ऐसा भी चलाया जाए,जिसमें इंसान को इंसान बनाया जाए। जिसकी ख़ुशबू से महक जाय पड़ोसी का भी घरफूल इस क़िस्म का हर सिम्त खिलाया जाए। आग बहती है यहाँ गंगा में झेलम में भीकोई बतलाए कहाँ जाके नहाया जाए। प्यार का ख़ून हुआ क्यों ये समझने के लिएहर अँधेरे को उजाले में बुलाया जाए। मेरे दुख-दर्द का

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मेरा नाम लिया जाएगा

12 फरवरी 2016
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आँसू जब सम्मानित होंगे, मुझको याद किया जाएगाजहाँ प्रेम का चर्चा होगा, मेरा नाम लिया जाएगा Iमान-पत्र मैं नहीं लिख सका, राजभवन के सम्मानों कामैं तो आशिक़ रहा जन्म से, सुंदरता के दीवानों कालेकिन था मालूम नहीं ये, केवल इस ग़लती के कारणसारी उम्र भटकने वाला, मुझको शाप दिया जाएगा Iखिलने को तैयार नहीं थी, त

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नारी

13 फरवरी 2016
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अर्ध सत्य तुम, अर्ध स्वप्न तुम, अर्ध निराशा-आशाअर्ध अजित-जित, अर्ध तृप्ति तुम, अर्ध अतृप्ति-पिपासा,आधी काया आग तुम्हारी, आधी काया पानी,अर्धांगिनी नारी! तुम जीवन की आधी परिभाषा।इस पार कभी, उस पार कभी.....तुम बिछुड़े-मिले हजार बार,इस पार कभी, उस पार कभी।तुम कभी अश्रु बनकर आँखों से टूट पड़े,तुम कभी गीत

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प्यार की कहानी चाहिए

13 फरवरी 2016
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आदमी को आदमी बनाने के लिए जिंदगी में प्यार की कहानी चाहिएऔर कहने के लिए कहानी प्यार कीस्याही नहीं, आँखों वाला पानी चाहिए।जो भी कुछ लुटा रहे हो तुम यहाँवो ही बस तुम्हारे साथ जाएगा, जो छुपाके रखा है तिजोरी मेंवो तो धन न कोई काम आएगा, सोने का ये रंग छूट जाना हैहर किसी का संग छूट जाना हैआखिरी सफर के इंत

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मुस्कुराकर चल मुसाफिर!

13 फरवरी 2016
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पंथ पर चलना तुझे तो मुस्कुराकर चल मुसाफिर!वह मुसाफिर क्या जिसे कुछ शूल ही पथ के थका दें?हौसला वह क्या जिसे कुछ मुश्किलें पीछे हटा दें?वह प्रगति भी क्या जिसे कुछ रंगिनी कलियाँ तितलियाँ,मुस्कुराकर गुनगुनाकर ध्येय-पथ, मंजिल भुला दें?जिन्दगी की राह पर केवल वही पंथी सफल है,आँधियों में, बिजलियों में जो रह

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बसंत की रात

13 फरवरी 2016
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आज बसंत की रात,गमन की बात न करना!धूप बिछाए फूल-बिछौना,बगिय़ा पहने चांदी-सोना,कलियां फेंके जादू-टोना,महक उठे सब पात,हवन की बात न करना!आज बसंत की रात,गमन की बात न करना!बौराई अंबवा की डाली,गदराई गेहूं की बाली,सरसों खड़ी बजाए ताली,झूम रहे जल-पात,शयन की बात न करना!आज बसंत की रात,गमन की बात न करना।खिड़की

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मुश्किलों में मुस्कराना धर्म है

13 फरवरी 2016
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जिन मुश्किलों में मुस्कुराना हो मना,उन मुश्किलों में मुस्कुराना धर्म है।जिस वक़्त जीना गैर मुमकिन सा लगे,उस वक़्त जीना फर्ज है इंसान का,लाजिम लहर के साथ है तब खेलना,जब हो समुन्द्र पे नशा तूफ़ान काजिस वायु का दीपक बुझना ध्येय होउस वायु में दीपक जलाना धर्म है।हो नहीं मंजिल कहीं जिस राह कीउस राह चलना च

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'नीरज' गा रहा है

13 फरवरी 2016
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अब जमाने को खबर कर दो कि 'नीरज' गा रहा हैजो झुका है वह उठे अब सर उठाए,जो रूका है वह चले नभ चूम आए,जो लुटा है वह नए सपने सजाए,जुल्म-शोषण को खुली देकर चुनौती,प्यार अब तलवार को बहला रहा है।अब जमाने को खबर कर दो कि 'नीरज' गा रहा है हर छलकती आँख को वीणा थमा दो,हर सिसकती साँस को कोयल बना दो,हर लुटे सिंगार

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बस तुम ही नहीं मिले जीवन में

13 फरवरी 2016
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पीड़ा मिली जनम के द्वारे अपयश नदी किनारेइतना कुछ मिल पाया एक बस तुम ही नहीं मिले जीवन मेंहुई दोस्ती ऐसी दु:ख से हर मुश्किल बन गई रुबाई, इतना प्यार जलन कर बैठीक्वाँरी ही मर गई जुन्हाई,बगिया में न पपीहा बोला, द्वार न कोई उतरा डोला,सारा दिन कट गया बीनते काँटे उलझे हुए बसन में।पीड़ा मिली जनम के द्वारे अ

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