कभी दीवार पर मारती थी हाथ-पैर, पापा को न्यूज पेपर से पता चली बेटी की सच्चाई
कानपुर. यूपी के कानपुर की रहने वाली एक लड़की को कराटे का जूनून है। ब्लैक बेल्ट हासिल कर चुकी यह लड़की वर्तमान में यूपी महिला कराटे संघ की कोच है। इनका मानना है कि घरेलु हिंसा और महिलाओं पर बढ़ते अपराध को देखते हुए लड़कियों को आत्मरक्षा के लिए कराटे सीखना जरूरी है। DainikBhaskar.com से इनसे बात करके यह जानने की कोशिश कि इन्हें कराटे का शौक कहां से आया।
घर के अंदर खुद को बंद कर दीवार पर मारती थी हाथ-पैर
- मूलरूप से झारखंड की रहने वाली सविता अपनी फैमिली के साथ कानपुर के विष्णुपुरी इलाके में रहती हैं। इनके पापा लालदेव मुंडा एचबीटीआई में लैब असिस्टेंट के पद पर कार्यरत हैं।
- सविता बताती हैं, हमारे मोहल्ले मोहल्ले में आए-दिन किसी न किसी बात को लेकर पड़ोस के आदमी लोग अपनी पत्नी को पीटते थे। करीब 13 साल तक मैं ये सब देखती रही। जब भी ऐसा होता था तो मेरा खून खौल उठता था।
गुस्से में मैं अपने आपको घर के अंदर बंद कर दीवार पर हाथ-पैर मारती थी।
- महिलाओं के साथ होने वाली मारपीट को देखते हुए मैंने कराटे सीखने का मन बनाया। ताकि उन मर्दों को सबक सीखा सकूं। मैंने पापा को बिना बताए साल 2011 में कानपुर कराटे एसोसिएशन को ज्वाइन किया। उस समय मैं 11वीं क्लास में थी। हालांकि, मां को इसके बारे मालूम था।
- मैंने पहली बार कानपुर शहर में आयोजित पहला कराटे टूर्नामेंट नवंबर, 2011 में खेल ा। पहली बार सैकड़ों लोगो के सामने टूर्नामेंट खेलते हुए थोड़ा डर भी लग रहा था, लेकिन उस टूर्नामेंट को मैंने आसानी से जीत लिया। इसके बाद फरवरी, 2012 में पहला डिस्ट्रिक्ट लेवल का टूर्नामेंट खेला, जिसमें मुझे जीत मिली।
- डिस्ट्रिक्ट जितने पर जब मेरा फोटो पेपर में आया, तब पापा को इसकी जानकारी हुई। पापा ने डांटने के बजाए मेरी तारीफ की और अच्छा करने की नसीहत दी। उसके बाद मैंने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा। लगातार 3 बार साल 2014, 20115 और 1016 में स्टेट चैम्पियन बनी।
- साल 2014 में इन्होने कराटे में नेशनल चैम्पियनशिप में सिल्वर मैडल जीता था। साल 2016 में एसीएन कराटे फेडरेशन का पेपर दिया, जिसमें सफल रही और मुझे उत्तर प्रदेश महिला कराटे संघ का कोच नियुक्त किया गया।
सरकारी स्कूलों में लड़कियों को सिखाना चाहती हैं कराटे
- सविता कहती हैं, मैं अपने भाई-बहनो में दूसरे नंबर पर हूं। मैं चाहती हूं कि योगी सरकार सरकारी स्कूलों में लड़कियों के लिए कराटे अनिवार्य कर दें।
- सरकारी स्कूलों में पढ़ने वाली लड़कियों को भी आत्मरक्षा के लिए कराटे सीखना बेहद जरुरी है।
- इनकी मां निराशो ने बताया, मुझे खुशी है कि बेटी ने अपने मेहनत के दम पर अपनी एक अलग पहचान बना ली है, लेकिन इस बात का अफसोस भी है कि सरकार लड़कियों को लेकर बड़ी-बड़ी घोषणाएं करती है। लेकिन होता कुछ नहीं है।
- बेटी यूपी महिला कराटे की कोच है, लेकिन प्रदेश सरकार की तरफ से उसे कोई सहायता राशि नहीं मिलती।
- मूलरूप से झारखंड की रहने वाली सविता अपनी फैमिली के साथ कानपुर के विष्णुपुरी इलाके में रहती हैं। इनके पापा लालदेव मुंडा एचबीटीआई में लैब असिस्टेंट के पद पर कार्यरत हैं।
- सविता बताती हैं, हमारे मोहल्ले मोहल्ले में आए-दिन किसी न किसी बात को लेकर पड़ोस के आदमी लोग अपनी पत्नी को पीटते थे। करीब 13 साल तक मैं ये सब देखती रही। जब भी ऐसा होता था तो मेरा खून खौल उठता था।
गुस्से में मैं अपने आपको घर के अंदर बंद कर दीवार पर हाथ-पैर मारती थी।
- महिलाओं के साथ होने वाली मारपीट को देखते हुए मैंने कराटे सीखने का मन बनाया। ताकि उन मर्दों को सबक सीखा सकूं। मैंने पापा को बिना बताए साल 2011 में कानपुर कराटे एसोसिएशन को ज्वाइन किया। उस समय मैं 11वीं क्लास में थी। हालांकि, मां को इसके बारे मालूम था।
- मैंने पहली बार कानपुर शहर में आयोजित पहला कराटे टूर्नामेंट नवंबर, 2011 में खेला। पहली बार सैकड़ों लोगो के सामने टूर्नामेंट खेलते हुए थोड़ा डर भी लग रहा था, लेकिन उस टूर्नामेंट को मैंने आसानी से जीत लिया। इसके बाद फरवरी, 2012 में पहला डिस्ट्रिक्ट लेवल का टूर्नामेंट खेला, जिसमें मुझे जीत मिली।
- डिस्ट्रिक्ट जितने पर जब मेरा फोटो पेपर में आया, तब पापा को इसकी जानकारी हुई। पापा ने डांटने के बजाए मेरी तारीफ की और अच्छा करने की नसीहत दी। उसके बाद मैंने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा। लगातार 3 बार साल 2014, 20115 और 1016 में स्टेट चैम्पियन बनी।
- साल 2014 में इन्होने कराटे में नेशनल चैम्पियनशिप में सिल्वर मैडल जीता था। साल 2016 में एसीएन कराटे फेडरेशन का पेपर दिया, जिसमें सफल रही और मुझे उत्तर प्रदेश महिला कराटे संघ का कोच नियुक्त किया गया।