ऑफिस के बाहर इनके साथ हुई दिल छू लेने वाली घटना,छोड़ दी 9 लाख की जॉब
कानपुर. यूपी के कानपुर की रहने वालीं मनप्रीत कौर 9 लाख सलाना पैकेज की नौकरी छोड़ मूक बधिर दिव्यांगों की जिंदगी संवार रही हैं। दिव्यांग सोसाइटी नाम की संस्था खोल मनप्रीत मूक बधिर बच्चों को न सिर्फ पढ़ा रही हैं, बल्कि उनको आत्मनिर्भर भी बना रही हैं।
लंच में ऑफिस के बाहर खाना खाते समय हुए एक वाक्या और बदल गई जिंदगी
- DainikBhaskar.com से बातचीत में मनप्रीत कौर ने बताया, साल 2007 में मेरी और पति हरकीरथ कौर की दिल्ली में एमएनसी कंपनी ईएक्सएल में जॉब लगी थी। मैं प्रोजेक्ट एनालिसिस के पद पर कार्यरत थी।
- लंच में अक्सर मैं कलीग के साथ ऑफिस के पास एक ठेले वाले के यहां खाना खाती थी। एकदिन खाना खाते समय एक करीब 8 साल का लड़का मेरे पास आया और इशारा करके खाना मांगने लगा।
- जब मैंने उस लड़के से बात करनी चाही, तो दुकानदार ने बताया कि ये बोल नहीं सकता। यह सुनकर मुझे बहुत तकलीफ हुई। कई दिनों तक मैं परेशान रही। एक दिन मैंने मूक बधिर दिव्यांग बच्चों के लिए कुछ अलग करने की ठानी और अपने पति से इसके बारे में जिक्र किया।
- पहले तो इनके पति ने मुझे समझाया, लेकिन जब मैंने जॉब छोड़कर कानपुर वापस आकर मूक बधिर बच्चों पर काम करने का फैसला सुनाया, तो पति ने भी अपनी जॉब छोड़ दी और हम दोनों कानपुर आ गए। साल 2012 में जब मैंने जॉब छोड़ी थी, उस समय मेरा सालाना पैकेज करीब 9 लाख रुपए सालाना थी।
- मनप्रीत कहती हैं, मेरी स्कूलिंग कानपुर के गुरुनानक बालिका स्कूल से हुई है। यहां से इंटर करने के बाद मैंने पीपीएन डिग्री कॉलेज से बीए और एमए किया। इसी बीच साल 2002 में मेरी हरकीरथ कौर से शादी हो गई।
- शादी के बाद मैंने बीएड किया। दिल्ली में नौकरी छोड़ने के बाद मैंने गुजरात के भुज से 2013-14 में साइन और हियरिंग में पीजीपीडी डिप्लोमा कोर्स किया। लेकिन कॉलेज की प्रिंसिपल ने मुझे हॉस्टल लेने के बजाय बाहर प्राइवेट रूम लेने को कहा।
- लेकिन मैंने बाहर रहने से मना कर दिया। मैं हॉस्टल में मूक बधिर दिव्यांगों के रहना चाहती थी। उन्हें समझना चाहती थी। शुरुआत में थोड़ी प्रॉब्लम जरूर हुई, धीरे-धीरे इशारों में बात करने लगी। आज मैं बहुत आसानी से बच्चों के इशारों को समझ लेती हूं, उन्हें अपनी बात समझा भी लेती हूं।
साल 2016 में खोला दिव्यांग सोसाइटी संस्था
- मनप्रीत ने बताया, गुजरात से कोर्स कर लौटने के बाद मैंने कानपुर के एक दिव्यांग संस्था में 2 साल काम किया, लेकिन वहां मन नहीं लगा। मैं शहर में घूम-घूम कर मूक बधिर दिव्यांग बच्चों को खोजने लगी। करीब सालभर तक यही काम किया। मार्च, 2016 में मैंने अपनी एक संस्था दिव्यांग सोसाइटी खोल दी, जिससे कई बच्चों को जोड़ा।
- ये बच्चे बोल और सुन नहीं सकते, लेकिन इनकी सोचने की शक्ति बहुत ज्यादा होती है। हालांकि, ज्यादातर के मां-बाप अपने ऐसे बच्चों को पढ़ाना-लिखाना नहीं चाहते, उन्हें लगता है कि इससे कोई फायदा नहीं।
- मैं कई ऐसे घर गई, जहां ऐसे बच्चों को पढ़ाने लिखाने की बात कहने पर उनके पैरेंट्स मुझे पागल समझ लेते थे। आज संस्था से करीब 100 बच्चे जुड़े हैं, किसी से फीस नहीं ली जाती।
बच्चो को आत्मनिर्भर बना रहीं मनप्रीत
- मनप्रीत के मुताबिक, मैं संस्था में आने वाले सभी दिव्यांग मूक बधिर बच्चों को शिक्षा देने के साथ हर फिल्ड में ट्रेंड कर रही हूं। मैं पहले बच्चों की लगन देखती हूं, उसके बाद उनकी रूचि की फिल्ड की शिक्षा देती हूं।
- बच्चों से सीजनल आचार बनवाना, क्राफ्ट के काम, खेल कूद और कंप्यूटर की भी जानकारी दी जाती है। लड़कियों को सिलाई और कढ़ाई का काम सिखाया जाता है। यही नहीं, जो गाड़ी चलाना सीखना चाहता है, उसे ड्राइविंग भी सिखाई जाती है।
- संस्था के करीब 12 बच्चों का अभी हाल ही में टू व्हीलर और फोर व्हीलर का लर्निंग लाइसेंस भी बना है।
- मनप्रीत ने बताया, गुजरात से कोर्स कर लौटने के बाद मैंने कानपुर के एक दिव्यांग संस्था में 2 साल काम किया, लेकिन वहां मन नहीं लगा। मैं शहर में घूम-घूम कर मूक बधिर दिव्यांग बच्चों को खोजने लगी। करीब सालभर तक यही काम किया। मार्च, 2016 में मैंने अपनी एक संस्था दिव्यांग सोसाइटी खोल दी, जिससे कई बच्चों को जोड़ा।
- ये बच्चे बोल और सुन नहीं सकते, लेकिन इनकी सोचने की शक्ति बहुत ज्यादा होती है। हालांकि, ज्यादातर के मां-बाप अपने ऐसे बच्चों को पढ़ाना-लिखाना नहीं चाहते, उन्हें लगता है कि इससे कोई फायदा नहीं।
- मैं कई ऐसे घर गई, जहां ऐसे बच्चों को पढ़ाने लिखाने की बात कहने पर उनके पैरेंट्स मुझे पागल समझ लेते थे। आज संस्था से करीब 100 बच्चे जुड़े हैं, किसी से फीस नहीं ली जाती।
बच्चो को आत्मनिर्भर बना रहीं मनप्रीत
- मनप्रीत के मुताबिक, मैं संस्था में आने वाले सभी दिव्यांग मूक बधिर बच्चों को शिक्षा देने के साथ हर फिल्ड में ट्रेंड कर रही हूं। मैं पहले बच्चों की लगन देखती हूं, उसके बाद उनकी रूचि की फिल्ड की शिक्षा देती हूं।
- बच्चों से सीजनल आचार बनवाना, क्राफ्ट के काम, खेलकूद और कंप्यूटर की भी जानकारी दी जाती है। लड़कियों को सिलाई और कढ़ाई का काम सिखाया जाता है। यही नहीं, जो गाड़ी चलाना सीखना चाहता है, उसे ड्राइविंग भी सिखाई जाती है।
- संस्था के करीब 12 बच्चों का अभी हाल ही में टू व्हीलर और फोर व्हीलर का लर्निंग लाइसेंस भी बना है।
आगे की 5 फोटोज में देखें मनप्रीत की संस्था से जुड़े बच्चे...