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कागज की नाव

24 फरवरी 2023

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कागज़ की नाव - 

श्याम और सुनिधि एक ही ऑफिस में काम करते थे...  आज ऑफिस में काम ज्यादा था, ऊपर से घर आते समय रास्ते में  ट्रैफिक भी बहुत था... घर आते आते दोनों काफ़ी थक गए थे.... जब घर पहुंचे तो चैन की सांस आई ... दोनों ने थोड़ा रिलैक्स किया...


मिट्टी की सोंधी सोंधी खुशबु आ रही थी... श्याम ने बॉलकनी से बाहर देखा.... बारिश हो रही थी... बारिश की फुहारों और ठंडी हवाओं से मौसम काफ़ी खुशगवार हो गया था... 




श्याम ने सुनिधि से कहा- वाह! कितना सुहाना मौसम हो गया है, आज कुछ अच्छा खाने का मन है...क्यों न गरमगरम पकौड़े बनाये जाएँ... बारिश के मौसम में चाय के साथ पकोड़ों का आनंद ही अलग है....



श्याम और सुनिधि ने मिलकर गोभी आलू प्याज के जोरदार कुरकुरे पकौड़े और चाय बनाई....


"ठंडी हवा ये चांदनी सुहानी ए मेरे दिल सुना कोई कहानी"... गीत गुनगुनाते हुए श्याम ने चाय और पकौड़े बॉलकनी में रखी टेबल पर लगा दिए... और दोनों बॉलकनी में बैठकर स्वादिष्ट पकोड़ों और चाय के साथ बारिश के मजे लेने लगे...


श्याम और सुनिधि पकोड़े खाते हुए अपनी पुरानी बारिशों की यादें ताजा कर रहे थे.... कि... कभी  स्कूल से घर आते समय बारिश में कैसे भीगते हुए वे घर पहुंचे थे... तो कभी किसी और जगह घंटों रुककर जब उन्हें बारिश के कम या बंद होने का घंटों इंतज़ार करना पड़ा...


बारिश की फुहारें तेज हो चलीं थीं, श्याम ने बॉलकनी से सडक पर झांककर देखा तो सडक से बारिश का पानी बहता हुआ आकर उनके घर के बाहर इकठ्ठा हो रहा था... श्याम ने देखा, सडक पर बारिश के बहते पानी के साथ दो कागज की नाव भी ठुमकती हुई चली आई हैं और आकर उनके घर के आगे रुके पानी में मस्ती से इधर उधर नाच रही थीं ... श्याम को अपने बचपन के दिन याद आ गए....


श्याम बोला - कितना सुकून और आराम था उन दिनों जब हम बच्चे थे और सब बच्चे मिलकर बारिश होते ही घरों के बाहर निकल जाते थे और इस तरह बारिश के बहते पानी में अपनी नाव दौड़ाते थे...


सुनिधि बोली- हां, मैंने भी बचपन में बारिश के पानी में कागज़ की नाव चलाई थीं... हम  सुंदर-सुंदर कागजो से अपनी-अपनी नावें तैयार करते और फिर एक साथ उन्हें पानी में छोड़कर रेस भी कराते थे... और  जिसकी नाव सबसे आगे निकल जाती वह जीत जाता था...

श्याम बोला - वो बचपन के दोस्त भी कितने प्यारे थे... बारिश होते ही सब घरों से बाहर आ जाते और हम सभी खूब एन्जॉय करते थे... अब बड़े हो गए हैं तो कितने फॉर्मल दोस्त... कितनी फॉर्मल  बातें... कितने फॉर्मल रिश्ते हो गए हैं ...


सुनिधि ने कहा  - हां, अब तो किसी से भी कुछ भी बहुत सोचकर बोलना पड़ता है... बचपन में दोस्तों को जो मन आये बोल सकते थे...


श्याम बोला यार, सुनिधि क्यों न हम अपने बचपन के साथियों को ढूंढे... क्या पता वो भी हमें यूँ ही कभी मिस करते हों....


सुनिधि बोली - हाँ! हो तो सकता है और अब तो सोशल मीडिया इतना सक्षम है कि हर किसी का कहीं न कहीं कोई लिंक मिल ही जाता है... हमारे बचपन के दोस्तों के लिंक भी शायद कहीं मिल जाएँ  तो बुराई नहीं है उनसे बात करने में...


श्याम बोला हमारे बचपन के दोस्तों के नाम थे  चुन्नू... मुन्नू.... टिंकू.... बबलू.... गोली.... धन्नू... अब इन नामों से ये कहाँ सोशल मीडिया पर मिलेंगे...


श्याम बोला- अपने बचपन के साथियों को हम उनके बचपन के नामों से ही जानते थे... बचपन में दोस्तों का न तो जात बिरादरी  से कोई लेना देना था, न ही किसी के माता पिता का नाम ओहदा भी हमने कभी जानने की कोशिश की... बस दोस्त थे.... और हाँ तब एक दूसरे का ख्याल भी कितना रखते थे, किसी एक बच्चे को चोट लग जाए तो सारे दोस्त दुखी हो जाते थे और सब बच्चों की टीम जाकर उसके घर उसे छोड़कर खबर कर आती थी... कि उनके बच्चे को चोट लगी है...  अब बड़े होकर देखो दोस्त बनने से पहले  लोग सबसे पहले तो पेशा पूछते हैं... फिर जात बिरादरी.... फिर माता पिता के बारे में.... और मुसीबत में तो आगे भी नहीं आते....


अपने पुराने दिनों से आज के दिनों का कंपेरिज़न करते हुए श्याम कुछ भावुक हो चला था.... सुनिधि बोली - अरे, हम बड़े हो गए  है तो क्या हुआ !?.... क्या हम फिर बच्चे नहीं बन सकते चलो, चलो आज हम वापस  कागज की नावें बनाते हैं और बाहर चलकर पानी में उन्हें  चलाते हैं...


श्याम को हंसी आ गई... किन्तु  सुनिधि वाकई बच्चों के जैसे खेलने के मूड में थी... वह दौड़कर घर के अंदर से अपने बुक रैक में से कुछ कागज उठाकर ले आई...


सुनिधि और श्याम ने मिलकर कुछ नावें बनाईं और घर से बाहर आकर बहते पानी में वे उन्हें छोड़ने लगे... खूब मजे आ रहे थे दोनों को...उनकी नावें पानी में हवा के साथ बातें करती हुई यहाँ वहां चक्कर लगा रही थीं....


श्याम और सुनिधि को बारिश के पानी में नाव चलाता देखकर मुहल्ले से आसपास के बहुत से बच्चे भी उनके पास आ गए.... बच्चे बोले... अंकल हमें भी सिखाओ न नाव कैसे बनाते हैं.... हम भी बनाएंगे कागज़ की नाव... और हम सब रेस लगाएंगे अपनी-अपनी  नावों की ....


सुनिधि और श्याम ने उन सब बच्चों को कागज़ की नाव बनाना सिखाई... सभी बच्चों ने खूब नावें बनाकर... बारिश के पानी में चलाईं...  खेल खेल में आसपास के बच्चे श्याम और सुनिधि के अच्छे दोस्त बन गए थे ....


सभी बच्चों के साथ मिलकर श्याम और सुनिधि ने गीत गाया...


आई देखो बरखा रानी सुहानी

ओ घटाओं बरसो आज 

जमकर तुम भी तूफ़ानी  

धरती झूमे आकाश हँसे और

हँसे जग सारा नूरानी!!


श्याम और सुनिधि को जैसे अपना बचपन वापस मिल गया था... वे बच्चों के साथ मिलकर एकदम बच्चे बन गए थे... श्याम बोला - ये देखो मेरी नाव रेड कलर की और सुनिधि की येलो... सभी बच्चों ने भी अपनी अपनी नाव के कलर और अपने नाम बताये और एक साथ मिलकर कई रंग बिरंगी कागज़ की  नावें पानी में हिचकोले लेती हुई तैरने लग गईं.... उन सब ने अपनी अपनी नाव पर खुद के नाम लिखकर रेस भी लगाईं...


बच्चों के नाम थे... टीनू... रुक्कू.... गोलू.... छोटू....रिंकू... सुनकर श्याम और सुनिधि को हंसी आ गई....


बारिश रुकने लगी थी... आकाश में इंद्रधनुष अपनी छटा इस तरह बिखेर रहा था... जैसे की कह रहा हो कि दुनिया में खुशियों के रंग कभी फीके नहीं पड़ते बस जरूरत है तो छोटी छोटी खुशियाँ बटोरने की और दुखों  को हँसकर किनारे लगाने की...


सूरज ढलने चला  था... आकाश में लालिमा छाई  थी...पक्षी अपने घरों को लौट रहे थे... श्याम और सुनिधि ने बच्चों को कल फिर मिलने का वादा कर बाय बाय कहा ... सभी अपने घर लौट आये... सबके मन आज बहुत प्रसन्न थे... 


श्याम बोला - जीवन में कुछ बदलता नहीं है...  यदि कुछ बदलता है तो हमारा नज़रिया... नज़रिया अच्छा होगा तो नजारे भी अच्छे होंगे...

अमृता गोस्वामी

राइटर 

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