11 जुलाई 2015
जी मंजीत जी आपने सही कहा आज के समय की ये ही विडंबना है की मूर्ति को पूजते समय न मूर्ती का ख़याल रखते हैं लोग और न ही जीती जागती दुखी इंसान स्वरुप मूर्ति को समझते हैं ..
14 जुलाई 2015
लड्डू वाली बात तो आपने बहुत सही लिखी है ... वाकई में बहुत ही सही तरीके से सच बोला है आपने .. लोग भक्ति करे वो तो ठीक है लेकिन भक्ति के साथ साथ इंसानियत जैसे महिलाओ के प्रति अच्छी नज़र , बेजुबान जीव जंतुओं के प्रति दया ... जैसे चीज़े खत्म हो जाती है ..
13 जुलाई 2015
मंदिरों में दान करें ये भी अच्छी बात है विजय कुमार शर्मा जी क्यूंकि मंदिरों की वजह से आज के बच्चो के जिज्ञासु मन में उत्कंठा बनती है भगवन और धर्म को तथा हमारी संस्कृति को जानने की इसलिए मंदिरों का होना जरुरी है किन्तु साथ साथ उन मंदिरों में जाने वाले गरीब और दिन दुखी लोगों में बसते भगवान को भी देखना जयदा जरुरी है और अंशदान द्वारा ही सही कुछ अंश तक ऐसे दान से उनकी समस्याओं का कुछ अंश तक निराकरण करना भी एक तरह की भक्ति ही है .साथ में पूजा के समय प्राण प्रतिष्ठित मूर्ति का ख्याल रखना भी बेहद जरुरी है
12 जुलाई 2015
हार्दिक आभार के साथ धन्यवाद ओम प्रकाश शर्मा जी ,.. जी कई बार अन्धविश्वास का अतिरेक इंसान तो क्या भगवन को भी परेशान कर डालता है भक्ति यदि सच्ची है तब भगवन खुद भक्त के पास आते हैं ऐसा हमने कई किस्से कहानियो में धर्म ग्रंथो में पढ़ा है तो फिर ये अन्धविश्वास क्यों और कैसे फैला है आपने समाज में धर्म को पूजा पथ को लेकर यही समझ नहीं आता
12 जुलाई 2015
स्कूल के लिए दान के मुकाबले मंदिर के लिए दान जल्दी मिलता है। यह सभी मानव की अंध श्रद्धा का ही फल हैं, असली भगवान भूखे और दिखावे का पेट भरा
11 जुलाई 2015
इंसान का विश्वास करना तो ठीक है लेकिन अन्धविश्वास किसी भी विषय पर सर्वथा ग़लत है ! सार्थक लेख ! धन्यवाद !
11 जुलाई 2015