न खुशन उदासभले मैं अकेलाया सब आसपासशून्य की बढ़ती हुई प्यासवही लोगवही जमीन वही आकाशफिर भी परिवर्तन की आसदिन वैसे ही चढ़तावैसे ही ढलतावैसी ही रात होतीवैसे ही सोता अजीब से सपनो में खोताफिर नई सुबह होतीवो ही सब करने कोजो रोज ही होतामन न पूरा न आधाहर तरफ बंदिशों की बाधासब कुछ हासिलपर जैसे न कुछ सधा न साधा