न खुश
न उदास
भले मैं अकेला
या सब आसपास
शून्य की बढ़ती हुई प्यास
वही लोग
वही जमीन
वही आकाश
फिर भी परिवर्तन की आस
दिन वैसे ही चढ़ता
वैसे ही ढलता
वैसी ही रात होती
वैसे ही सोता
अजीब से सपनो में खोता
फिर नई सुबह होती
वो ही सब करने को
जो रोज ही होता
मन न पूरा
न आधा
हर तरफ
बंदिशों की बाधा
सब कुछ हासिल
पर जैसे
न कुछ सधा
न साधा