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कोरोना

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मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है ये कहते हुए अरस्तू को कोरोना जैसे "अति सामाजिक " प्राणी का ख्याल शायद रहा हो ना रहा हो लेकिन मनुष्य के सहअस्तित्व को चुनौती देता ये सूक्ष्म दानव आज एक बार फिर से भागती दौड़त

"अब तो बस करो न" कोरोना! हाय, तुझको क्या रोना मुश्किल कर दिया सबका जीना है तू वह जहर, जो सबको पड़ रहा पीना न बन सके नीलकंठ, न कोई चाहे मरना कोरोना, अब तो बस करो न मानवता पर और ज़ुल्म करो न भाता त

हाय यह कोविड की बीमारी दुखी हो गई दुनिया सारी साँसों को तरसे नर नारी उदास प्रकृति मानव को भारी जोड़ लेते नाता  योग से तो जीत जाते रोग से कर लो नियमित योग और भगा दो सारे रोग सन्ध्या गोयल सुगम्या

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नमस्कार मित्रों... आज सभी कोरोना के कारणडरे हुए हैं... एक ऐसा वायरस जिसके रूप में एक अदृश्य शक्ति ने हर किसी को घरोंमें कैद किया हुआ है... किन्तु यह भी सत्य है कि ऐसी कोई रात नहीं जिसकी सुबह नहो... इसीलिए है विश्वास कि शीघ्र ही सुख का सवेरा होगा और कष्ट की इस बदली कोचीरता सूर्य चारों ओर अपनी मुस्करा

अजीब मसला है जिंदगी का।लोग कहने लगे है, रही जिंदगी, तो दुनियाँ जहां को समझ लेंगे।लहरे भी अनगिनत होंगी कोरोना की अभी, तीसरी का इंतजार है।पहली लहर से घबराए भागे, मौत से बचने के लिए योंही जिंदगियां गवा दिए रोड, रेल ट्रैक पर।दीन दानवीरों की टोलियां मद्दत किया उनकी जो प्रवासी मजदूर बन गए थे।अजीब मसला है

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आज जिस प्रकार आतंक औरभय का वातावरण दीख पड़ रहा है – चाहे वो कोरोना जैसी महामारी के कारण हो, या पिछले दिनों बंगाल में जिस प्रकार हिंसक घटनाएँघटीं उनको देखते हुए हो – इस प्रकार के वातावरण में तो वास्तव में ईश्वर याद आताही है सभी को... जो लोग दूसरों की ह्त्या करते हैं, या जो लोग ऑक्सीजन और दवाओं की जमाख

हालात बदले हुए है। शाम दिल्ली में हवाएं रूप, बदल बदल कर आ रही थी। हवाओं ने नीम और जामुन के पत्ते फूल गिरा दिए।चौक-चौराहे में लहराते, तिरंगों को फाड़ कर रख दिए।बादलों की गर्जन से, आसमानी बिजली भी चमक गई।काली खाली सड़को में, सायरन एम्बुलेंस के बज रहे।किसी मे कराहती सासे, या कफ़

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कोरोना बीमारी की दूसरी लहर ने पूरे देश मे कहर बरपाने के साथ साथ भातीय तंत्र की विफलता को जग जाहिर कर दिया है। चाहे केंद्र सरकार हो या की राज्य सरकारें, सारी की सारी एक दूसरे के उपर दोषरोपण में व्यस्त है। जनता की जान से ज्यादा महत्वपूर्ण चुनाव प्रचार हो गया है। दवाई, टीका, बेड आदि की कमी पूरे देश मे

कोविड 19 से 2021 तककुदरत की कहर से, शहर गाँव दोनो कॉप गए।थम नही रही सासे, ऑक्सीजन की कमी से।देवालय, विद्यालय, अस्पतालय सब एक हो गए।अज़ान, घण्टियाँ, गुरु वाणी, चर्च प्रार्थना, सब थम से गए।एम्बुलेंस के सायरन से, अब रूह, जान सब काँपने लगी।देख लाशें कब्र और समशान में, आंकड़े धरे के धरे रह गए।कभी दो बूंद ज

व्याकुल अति कोरोना ने कहर डहाया हुई प्रचण्ड लाल फिजायें, पर मिल न सकी ऑक्सीजन और यहाँ अति जली चितायें ।1जलाने बड़ी देखो होड़ लगी, प्रतिक्षारत में बैठे करके तैयारी। एक ओर जला-जला पूत रे, दूसरी ओर जली-जली महतारी। 2-सर्वेश कुमार मारुत

जीवन को पुनर्जीवित कियाधन्यवाद तुमको कोरोना ।जीवन में महत्वपूर्ण क्या ?बताया तुमने कोरोना ।।1।।कैसे बढ़े प्रतिरोधक क्षमता ?सिखलाया तुमने कोरोना ।करो संघर्ष, पर डरो ना,पढ़ाया तुमने कोरोना ।।2।।तकनीक ने क्या दिया ?तकनीक की भूमिका क्या ?तकनीक का प्रयोग करके,आगे बढ़ो, कभी ठ्हरों ना ।।3।।घर बार हो कैसा?जीवन

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कोरोना औरमहावीर जयन्तीजय श्रीवर्द्ध्मानाय स्वामिने विश्ववेदिनेनित्यानन्दस्वभावाय भक्तसारूप्यदायिने |धर्मोSधर्मो ततो हेतु सूचितौ सुखदुःखयो:पितु: कारणसत्त्वेन पुत्रवानानुमीयते ||आज चैत्र शुक्ल त्रयोदशी है – भगवान् महावीर स्वामी कीजयन्ती का पावन पर्व | तो सबसे पहले तो सभी कोमहावीर जयन्ती की हार्दिक शुभ

बेवजह न उलझो।बेवजह न उलझो मेरी जान, अभी जिंदगी जीना है..कल को किसने देखा मेरी जान, बियर विसकी रम पीना है।करवटे बहुत बदल लिए मेरी जान, अभी जी भर के सोना है।बेवजह न उलझो मेरी जान, अभी जिंदगी जीना है..कौन क्या लेके जाएगा? सब यही पड़ा रह जायेगा।ये खुशियों के दिन है, ख़ुशियों में जियो, गम में क्यो जीना है?

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आई एम आल्सो ए डाक्टर डॉ शोभा भारद्वाज न्यूज चैनलों पर कोरोनाकी खबरे सुनना मेरी आदत बन गयी है . सिंगापुर में बेटी का फोन आया माँ पापा अपनाध्यान रखना कोशिश करना घर से बाहर न निकलना पड़े कोरोना में भर्ती मरीज का साथी केवलमोबाईल होता है .चिंता मुम्बई में रहनेवाले बेटे की थी . उच्च पदासीन बेटा वैसे घर

"तुम दिन को दिन कह दोगे, तो रात को हम दोहरायेंगे" आज वही रात अलग होकर नाइट कर्फ्यू बनी। इस गाने की वजह से किसी ज्ञानी मानव ने उपरोक्त गाने के बोल को समझा और नाइट कर्फ्यू को भी कोरोना कर्फ्यू बना दिया। जिसमे मानव के हालात, जज़्बात सब स्थिरता की ओर कदम बढ़ाए हुए है। कोरोना वक्त बे वक्त उन्ही हालात और जज

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हमारे लिए पिछलेकाफी समय से महामारियों का जैसे अस्तित्व ही ख़त्म हो गया था। लेकिन तभी किसीपुराने पीपल की चुड़ैल की छम-छम करती दस्तक सुनाई देने लगीं। एड्स, डेंगू, सॉर्स, इबोला,जीका और निपाह से हम अभी पूरी त

अन्नदाताओं का मसला है। कानून घिर गया।ठंड़ीयो से खेलेंगे, दिल्ली बॉर्डर को घेरेंगे।कोरोना को डंडा-लाठियों से किसान पिटेंगे।दिल्ली में घुसने की देरी है, अब किसानों की बारी है।काला कानून वापस लेने की तैयारी है। जय किसान।जिसको आना है बॉर्डर आओ, बुराड़ी को न जाना है।कोरोना मर गया। दिल्ली में फस गया।कोरोना

कोरोना ने सोचने पर मजबूर किया। सवालों, अनुभवों, स्वअनुभवों से मजबूत किया कि "अच्छा इंसान किसी के काम का नहीं होता लेकिन सच यह भी है कि घटिया सामान घर‌ को और इंसान जिंदगी को नर्क बना देता है। मतलब निकल जाने के बाद दूरी बना लेना भी सोशल डिस्टेंस है" इंसान की ट्रेनिंग चाहें प्रशासनिक हों या विभागीय हों

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फलों , शहद और झरनों के देश क्रोएशिया में -214 सितम्बर 2019 से 5 अक्तूबर 2019माटों का शराब खाना और उसकी चिन्ताएँ पुराने शहर के मुख्य दरवाज़े पर जबरदस्त भीड़ का रेला था । लंबी डीलक्स बसों में से उतर कर टूरिस्ट ग्रुप्स के झुंड के झुंड जमा थे । मुझे दिल्ली में होने वाली राजनीतिक रैलियों की याद आ गयी ।

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