कविता ःपुनर्जन्म
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हवा का सुरमई जादू चला था
मोहपाश में पत्तापत्ता उड़ा था
साथ डाली संग वह कली भी टूटी थी
जिसमें जीवन विशेष छुपी थी
हरियाली अब निर्जीव पड़ी थी
मिट्टियों में बस अपना अस्तित्व खो रही थी
बारिश संग संयोग बना था
धरा ने अपना कोख खोला था
उस बीज ने नव रुप लिया था
नवांकुर बन फूट पड़ा था...!!
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स्वरचित
सीमा...✍️🍁
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