मेरी धरती के फूल
माटी मैं इस धरा की..
मन मेरा फूल फूल..
मैं ऊपजाऊँ..नेह उड़ेल
अंजुरी भरभरकर स्नेह के फूल..
सारे पौध पत्तियों से भरे,
खिलाएं उनमें फूल..
फूल खिलें महकाएं बगियन को
सुगंधों से भरपूर..
माटी मैं धरा की
मन मेरा फूल फूल
रँगबिरँगी तितलियां...
फूलों की सखियाँ..
कूकते कोयलो संग
चिडियों की टोलियां
भर देतीं अपने गीतों से
ये निर्जन टोलियां
माटी मैं धरा की
मन मेरा फूल फूल
फूल खिलें गुलशन गुलशन
नफरत के कांटों का हो सफाया
दिल के दीप जलें हर आँगन
फूलों सी कोमल प्रीत खिलें
प्रेम रँग में रँग जाए यह उपवन
हो जाऊं मैं पावन
माटी मैं धरा की
मन मेरा फूल फूल
मैं ऊपजाऊं..नेह उड़ेल
अंजुरी भरभरकर स्नेह के फूल।
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स्वरचित.....सीमा...✍️
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