कविता ःबाल विवाह
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गुड़िया का ब्याह रचाना था मुझको
पायल चूड़ी बिंदी संग सजाना था उसको
बाबुल तूने ये क्या किया
गुड़िया की जगह मुझको बिठा दिया
मैं तुमपर इतनी बोझ हूँ क्या
मैं तुम्हारा अँग नहीं हूँ क्या
क्यों मुझे तुम त्याग रहे
ममता और प्यार का अपमान कर रहे
पराए घर नहीं बाबुल तुम मुझे पराया कर रहे
मुझे बोझ बना कर विदा तुम कर रहे
मैं भी चिड़िया बन उड़ना चाहती हूँ
न बांधो बंधन मैं भी जीना चाहती हूँ ।।
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स्वरचित
सीमा...✍️🍁
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