संघर्ष ःएक जीवन
जीने की जद्दोजहद....
इस धरा पर विजय पाने की
संघर्ष ही तो जीवन है...
रेत के ढेर में रात अंधेरे...
मां कछुई अंडे देकर रेत से ढंक कर..
दूर समुद्र में जा खो जाती है...
सूर्य की तपिश पाकर..
वो सारे अंडे नौनिहाल कछुए का रूप धरकर..
दूर बैठी अपनी माता के पास पहुंचने के लिए
जद्दोजहद में लग जाते हैं...
कुछ अपने दम पर तो कुछ सागर की थपेड़ों संग..
पहुंच जाते हैं अपने सागर पिता के घर...
सागर ही तो उन्हे पानी के अंदर जीना सिखाता है...
और जीने के लिए जद्दोजहद भी...
यही जीवन है... और संघर्ष ही जीवन है।
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स्वरचित और मौलिक
सीमा प्रियदर्शिनी सहाय✍️✍️