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कहानीः सुनहरी छड़ी

22 अक्टूबर 2021

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राधिका अपने घर की दालान पर सो रही थी..नींद तो उसकी आँखों से कोसों दूर थी।

गरमी की रात थी।घर के अंदर गरमी लगती थी इसलिए नंदलाल,राधिका का पिता दालान में चार चारपाई बिछा देता था।जिसमें वह,उसकी पत्नी,बेटी राधिका और बेटा ध्रुव सोते थे।

नंदलाल पेशे से एक साप्ताहिक व्यापारी थे।सप्ताह सप्ताह सामान को इस म़ंडी से उस मंडी तक ले जाना,बेचना..सब करते थक जाते थे।

सीता,राधिका की माँ घरेलू महिला थी।वह भी पूरा दिन घर के काम करते थक जाती थीं।
छोटा भाई ध्रुव छोटा था।वह जल्दी सो जाता था।

गरमी की छुट्टियाँ चल रही थीं ।राधिका की मस्तियाँ कुछ अधिक बढ़ गई थी।न सुबह उठने का टेंशन नहीं न  टाइम पर स्कूल जाने की जरुरत..जब थकान ही नहीं तो नींद कैसे आती भला..!

वह टुकुर टुकुर आसमान को निहार रही थी। अचानक तारों को गिनते ..एक..दो...तीन..और अचानक उसे आसमान में तीन रोशनियां दिखीं।लाल ,पीली और हरी।
तीनों रोशनियां बार बार जल बुझ रहीं थीं।

राधिका डर गई।उसे लगा कि किसी और ग्रह से एलियन तो नहीं आ रहे हैं।वह चिल्लाकर अपने पिता को आवाज़ देना चाहती थी पर सारी आवाज उसके गले में ही दबकर रह गई।

थोड़ी देर में वे रौशनियाँ जब थोड़ा और नीचे आईं तो राधिका को समझ में आया कि ये तो परियाँ हैं।अब वह उन्हें देखकर खुश हो गई।
परियाँ भी उसे देख लीं थीं।वे तीनों नीचे उतरीं और उससे बातें करने लगी।
राधिका से बातें करना परियों को बहुत ही अच्छा लगा।वह बहुत ही प्यारी बच्ची थी।फिर से मिलने का वादा करके परियाँ वापस चली गईं।

अब करीब करीब प्रत्येक पूर्णिमा की रात को जब भी वे धरती पर आतीं,राधिका से मिलतीं जरूर।

प्रयागराज में जहाँ पर त्रिवेणी मिलती हैं,वहाँ  पूर्णिमा के चाँद से अद्भुत छटा बिखर जाती थी ,उन्हीं दिव्य बारिश से परियाँ स्नान करतीं थीं।इससे उनका बल और भी बढ़ जाता था।

एक  पूर्णिमा की रात जब परियाँ धरती पर आयीं स्नान के लिए,तब ठंडी ठंडी हवा चल रही थी।चारों ओर झमाझम बारिश हो रही थी।परियों के लिए बड़ी  मुश्किल हो गई थी पर,स्नान तो जरूरी था।अब तीनों असमंजस में पड़ गईं।बारिश में उनके खूबसूरत पंख बेकार हो जाते।

उन तीनों ने तय किया कि अपने पंख राधिका को कुछ देर तक सौंप कर स्नान करेंगी फिर वापस आकर पंख ले लेंगी।

  परियों के पंख लेकर  राधिका ने संभाल कर रख दिया।
जब परियाँ वापस आयीं तो अपने पंख सही सलामत देख बहुत ही खुश हुईं।

उन्होंने राधिका को एक सुनहरी  छड़ी दी और कहा 
राधिका,तुम जब भी मुसीबत में हो तो इस छड़ी से कहना ,यह तुम्हें सही रास्ता दिखाएगी।फिर कभी बहुत संकट हो तो इसे जमीन पर तीन बार पटकना।मैं जरूर तुम्हारी मदद करने आ जाऊँगी।

राधिका ने उनको धन्यवाद देकर वह छड़ी संभाल कर रख लिया।

***
करीब दो महीने बाद जब उसके पिता दूसरे गांव से दो दिन तक नहीं लौटे तब सीता ,राधिका की मां बहुत ही डर गई।

दोनों गाँव के बीचोंबीच एक बहुत बड़ा जंगल था।जहाँ लुटेरे,चोर डाकूओं के अलावा जंगली जानवर भी भरे पड़े थे।
चोर डाकू आते जाते राहगीरों को लूट लेते थे।कई बार उन्हें जान से भी मार देते थे।
गाँव के सरपंच ने सीता को भरोसा दिलाया मगर सिर्फ भरोसे से क्या होता है।
राधिका को परी की दी छड़ी का ध्यान आया।वह उससे जाकर बोली
"छड़ी रानी,बता मेरे बाबा कहाँ है?मुझे वहाँ ले चल?"
ये बोलकर उसने छड़ी को तीन बार पटका।
तुरंत ही वहाँ पर नीली परी आ गई।
छड़ी आगे आगे चल रही थी राधिका और परी पीछे पीछे।

सबका संदेह सही था।जंगल के डाकुओं ने नंदलाल को बंधक बना कर पेड़ पर रस्सियों से बाँध रखा था।

यह देखकर राधिका रोने लगी।नीली परी नेउसे पुचकार कर प्यार किया और भरोसा भी दिया।

वहाँ पर डाकू आग जलाकर पिकनिक मना रहे थे और बेचारे नंदलाल रस्सियों से बंधे..उन्हें देख रहे थे।

नीली परी ने कुछ मंत्र बुदबुदाया और सुनहरी छड़ी हवा में लहराने लगी।
वह डाकुओं को पीटने लगी।कोई भी यह नहीं समझ पाया कि छड़ी अपनेआप कैसे पीट रही है।

थोड़ी देर म़े सारे डाकू धराशायी हो गए।राधिका अपने पिता को रस्सियों से छुड़ा ली।

नंदलाल बहुत ही अचंभित थे अपनी बिटिया की बहादुरी देखकर।

जब उनको पता चला कि परी उनकी बेटी की अच्छी दोस्त बन गई है तब तो वह बहुत ही खुश हुए।उन्होंने परी को जान बचाने के लिए शुक्रिया कहा।

नीली परी परीलोक चली गई और वे राधिका के साथ घर लौट आए।

सब ओर राधिका का बहुत नाम हो गया था।

बसंतपुर में अब लोग एकदम बेखौफ रहते थे उन्हें पता था कि उनके पास परी का दिया सुनहरी छड़ी है जो कि हमेशा उनकी रक्षा करेगी।

*****
स्वरचित..सीमा..✍️✨
©®

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