दैनिक विषय ःशाम
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मेरी मुस्कुराहटों के पीछे
कौन सा तूफान छिपा था
हँसती रही मैं सजती रही
उम्मीद के दामन पर
आशाओं के फूल खिलाती रही
अंधेरों में आँखों से बहती धारों को
चुपके से मैने पोछा था
आज उम्मीदों पर शाम घिर आई है
हर तरफ अंधेरा सा है
उदासी से भरा सारा गुलिस्तां है
तुम जो चले गए चमन रूठा है
फलक तक हम बिछे थे मगर
मेरा प्यार झूठा है।
***
स्वरचित
सीमा..✍️
©®
दैनिक प्रतियोगिता के लिए