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झाँसी (होटल अशोक) 15 फरवरी' 95 (शाम 07:45)

5 नवम्बर 2021

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इस वक्त झाँसी के एक होटल 'अशोक' में बैठकर यह लिख रहा हूँ।

आज सुबह करीब सात बजे ग्वालियर (वायु सेना स्थल, महाराजपुर) से रवाना हुआ था- खजुराहो
के लिए- साइकिल से।

मौसम अच्छा था। थोड़ी बूँदा-बाँदी हो चुकी थी- हवा में सोंधी महक थी। बदली भी छायी हुई थी। देवगण, कृष्णा, दत्ता, विनोद ने हँसी-मजाक में शुभकामनायें दीं। विनोद ने दो फोटो भी खींचे।

गोले का मन्दिर होते हुए मैं स्टेशन की ओर बढ़ा। मोरार-ठाटीपुर वाले रास्ते में भीड़ ज्यादा होती है और दूरी भी ज्यादा है। फ्लाई-ओवर के बगल से निकल कर ए.जी. ऑफिस होते हुए ग्वालियर-झाँसी रोड (SH37) पर आया। माधवनगर के सामने एक चाय दूकान पर रुका- वहाँ पहले भी कभी एकबार आया था। चाय-ब्रेड खाकर फिर रवाना हुआ।

हल्की ठण्ड थी। शहर से बाहर आकर कैरियर पर रखे बड़े बैग को ठीक किया और साइकिल की सीट पर स्पंज के टुकड़े को बाँधा। अब तक चैन ढीला पड़ चुका था। (नये चैन को एक-दो दिन साइकिल चलाने के बाद फिर कसवाना पड़ता है।) आवाज हो रही थी और साइकिल भारी चल रही थी। टेकनपुर से पहले पड़नेवाली पहाड़ियों पर जहाँ-जहाँ चढ़ाव था- वहाँ हालत थोड़ी खराब हुई।

साइकिल में मैंने 'रियर व्यू मिरर' लगवा लिया था, जो बहुत काम दे रहा था। टेकनपुर में बी.एस.एफ. अकादमी से गुजरने के बाद एक नुक्कड़ में रुका। चाय पी। चैन कसवाया। अब साइकिल मजे से चलने लगी। रास्ता भी समतल आ गया।

उम्मीद के अनुसार साढ़े बारह बजे तक डबरा पहुँच गया। बाजार से बाहर आकर एक ढाबे में रुका। तौलिया और एक हाफ-पैण्ट जरा गीला था- उसे साइकिल पर टाँगा। पाँच तन्दूरी रोटी, दाल-फ्राई और सलाद खाकर वहीं एक चारपाई पर लेट गया- आधे घण्टे के लिए।

डबरा से पौने दो बजे चला। अब मौसम उदास लग रहा था। अकेलापन भी बुरा लग रहा था। सड़क अच्छी थी। कुछ देर के लिए तो करीब तीन मिनट प्रति किलोमीटर की रफ्तार से साइकिल भाग रही थी। बीच में एक जगह सुस्ताया भी था।

करीब तीन बजे एक बड़ा-सा चबूतरा नजर आया- बड़े नीम और पीपल के पेड़ों के नीचे। तुरन्त देवगण के दिये हुए स्पंज के बड़े शीट को ग्राउण्ड-शीट की तरह बिछाया, छोटे शीट को मोड़कर तकिया बनाया और लम्बा लेट गया। लेटे-लेटे 'चन्दामामा' की कहानियाँ याद आयीं- जब राहगीर घोड़ा बाँधकर बावली में पानी पीकर पेड़ की ठण्डी छाँव में सो जाते थे- तब कोई-न-कोई दैवी घटना घट जाती थी।

दतिया में दूर से ही महलों को देखा- सचमुच देखने लायक लगे। सोचा, लौटते समय इन महलों को जरुर देखना है। (रास्ते में सोनागीर के जैन मन्दिर भी काफी दूर से दिखाई पड़े थे।) एस.एन.सिंह ने 'ठेकुए'-जैसा एक पकवान दिया था। साइकिल के हैण्डल पर टँगे हैवर-शेक में वह रखा था। बीच-बीच में वही चबाते हुए मैं चलता रहा।
(बहुत बाद में उस पकवान का नाम ध्यान आया- 'अनरसा'।)

झाँसी शाम के छह बजने से पहले पहुँच गया। चुँकि अन्धेरा नहीं घिरा था, इसलिए पहले तो मैं आगे बढ़ गया; फिर लगा- सही आराम और सुरक्षा जरुरी है। मुड़कर एक सज्जन से पूछकर पहले प्रकाश होटल में गया। वहाँ सिंगल कमरे का किराया नब्बे रुपये था। वहीं के लड़के ने अशोक होटल का सुझाव दिया। यहाँ आया तो कमरा पैंतालीस रुपये में मिला- जबकि कमी कुछ नहीं है। अटैच्ड बाथरूम, वाश-बेसिन, चेयर-टेबल, कैम्पर, दो रैक सभी हैं। इतना कम किराया क्यों है, पता नहीं। स्टाफ भी अच्छे हैं। अभी एक स्टाफ साइकिल अन्दर रख लेने के लिए बोलने आया था। साइकिल अन्दर रखकर, पैरों पर तेल की मालिश कर अब खाने की तैयारी है।

(क्रमशः)

काव्या सोनी

काव्या सोनी

Bahut hi accha likha aapne 👌

5 नवम्बर 2021

जयदीप शेखर

जयदीप शेखर

5 नवम्बर 2021

जी, धन्यवाद।

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रचनाएँ
ग्वालियर से खजुराहो: एक साइकिल यात्रा
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बात 1995 के फरवरी की है, जब मैंने ग्वालियर से खजुराहो तक की यात्रा साइकिल से की थी- अकेले। लौटते समय मैं ओरछा और दतिया भी गया था। कुल 8 दिनों में भ्रमण पूरा हुआ था और कुल-मिलाकर 564 किलोमीटर की यात्रा मैंने की थी। इसे एक तरह का सिरफिरापन, दुस्साहस या जुनून कहा जा सकता है, मगर मुझे लगता है कि युवावस्था में इस तरह का छोटा-मोटा ‘एडवेंचर’ करना कोई अस्वाभाविक बात नहीं है। खजुराहो के इतिहास का जिक्र करते समय दो-एक पाराग्राफ मैंने बाद में जोड़े हैं; बाकी सारी बातें लगभग वही हैं, जो मैंने यात्रा के दौरान अपनी डायरी में लिखी थीं। (सचित्र ई'बुक पोथी डॉट कॉम पर उपलब्ध है।)
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झाँसी (होटल अशोक) 15 फरवरी' 95 (शाम 07:45)

5 नवम्बर 2021
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<p>इस वक्त झाँसी के एक होटल 'अशोक' में बैठकर यह लिख रहा हूँ।</p> <p>आज सुबह करीब सात बजे ग्वालियर (

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छतरपुर (शहर से बाहर) 17 फरवरी' 95 (दिन 11:00 बजे)

5 नवम्बर 2021
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<p> छतरपुर शहर अभी कोई दस-बारह किलोमीटर दूर है। सड़क के किनारे एक छोटे-से जंगल में बैठकर यह लिख

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खजुराहो (होटल 'राहिल') 17 फरवरी' 95 (रात 08:30 बजे)

5 नवम्बर 2021
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<p> इस वक्त खजुराहो में मध्य प्रदेश पर्यटन विभाग के होटल राहिल के डोरमिटरी के एक गद्देदार बेड प

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खजुराहो 18 फरवरी' 95 (शाम 07:15 बजे)

5 नवम्बर 2021
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<p> यह समय जबकि जगमगाते बाजार में रहने का है, मैं होटल के बिस्तर पर लेटे-लेटे यह लिख रहा

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बमीठा कस्बे से 4-5 किमी बाहर 19फरवरी' 95 (दिन 12:15बजे)

5 नवम्बर 2021
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<p> आज सुबह दस बजकर दस मिनट पर होटल राहिल से रवाना हुआ। इसके पहले सुबह साढ़े छः बजे उठकर तैयार ह

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नवगाँव (एवरेस्ट लॉज) 19 फरवरी'95 (रात्रि 8:15)

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<p> खजुराहो से चलते वक्त मेरा पक्का इरादा था, छतरपुर में ही रात बितानी है; चाहे शाम के चार बजे

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ओरछा (श्रीराम धर्मशाला) 20 फरवरी' 95 (रात्रि 9:00 बजे)

5 नवम्बर 2021
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<p> कल एवरेस्ट लॉज में मुझे ऐसा अनुभव हुआ था, जैसे मैं पुराने जमाने का एक मुसाफिर हूँ और लम्बी

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ग्वालियर (वायु सेना स्थल, महाराजपुर) 22 फरवरी' 95

5 नवम्बर 2021
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<p>ओरछा के श्रीराम धर्मशला में सुबह नीन्द खुलते ही विचार आया, क्यों न नदी के किनारे जाकर सूर्योदय<br

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दतिया

5 नवम्बर 2021
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<p>साढ़े चार बजते-बजते मैं दतिया पहुँच गया था। यूँ तो वहाँ का महल शाम पाँच बजे बन्द हो जाता है, मगर व

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वापस ग्वालियर

5 नवम्बर 2021
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<p>सुबह काफी सुबह- साढ़े पाँच बजे ही- मेरी आँखें खुल गयीं। 'रोजे' से सम्बन्धित निर्देश तथा गाने कुछ द

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