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वापस ग्वालियर

5 नवम्बर 2021

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सुबह काफी सुबह- साढ़े पाँच बजे ही- मेरी आँखें खुल गयीं। 'रोजे' से सम्बन्धित निर्देश तथा गाने कुछ देर से सुनायी पड़ रहे थे। अच्छा लग रहा था।

तैयार होकर जब तक मैं बाहर निकला- सूरज उग चुका था। एक जलाशय के किनारे दो फोटो खींचा- उगते सूरज का। आखिरी स्नैप थे।

आकाश में हल्के बादल थे। दो-एक घण्टे बाद बदली ही छा गयी।

यह मेरे सफर का अन्तिम चरण था। दतिया से ग्वालियर की दूरी कोई 80 किलोमीटर है। घुटनों में दर्द का नामो-निशान नहीं था। सड़क अच्छी थी। साइकिल मानो अपने-आप चल रही थी। कुछ तो मानसिक प्रभाव था और कुछ बदली ने मौसम को रूमानी बना दिया था।

बीच में करीब आठ बजे मैं सोनागीर के जैन मन्दिरों के तरफ मुड़ गया। फिर मैं लौट आया- दूरी से मुझे ये
कुछ खास नहीं लगे। इसमें मेरा एक घण्टा खर्च हुआ।

अच्छी रफ्तार से मैं चलता रहा। मैं सुल्तानगढ़ जलप्रपात भी जाना चाहता था, पर पता चला- वह ग्वालियर-शिवपुरी मार्ग पर है।

(कुछ दिनों बाद अपने दोस्तों के साथ 'टाटा-407' बुक करके जब मैं दुबारा दतिया आया था, तब हमलोग सोनागीर के इन जैन मन्दिरों को देखने गये थे। बहुत अच्छा लगा था। दतिया में हमलोग एक धार्मिक स्थल पर भी गये थे, जिसका नाम शायद 'पीताम्बर पीठ' है। अन्त में हमलोग 'सुल्तानगढ़ जलप्रपात' पर गये थे। थोड़ी देर में वहाँ एक बस में एल.एन.सी.पी.ई. की लड़कियाँ भी आ गयीं थीं। वह एक यादगार शाम थी। प्रसंगवश, एकबार हमलोग इसी तरह मिनी बस बुक करके शिवपुरी भी गये थे।)

ग्वालियर शहर में प्रवेश किया कोई ढाई बजे। हल्की बूँदा-बाँदी हुई। (जब मैंने सफर की शुरुआत की थी, तब भी बूँदा-बाँदी हुई थी।)

तीन-सवा तीन बजे मैं अपने 'बिल्लेट' में था।

दोस्तों से थोड़ी बातचीत हुई। पानी गुनगुना करके नहाया। कुछ कपड़े धोये, तो कुछ धोबी को देने के लिए रख दिये। शाम 'पटेल मार्केट' से भी घूमकर आया।

रात बिल्लेट में मेस के खाने को 'फ्राइ' करके दोस्तों के साथ खाना खाया। एक पत्र लिखा- 'पीकू' को।

अब इस डायरी को समाप्त करने जा रहा हूँ। घड़ी मध्यरात्रि के एक बजने में पाँच मिनट बाकी का समय दिखा रही है।

कहाँ तो सफर में मैं रात आठ बजते-बजते सो जाया करता था... और कहाँ यहाँ पुरानी दिनचर्या फिर शुरु हो गयी...

(समाप्त)

ममता

ममता

बहुत सुन्दर यात्रा वृतांत साझा किया आपने

5 नवम्बर 2021

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रचनाएँ
ग्वालियर से खजुराहो: एक साइकिल यात्रा
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बात 1995 के फरवरी की है, जब मैंने ग्वालियर से खजुराहो तक की यात्रा साइकिल से की थी- अकेले। लौटते समय मैं ओरछा और दतिया भी गया था। कुल 8 दिनों में भ्रमण पूरा हुआ था और कुल-मिलाकर 564 किलोमीटर की यात्रा मैंने की थी। इसे एक तरह का सिरफिरापन, दुस्साहस या जुनून कहा जा सकता है, मगर मुझे लगता है कि युवावस्था में इस तरह का छोटा-मोटा ‘एडवेंचर’ करना कोई अस्वाभाविक बात नहीं है। खजुराहो के इतिहास का जिक्र करते समय दो-एक पाराग्राफ मैंने बाद में जोड़े हैं; बाकी सारी बातें लगभग वही हैं, जो मैंने यात्रा के दौरान अपनी डायरी में लिखी थीं। (सचित्र ई'बुक पोथी डॉट कॉम पर उपलब्ध है।)
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झाँसी (होटल अशोक) 15 फरवरी' 95 (शाम 07:45)

5 नवम्बर 2021
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<p>इस वक्त झाँसी के एक होटल 'अशोक' में बैठकर यह लिख रहा हूँ।</p> <p>आज सुबह करीब सात बजे ग्वालियर (

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छतरपुर (शहर से बाहर) 17 फरवरी' 95 (दिन 11:00 बजे)

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<p> छतरपुर शहर अभी कोई दस-बारह किलोमीटर दूर है। सड़क के किनारे एक छोटे-से जंगल में बैठकर यह लिख

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खजुराहो (होटल 'राहिल') 17 फरवरी' 95 (रात 08:30 बजे)

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<p> इस वक्त खजुराहो में मध्य प्रदेश पर्यटन विभाग के होटल राहिल के डोरमिटरी के एक गद्देदार बेड प

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खजुराहो 18 फरवरी' 95 (शाम 07:15 बजे)

5 नवम्बर 2021
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<p> यह समय जबकि जगमगाते बाजार में रहने का है, मैं होटल के बिस्तर पर लेटे-लेटे यह लिख रहा

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बमीठा कस्बे से 4-5 किमी बाहर 19फरवरी' 95 (दिन 12:15बजे)

5 नवम्बर 2021
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<p> आज सुबह दस बजकर दस मिनट पर होटल राहिल से रवाना हुआ। इसके पहले सुबह साढ़े छः बजे उठकर तैयार ह

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नवगाँव (एवरेस्ट लॉज) 19 फरवरी'95 (रात्रि 8:15)

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<p> खजुराहो से चलते वक्त मेरा पक्का इरादा था, छतरपुर में ही रात बितानी है; चाहे शाम के चार बजे

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ओरछा (श्रीराम धर्मशाला) 20 फरवरी' 95 (रात्रि 9:00 बजे)

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<p> कल एवरेस्ट लॉज में मुझे ऐसा अनुभव हुआ था, जैसे मैं पुराने जमाने का एक मुसाफिर हूँ और लम्बी

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ग्वालियर (वायु सेना स्थल, महाराजपुर) 22 फरवरी' 95

5 नवम्बर 2021
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<p>ओरछा के श्रीराम धर्मशला में सुबह नीन्द खुलते ही विचार आया, क्यों न नदी के किनारे जाकर सूर्योदय<br

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दतिया

5 नवम्बर 2021
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<p>साढ़े चार बजते-बजते मैं दतिया पहुँच गया था। यूँ तो वहाँ का महल शाम पाँच बजे बन्द हो जाता है, मगर व

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वापस ग्वालियर

5 नवम्बर 2021
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<p>सुबह काफी सुबह- साढ़े पाँच बजे ही- मेरी आँखें खुल गयीं। 'रोजे' से सम्बन्धित निर्देश तथा गाने कुछ द

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