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बमीठा कस्बे से 4-5 किमी बाहर 19फरवरी' 95 (दिन 12:15बजे)

5 नवम्बर 2021

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 आज सुबह दस बजकर दस मिनट पर होटल राहिल से रवाना हुआ। इसके पहले सुबह साढ़े छः बजे उठकर तैयार होकर मैं कैमरा लेकर निकल गया था। किसी मन्दिर के साथ सूर्योदय का फोटो मैं लेना चाहता था। सूर्यास्त का फोटो पश्चिमी समूह के मन्दिरों के साथ लिया जा सकता था, पर कल वराह व ब्रह्मा मन्दिरों से लौटते समय देर हो गयी थी। फिलहाल मैं अनुमान से बाय पास रोड की ओर चला। मेरा
अन्दाज सही निकला। उधर ही पूर्वी समूह के वराह और ब्रह्मा मन्दिरों के पीछे की पहाड़ियों के पीछे से सूर्य उदय हो रहा था। मैंने फोटो लिया- आखिरी स्नैप था। कुछ और आगे बढ़ा तो पता चला मैं मार खा गया। कोई सौ मीटर आगे जाकर फोटो लेना चाहिए था। इससे मन्दिरों का साईड व्यू आता, जिस पर सूर्य की रोशनी पड़ रही थी। मैंने बिलकुल रियर व्यू से फोटो लिया था, जिसमें मन्दिर काला दिखेगा और शिखर ही
बतायेंगे कि ये कोई मन्दिर हैं। खैर।   

 जैन मन्दिर वाले रास्ते से बाजार में आया और झील के किनारे बैठ गया। हल्की ठण्ड थी। वापसी की योजना बनाने लगा। चार रातें रास्ते में बितानी हैं- छतरपुर, मऊरानीपुर, ओरछा, दतिया या डबरा। पाँचवी शाम ग्वालियर पहुँचने की उम्मीद थी।   

 होटल में आठ बजे लौटा। नहा-धोकर तैयार हुआ। हल्का नाश्ता किया। सामान पैक किया और जब वापसी यात्रा के लिए पैडल मारा तब घड़ी में दस बजकर दस मिनट हो रहे थे। यह समय प्रसिद्ध है। घड़ियों के चित्रों या विज्ञापनों में आम तौर पर यही समय दर्शाया जाता है।   

 बाजार में उसी कैफेटेरिया (रिमझिम) में चाय पी। साइकिल में हवा तथा पहियों में तेल डलवाया और चल पड़ा।   

 सड़क उतनी सुन्दर नहीं थी, जितनी 17 की रात लग रही थी। अक्सर चीजें अन्धेरे या कम रोशनी या कृत्रिम
रोशनी में खूबसूरत लगती हैं, मगर दिन के उजाले में उनकी पोल खुल जाती है।   

 कल 'विदेशी' बनने में जो कसर बाकी रह गयी थी, आज वह भी पूरी कर दी। बिना बाँह वाली काली टी शर्ट और (वायु सेना का पुराने मॉडल वाला) काला चश्मा मैंने लगा लिया।  बमीठा में पौने बारह बजे पहुँचा। मलाई-राबड़ी खाकर फिर चला। आज बमीठा भी दोपहर में वीरान और सूना लगा, जबकि 17 की शाम यह भी खूबसूरत कस्बा लग रहा था। यानि किसी भी चीज के सुन्दर लगने में बहुत सारे फैक्टर काम करते
हैं। एक भी फैक्टर घटा, तो सुन्दरता कम हो जाती है।

(क्रमशः)  

काव्या सोनी

काव्या सोनी

Bahut hi accha likha aapne 👌

5 नवम्बर 2021

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रचनाएँ
ग्वालियर से खजुराहो: एक साइकिल यात्रा
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बात 1995 के फरवरी की है, जब मैंने ग्वालियर से खजुराहो तक की यात्रा साइकिल से की थी- अकेले। लौटते समय मैं ओरछा और दतिया भी गया था। कुल 8 दिनों में भ्रमण पूरा हुआ था और कुल-मिलाकर 564 किलोमीटर की यात्रा मैंने की थी। इसे एक तरह का सिरफिरापन, दुस्साहस या जुनून कहा जा सकता है, मगर मुझे लगता है कि युवावस्था में इस तरह का छोटा-मोटा ‘एडवेंचर’ करना कोई अस्वाभाविक बात नहीं है। खजुराहो के इतिहास का जिक्र करते समय दो-एक पाराग्राफ मैंने बाद में जोड़े हैं; बाकी सारी बातें लगभग वही हैं, जो मैंने यात्रा के दौरान अपनी डायरी में लिखी थीं। (सचित्र ई'बुक पोथी डॉट कॉम पर उपलब्ध है।)
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झाँसी (होटल अशोक) 15 फरवरी' 95 (शाम 07:45)

5 नवम्बर 2021
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<p>इस वक्त झाँसी के एक होटल 'अशोक' में बैठकर यह लिख रहा हूँ।</p> <p>आज सुबह करीब सात बजे ग्वालियर (

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छतरपुर (शहर से बाहर) 17 फरवरी' 95 (दिन 11:00 बजे)

5 नवम्बर 2021
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<p> छतरपुर शहर अभी कोई दस-बारह किलोमीटर दूर है। सड़क के किनारे एक छोटे-से जंगल में बैठकर यह लिख

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खजुराहो (होटल 'राहिल') 17 फरवरी' 95 (रात 08:30 बजे)

5 नवम्बर 2021
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<p> इस वक्त खजुराहो में मध्य प्रदेश पर्यटन विभाग के होटल राहिल के डोरमिटरी के एक गद्देदार बेड प

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खजुराहो 18 फरवरी' 95 (शाम 07:15 बजे)

5 नवम्बर 2021
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<p> यह समय जबकि जगमगाते बाजार में रहने का है, मैं होटल के बिस्तर पर लेटे-लेटे यह लिख रहा

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बमीठा कस्बे से 4-5 किमी बाहर 19फरवरी' 95 (दिन 12:15बजे)

5 नवम्बर 2021
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<p> आज सुबह दस बजकर दस मिनट पर होटल राहिल से रवाना हुआ। इसके पहले सुबह साढ़े छः बजे उठकर तैयार ह

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नवगाँव (एवरेस्ट लॉज) 19 फरवरी'95 (रात्रि 8:15)

5 नवम्बर 2021
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<p> खजुराहो से चलते वक्त मेरा पक्का इरादा था, छतरपुर में ही रात बितानी है; चाहे शाम के चार बजे

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ओरछा (श्रीराम धर्मशाला) 20 फरवरी' 95 (रात्रि 9:00 बजे)

5 नवम्बर 2021
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<p> कल एवरेस्ट लॉज में मुझे ऐसा अनुभव हुआ था, जैसे मैं पुराने जमाने का एक मुसाफिर हूँ और लम्बी

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ग्वालियर (वायु सेना स्थल, महाराजपुर) 22 फरवरी' 95

5 नवम्बर 2021
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<p>ओरछा के श्रीराम धर्मशला में सुबह नीन्द खुलते ही विचार आया, क्यों न नदी के किनारे जाकर सूर्योदय<br

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दतिया

5 नवम्बर 2021
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<p>साढ़े चार बजते-बजते मैं दतिया पहुँच गया था। यूँ तो वहाँ का महल शाम पाँच बजे बन्द हो जाता है, मगर व

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वापस ग्वालियर

5 नवम्बर 2021
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<p>सुबह काफी सुबह- साढ़े पाँच बजे ही- मेरी आँखें खुल गयीं। 'रोजे' से सम्बन्धित निर्देश तथा गाने कुछ द

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