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खामोश शहर

29 अक्टूबर 2021

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कुछ "दबे पाँव" ये शहर में चुपचाप चले आते हैं, कुछ सपने अपने बस्ते की ऊपर वाली जेब मे रख कर जिनको वो ताले से बंद कर देते हैं,

एक कान में इयरफोन लगा कर अपनी धुन में मगन और दूसरे से दुनिया भर का शोर, और बातें सुन कर चले आते हैं शहर में अपना सब कुछ आज़माने,

कुछ को वक़्त रहते ही मंज़िल मिल जाती है, और कुछ शहर के साथ सफर पर निकल पड़ते हैं कि अब ये शहर ही ज़िद जिंदगी और सपने पूरे करेगा, गर घर को लौट जाएंगे तो भी हारा हुआ कहलाएंगे...
सब मंज़ूर है पर ये हारना वाला शब्द मंज़ूर नही है।

घर से शहर जीतने निकले हैं बिना जीते तो जाना जैसे किसी जंग में हार कर जाने जैसा होगा तो लड़ते रहो और रोज़ नया सीखते रहो...

वो जो रात के अंधेरे में दूर से एक मध्धम सी आवाज़ सुनाई पड़ती है जैसे कोई माइक पर कुछ गया रहा है या कहीं से किसी जानवर की आवाज़ या कहीं से कोई हॉर्न की आवाज़,

जब रात को बिस्तर मिलता है तो ये शहर के शोर अपने से लगते हैं, एक खामोशी और कुछ अपने आप मे भागते हुए कुछ शब्द जो बस ज़हन में घर तो करते हैं पर बस पन्नो में उतरने में वक़्त लेते हैं, 

ये सब वहीं लोग लिखते हैं अपने किस्सों में कहानियों में जो लोग चुपचाप "दबे पाँव" ये शहर में चुपचाप चले आते हैं।।।

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सही विचार।

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Thank you Sir

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16 सितम्बर 2021
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<div>ये लाल रातों में क्या हुआ है कि इनका रंग उड़ गया है...</div><div>ये ख़ामोश आँखे बस रात भर जाग कर

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29 अक्टूबर 2021
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<div>कुछ "दबे पाँव" ये शहर में चुपचाप चले आते हैं, कुछ सपने अपने बस्ते की ऊपर वाली जेब मे रख कर जिनक

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11 अगस्त 2023
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हथेली पर तुम्हारा नाम लिखते हैं... मिटाते हैं...मेट्रो में खड़े खड़े सुमित यहीँ सोच रहा था कि नए शहर ने क्या दिया है, शायद पुराने दोस्त खोये जो शायद दोस्त थे भी नही...वक़्त के साथ दोस्त भी तो कम हो जाते

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नमस्कार आप सुन रहे हैं विविध भारती, मीडियम वेव और शार्ट वेव पर अभी आप सुनेंगे राम चरित मानस के कुछ अंश...हमारे दिन की शुरुआत तो कुछ इस तरह होती थी सुबह 7 बजे से ऑन हुआ रेडियो दिन भर के खालीपन को दूर क

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पराया होता हुआ अपना शहर...अपना होता हुआ पराया शहर

12 अगस्त 2023
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"जब शहर छूटते हैं तो क्या होता है?"ये सवाल ही गलत लगता है मुझे, सवाल ये होना चाहिए "जब शहर छूटते है तो कैसा लगता है?"ये बस एक या आधे कागज़ भर की कहानी नही है, ये कहानी उन तमाम सपनो, अपनो और उनके स

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सवालों की क़ीमत में जवाबों पर मंदी हावी है.... कुछ इस तरह नफ़े और नुकसान में गुज़र रही ज़िन्दगी अपनी।।

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हमारी तमाम बातें अब तो क़ैद हैं इस रंगीन पिटारे मे...मगर इश्क़ तुमसे अब भी रेडियो के दौर वाला है।।।कहते हैं ना वक़्त गुज़रता है चीजें बदलने लगती हैं शहर का चौराहा, कॉलेज की ज़िंदगी और अब तो इश्क़ भी परवान च

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