कुछ "दबे पाँव" ये शहर में चुपचाप चले आते हैं, कुछ सपने अपने बस्ते की ऊपर वाली जेब मे रख कर जिनको वो ताले से बंद कर देते हैं,
एक कान में इयरफोन लगा कर अपनी धुन में मगन और दूसरे से दुनिया भर का शोर, और बातें सुन कर चले आते हैं शहर में अपना सब कुछ आज़माने,
कुछ को वक़्त रहते ही मंज़िल मिल जाती है, और कुछ शहर के साथ सफर पर निकल पड़ते हैं कि अब ये शहर ही ज़िद जिंदगी और सपने पूरे करेगा, गर घर को लौट जाएंगे तो भी हारा हुआ कहलाएंगे...
सब मंज़ूर है पर ये हारना वाला शब्द मंज़ूर नही है।
घर से शहर जीतने निकले हैं बिना जीते तो जाना जैसे किसी जंग में हार कर जाने जैसा होगा तो लड़ते रहो और रोज़ नया सीखते रहो...
वो जो रात के अंधेरे में दूर से एक मध्धम सी आवाज़ सुनाई पड़ती है जैसे कोई माइक पर कुछ गया रहा है या कहीं से किसी जानवर की आवाज़ या कहीं से कोई हॉर्न की आवाज़,
जब रात को बिस्तर मिलता है तो ये शहर के शोर अपने से लगते हैं, एक खामोशी और कुछ अपने आप मे भागते हुए कुछ शब्द जो बस ज़हन में घर तो करते हैं पर बस पन्नो में उतरने में वक़्त लेते हैं,
ये सब वहीं लोग लिखते हैं अपने किस्सों में कहानियों में जो लोग चुपचाप "दबे पाँव" ये शहर में चुपचाप चले आते हैं।।।