हथेली पर तुम्हारा नाम लिखते हैं... मिटाते हैं...
मेट्रो में खड़े खड़े सुमित यहीँ सोच रहा था कि नए शहर ने क्या दिया है, शायद पुराने दोस्त खोये जो शायद दोस्त थे भी नही...
वक़्त के साथ दोस्त भी तो कम हो जाते हैं और जो बचते हैं वो दोस्त नही होते बस होते हैं जिनका नाम होता है..."ज़रूरत"
"क्योंकि जब आपको 'ज़रुरत' होती है तब वो काम आते हैं और जब उन्हें 'ज़रूरत' पड़ती है तब आप उनके काम आ जाओ यहीँ दोस्ती है...या इसी को कहते हैं 'ज़रूरत'...
ये शहर दिन में जितना भागता है ना उतना ही रात को तन्हा हो जाता है, तमाम भीड़ से रोज़ मुलाकात तो होती हैं पर कोई साथ में बैठ के हाल नही पूछता किसी के पास वक़्त भी तो नहीं है...
एक स्टेशन से दूसरे स्टेशन गुज़रती जा रही थी, बस वो आखिरी स्टॉप नही आ पा रहा था...जहाँ से ये सब शुरू हुआ था या खत्म हुआ था...
मेट्रो से बाहर आते ही आवाज़ आती है ऑटो वाले की कि कहाँ जाना है बैठिये...
हर शहर में कोई ना कोई जगह होती होगी जहाँ सुकूँ मिलता होगा...
सुमित के लिए वो जगह थी घाट के किनारे जहाँ बस रात होने पर बस ये नदी कुछ एक नाव और नाव वाले, नदी के उस पार वो ऊँची ऊँची इमारतों में जिनमें ना जाने कितने सालों से रोशनी तक नही हुई, पास में बैठे सिगरेट जलाये और चाय लिए बैठे कुछ लोग, एक लड़का जो गिटार लिए परफॉर्म कर रहा है और लोग अपने बेसुरे आवाज़ में उसके अच्छे सुर से सुर को मिला रहे हैं...
और एक सुमित पीठ पर बैग लिए आस्तीन मोड कर पास की दुकान पर खड़े होकर बिस्किट के पैकेट लेता है और एक चाय लेकर नदी के एकदम पास बैठ जाता कि कुछ बातें है जो वो बस नदी से कह सकता है पर किसी और को बता नही सकता...
क्योंकि बहाव के साथ ये बातें भी बह जाएंगी...
बिस्किट के पैकेट देख कर कुछ कुत्ते पास आ जाते हैं,
पैकेट खोल कर एक एक बिस्किट बारी बारी से हर कुत्ते को खिलाता है जैसे किसी का भी हक़ अधूरा ना रह जाये...
पैकेट ख़तम हो जाते हैं सुमित चाय के साथ जेब मे रखी सिगरेट जला लेता है और देखता रहता है लहरों को आसमान को और पानी मे तैरती नाव और लहर में पड़ती कुछ रोशनी को...
और थोड़ी देर बाद चला जाता है उस गिटार वाले लड़के के पास और कहता कि क्या तुम ये धुन बजा दोगे प्लीज...
"छोटी सी कहानी से बारिशों के पानी से सारी वादी भर गई"
शायद वो रात उस शहर में उस गिटार वाले लड़के की आख़िरी रात है वो सबकी फ़रमाइश पूरी कर रहा है...
और जाते जाते उसका आखिरी गाना ये था...
"तुझसे नाराज़ नही ज़िन्दगी हैरान हूँ मैं"
और इस गाने के बाद वो उन्ही पुराने दोस्तों की तरह ओझल हो जाता है "अपने में" और "अपनों में"
चलो भाई रात का दो बज गया है फिर मिलते हैं, सुबह ऑफिस भी तो जाना है।।।