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रेडियो लम्हा

11 अगस्त 2023

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नमस्कार आप सुन रहे हैं विविध भारती, मीडियम वेव और शार्ट वेव पर अभी आप सुनेंगे राम चरित मानस के कुछ अंश...

हमारे दिन की शुरुआत तो कुछ इस तरह होती थी सुबह 7 बजे से ऑन हुआ रेडियो दिन भर के खालीपन को दूर करता हुआ देर रात को जाकर कहीँ बंद हुआ करता था...

समझ नही आता था पहले के इसमे लोग बोलते कैसे हैं पर जो भी एकदम नया सा होता है वो इसमें आ जाता था जैसे कोई जादू कर दिया हो...

हमने भी एक रेडियो लिया था सिरहाने रखा रहता था...शहर में तो रहते थे पर वहाँ मीडियम वेव और शार्ट वेव के अलावा कुछ नही आता था तो रेडियो के एंटीना से एक तार जोड़े थे और वो तार ले जाकर ऊपर छत पर वाले एंटीना में जोड़ दिए थे ताकि एफ.एम सुन सकें,
सुना था एफ.एम एक दम नए नए गाने बजाता था तो नए गाने सुनने को इतनी मेहनत तो करनी बनती थी...

घर पर बताते थे कि रेडियो सुनते वक़्त पढ़ाई पर ज्यादा ध्यान लगता है तो बस इस वजह से रेडियो खोपड़िया पर रखें हैं, घर वालों को बस रिजल्ट अच्छा चाहिए था तो ले-दे कर नंबर अच्छे आ जाते थे...

एक बार तो सुबह सुबह रेडियो पर इनाम भी जीते थे पर लेने नही जा पाए, पहली बात के हमको ऑफिस नही पता था और दूसरी बात 110 किलोमीटर दूर सिर्फ मिठाई का डिब्बा लेने आना शायद घर वालों को बताने का कोई बहाना नही था इसके लिए...
पर दिल मे मलाल तो रहा कि अपने फेवरेट रेडियो जॉकी से मिल नही पाए...

खैर उस वक़्त का रेडियो हमारे आज कल के डी.जे. से कम थोड़ी था एक से एक नए गीत मॉर्निंग मसाला से शुरु होता सफर रात को ओल्ड मेलोडीज़ और लव गुरु पर आकर खत्म होता था...

एक दो बार बिस्तर के सिरहाने से सफाई करते वक़्त रेडियो गिर कर फूट भी गया तब मानो ऐसा लगता था कि जैसे किसी ने दिल पर इतना ज़ोर से मार दिया हो कि दर्द बन्द ना हो रहा हो...फिर उसको बनवाने की ज़िद और मायूस चेहरे से दुकान पर पूछना के 
"अंकल कब तक सही हो जाएगा?"

रेडियो बस कुछ और नही था ये बस था उन तमाम यादों का पिटारा जिसमे किसी गर्मी की दुपहरिया में बाग में लेटे हुए कहीँ फौजी भाइयों के लिए कार्यक्रम, कहीं लोकगीत,कहीं देश और दुनिया का हाल और कहीँ पर क्रिकेट मैच की हिंदी कमेंट्री...
"और ये लगा Bsnl चौका connecting India"

वो रेडियो दौर एक रेडियो लम्हा बन कर गुज़र गया वक़्त अपने साथ बहुत कुछ लेकर आता है और लेकर भी जाता है...


हमारी तमाम बातें अब तो क़ैद हैं इस रंगीन पिटारे मे...
मगर इश्क़ तुमसे अब भी रेडियो के दौर वाला है।।।




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हमारी तमाम बातें अब तो क़ैद हैं इस रंगीन पिटारे मे...मगर इश्क़ तुमसे अब भी रेडियो के दौर वाला है।।।कहते हैं ना वक़्त गुज़रता है चीजें बदलने लगती हैं शहर का चौराहा, कॉलेज की ज़िंदगी और अब तो इश्क़ भी परवान च

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