हमारी तमाम बातें अब तो क़ैद हैं इस रंगीन पिटारे मे...
मगर इश्क़ तुमसे अब भी रेडियो के दौर वाला है।।।
कहते हैं ना वक़्त गुज़रता है चीजें बदलने लगती हैं शहर का चौराहा, कॉलेज की ज़िंदगी और अब तो इश्क़ भी परवान चढ़ा था...
शहर से बारहवीं तो पास कर लिए थे पर अब कदम बढ़ने लगे थे कॉलेज की तरफ...
एडमिशन की भागम-भाग में दुनिया बदल रही थी...वो रेडियो अब भी वहीं सिरहाने रखा था...बिना किसी शिकायत के चुपचाप सा...
कभी कभी अम्मा सुबह बजा देती थी रेडियो तो ये भी कहता होगा चलो कोई तो है हाँथ लगाने वाला...
ज़माना एक कदम आगे बढ़ रहा था अब लोग नए गाने सुनने को रेडियो नही सुनते थे क्योंकि सबने एक नया शौक शुरू किया था सीडी और डीवीडी प्लेयर...
एमपी3 में नए गाने आ जाते थे पिक्चर चल जाती थी इन सबमें वो दौर भी गुज़र गया जिसमें कहीँ रेडियो भी हुआ करता था...
पर दौर चाहें बदल रहा हो पर मीडियम वेव और शार्ट वेव एफ.एम के साथ अभी भी उतने ही नए नए गाने सुना रहे थे...
ये ज़िंदा रहने की जद्दोजहद थी शायद क्योंकि समय बदल गया था...
दुनिया मोबाइल को लेकर भाग रही थी...सब कुछ एक ही छत के नीचे आ गया था बात भी हो रही थी मेमोरी कार्ड में भी अपने पसंद के गाने आ जाते थे वीडियो भी चल जाते थे...
अब वो सिरहाने रखा रेडियो भी अब बूढ़ा हो चला था या फ़िर अब मेरा सिरहाना ही बदल गया था शहर बदल गया था ना...
अब तो उस शहर में थे जहाँ वो वाला ऑफिस भी पास में था और अब उस ऑफिस का पता भी पता था पर वो फेवरेट वाली आर.जे. नही थे वहाँ...
शायद इसी को परिवर्तन कहते हैं...शहर बदल गया और बस एक पुरानी अधूरी मोहब्बत और रेडियो वाली यादें छोड़ कर...
सब कुछ है यहाँ पर बस अब वो रेडियो नही था जो सिरहाने था, ना वो थी उस पार जो सुबह के लिए आवाज़ थीं...
पता है यहाँ पर तो वो रेडियो एंटीना को तार से भी नही जोड़ना पड़ता है...पर
रेडियो को तो दिल से जोड़ना...
और
जैसे कि ये वाला गाना अभी अभी रेडियो पर सुनना...
मैं रहूँ या ना रहूँ, तू मुझसे कहीँ बाकी रहना।।।