सुबोध अब घर में ऊबने लगा था. लगभग ग्यारह-बारह वर्ष का बालक इस बात से अनभिज्ञ था कि किसी अज्ञात दुश्मन ने सारी दुनिया पर एक साथ आक्रमण कर दिया था.लगभगएक सदी उपरान्त आयी नयी महामारी ने समस्त विश्व कोआक्रान्त कर लोगों को अपने घरों में कैद रहने को विवश कर दिया था.पिछले चार सौ वर्षों में 1720 के प्लेग,1820 के हैजा,1918-20 के स्पेनिश फ्लू ने भयंकर तबाही मचायी थी.और अब 2020 में कोरोना ने कहर बरपा दिया जिससे कैसे उबरें,यह शोध का विषय था.स्वास्थ्य और आवश्यक सेवाओं को छोड़कर सब कुछ बंद था.स्कूल-कॉलेज,बाज़ार और सरकारी कार्यालय आम आदमी के लिये बंद घोषित कर दिये गये थे.परिवहन सेवायें बंद थी.माता-पिता ने उसे अपने दोस्तों के साथ पड़ोस के मैदान
में भी खेलने जाने के लिये मना कर दिया था.दोनों स्वयं घर से ही ऑन-लाइन ऑफिस का कार्य कर रहे थे.उनके अतिरिक्त घर में दादाजी थे.उनका समय घर के छत पर लगी बगिया के देख-भाल व टीवी पर समाचार चैनलों अथवा धार्मिक प्रवचनों को प्रसारित करने वाले चैनलों के बीच ही बीत जाता था.बेचारा अकेला बालक क्या करे.प्ले स्टेशन पर क्रिकेट खेलने में क्या मजा है?जबतक अपने मित्रों के साथ प्रतिद्वन्दी टीम को दौड़ा-दौड़ा कर न हराया जाये,खेल में क्या मजा है.कम्प्यूटर से जीत कर कोई खुशी महसूस नहीं होती.दादाजी को भी लगता था,बालक को खेलने के लिये एक साथी चाहिये.आख़िर एक दिन उन्हौंने सुबोध से पूछ ही लिया,आजकल तुम उदास क्यों रहते हो?दादाजी,कोई मेरे साथखेलता ही नहीं.मैं किसके साथ खेलूँ?मम्मी और पापा के पास तो मेरे लिये समय ही नहीं है.दादाजी बोले,चलो आज से हमलोग खेलेंगे.पर आप मेरे साथ दौड़पाओगे,बालक को चिंता होने लगी.नहीं,हमलोग घर के अंदर खेले जाने वाला कोई खेल खेलेंगे.मोबाईल पर खेले जाने वाले अनगिनत खेलों के इस दौर में सुबोध किसी तरह लूडो ढूंढ पाया.दादाजी ने बोर्ड का अगला पृष्ठ खोला.इसमें कोष्ठकों में एक से सौ तक की संख्या लिखी थी.जहाँ-तहाँ सांप और सीढी के चित्र बने थे.बालक अपने मित्र बबलू के साथ ऑन-लाईन खेले इस खेल से थोड़ा बहुत परिचित था.दादाजी को उसने बताया कि इस खेल में उसने बबलू को हरा दिया था.उन्हौंने अपने पोते को बधाई दी,फिर पूछने लगे,जानते हो इस खेल का असली नाम क्या है और इसकी शुरुआत कहाँ से हुई? सुबोध ने नहीं में सिर हिलाया.सामान्य ज्ञान की उसकी जानकारी अच्छी थी और वह नयी-नयी बातें सीखनेके लिये हमेशा उत्सुक रहता था.दादाजी,मुझे इस खेल के बारे में विस्तार से बताईये,सुबोध ने कहा.दादाजी बोले,चलो आज मैं तुम्हें इस खेल का इतिहास बताऊंगा.यह खेल प्रारम्भ से ऐसा नहीं था.दूसरी शताब्दी से खेले जाने वाले इस खेल का नाम मोक्षपातम था.हिन्दू दर्शन के सांख्य,योग,न्याय,वैशेषिक,मीमांशा व वेदान्त पर आधारित इस खेल के द्वारा यह शिक्षा दी जाती थी कि कोई भी व्यक्ति
सत्कार्य कर मोक्ष को प्राप्त कर सकता है तथा बुरे कर्मों के परिणामस्वरूप निम्न कोटि के जीव योनि में पुनर्जन्म लेकर संसार के दु:खों को भोगना पड़ेगा.दयालुता,विश्वास और मानवता मनुष्य को जीवन में आगे बढ़ाती है,जिसे खेल में सीढ़ी के माध्यम से प्रदर्शित किया गया है.वासना, क्रोध,हत्या और चौर्यकर्म विषधर सर्प के दंश के समान है,जो पीछे अथवा नीचे ले जाती है.सुबोध को ये बातें अधिक समझ में नहीं आती थी.ऐसे समय में सचिन और सारिका उसकी मदद कर सकतेथे.उसने दादाजी से अपने मित्रों को बुलाने की अनुमति माँगी.दादाजी ने कहा,ठीक है,शाम को छत परबैठेंगे और इस खेल के बारे में विस्तार से बातें करेंगे.
शाम को छत पर तीनों बच्चे दादाजी की झूलने वाली कुर्सी (रॉकिंग चेयर) से कुछ दूर मास्क पहने एक-दूजे से दो ग़ज की दूरी का पालन करते हुए बैठे.बगिया में तरह-तरह के फूल खिले थे और कई तितलियाँ निडर होकर मंडरा रही थी.ब्याध पतंगों ने भी उनसे होड़ ले रखी थी.सुबोध एक तितली के पीछे दौड़ा.तभी दादाजी छत पर आ गये और अपनी कुर्सी पर
बैठे.सचिन ने पूछा,दादाजी,आप हमें सांप और सीढ़ी खेल का इतिहास बताने वाले हैं?दादाजी बोले,चलो आपलोगों को
इस खेल के इतिहास,खेलने के नियम और खेल-खेल में मिलने वाली शिक्षा से परिचय करवाते हैं.जैसा कि सुबोध को
बता चुका हूँ,इस खेल को मोक्षपातम कहा जाता था.सौ कोष्ठकों वाले फ़लक पर बारहवें कोष्ठक को धार्मिक निष्ठा व विश्वास,इक्यावनवें को विश्वसनीयता,सत्तावनवें को औदार्य,छिहत्तरवें को ज्ञान तथा अठहत्तरवें को वैराग्य का कोष्ठक माना गया था क्योंकि मानव जीवनकाल के उन पड़ावों पर यह स्वाभाविक अनुभव था.जबकि इकतालीसवें में अवज्ञा,चौवालीसवें में दंभ,उनचासवें में अशिष्टता,बावनवें में चौर्य,अठ्ठावनवें में झूठ,बासठवें में मत्तता,उनहत्तरवें में ऋण,तिहत्तरवें में हत्या,चौरासीवें में क्रोध,बानबेवें में तृष्णा,पंचानबेवें में मिथ्याभिमान व निन्यानवेवें कोष्ठक में लिप्सा को रखा गया था,जो आगाह करता था कि इनमें पड़कर मोक्ष नहीं मिलेगा.आंध्रप्रदेश में एकादशी जागरण के दौरान मंदिर के पंडों-पुरोहितों द्वारा भी यह खेल खेला जाता था.वहाँ इसे वैकुण्ठपल्ली अथवा परमपद सोपान पातम भी कहा जाता था.तेरहवीं शताब्दी में ज्ञानदेव ने इसेकैलाश पत्तम के नामसे लोकप्रिय बनाया.इसे ज्ञान चौपड़ अथवा ज्ञान बाज़ी भी कहा जाता है.जैन धर्म कीशिक्षाओं को आधार बनाकर इस खेल की चौरासी कोष्ठक वाले फ़लक की रचना की गयी थी,जिसकापालन कर मोक्ष के द्वार तक की यात्रा की जा सकती थी.जब ईस्ट इंडिया कम्पनी के द्वारा या खेलइंग्लैंड और ब्रिटिश उपनिवेशों के अन्य देशों तक पहुँचा,तो वहाँ की संस्कृति और धर्म की शिक्षाओं के अनुरूप परिवर्तन हुए.पाल और सेन के शासनकाल में इस खेल केबौद्ध संस्करण का भी प्रमाण मिलता है. खेल के नियमों के बारे में सारिका ने उत्सुकता प्रकट की.दादाजी ने कहना शुरू किया, इस खेल केलिये कम से कम दो खिलाड़ियों की आवश्यकता होती है और अधिक से अधिक चार लोग भाग ले सकते हैं.लाल, हरी,नीली और पीली गोटियों और घनाकार पासे,जिसपर प्रत्येक फलक पर अलग-अलग एक से छ: बिंदु बने होतेहैं,के साथबोर्ड पर बनी सांप और सीढ़ियों के साथ भाग्य का यह खेल खेला जाता है.खेल प्रारंभकरने के लिये पासे को फेंक कर यह तय किया जाता है कि पहले गोटी कौन चलेगा.जिसखिलाड़ी को सर्वप्रथम छ: का आंकड़ा मिलेगा वही खेल की की शुरुआत करेगा. उसे पासेफेंकने का एक और मौका दिया जाता है.यदि लगातार तीन बार छ: का आंकड़ा आ जाये तो उसका योग शून्य माना जायेगा.इसी प्रकार सभी खिलाड़ी अपना भाग्य अजमाते हैं और पासे के अंकानुसार एक -एक कोष्ठक आगे बढ़ते जाते हैं.मार्ग में आने वाली सीढ़ी उसे आगे ले जाती है और सर्प दंश नीचे पूँछ वाले कोष्ठक में.इसी प्रकार यह खेल चलता रहता है.यदि सौवें कोष्ठक से कोई खिलाड़ी दो कोष्ठक पीछे हो और उसे पासे फेंकने पर पाँच का अंक आ जाये तो उसे दो कोष्ठक आगे चलकर तीन कोष्ठक पीछे आना होगा.जो खिलाड़ी सबसे पहले सौवें कोष्ठक तक अपनी गोटी पहुंचा देगा वो विजयी माना जायेगा.सलमान रश्दी ने प्रख्यात उपन्यास ‘मिड नाईट्स चिल्ड्रेन’ में लिखा है कि प्रत्येक सीढ़ी के आगे एक सांप मौजूद है.इसी प्रकार हर सांप के आगे सीढ़ी अवश्य मिलेगी.अर्थात प्रत्येक असफलता के आगे अवसर और हर अवसर के मार्ग में बाधाएं मिलती हैं.मनुष्य को इनसे विचलित नहीं होना चाहिये.
बच्चों को बहुत अच्छा लगा.सुबोध बोला, अब इस खेल में अधिक मजा आयेगा क्योंकि इस खेल केइतिहास और नियमों हम भली-भांति परिचित हैं. दादाजी ने कहा, चलो खेल शुरुकरें.चारों खिलाड़ी,सुबोध,सचिन,सारिकाऔर दादाजी खेल में मशगूल हो गये.