कहीं जख्म है नासूर बनें,कहीं समंदर बसा है आँखों मे,
कहीं तन्हा हुआ सा है कोई,कहीं सुलग रहा कोई रातों मे…
कुछ इस क़दर बेताब हुए, दीवानें राह-ए-उल्फ़त मे,
कहीं जीना कोई भूल बैठा, तो कहीं डूबा है कोई यादों मे…
…इंदर भोले नाथ…
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