हर सुबह….
वो ममता का दुलार
ना ख्वाहिश,ना आरज़ू
ना किसी आस पे
ज़िंदगी गुजरती थी…
पे वो जिद्द अपनी
मिलने की….
वो उम्मीद अपनी
था वक़्त हमारी मुठ्ठी मे
मर्ज़ी के बादशाह थे हम
थें लड़ते भी,थें रूठते भी
फिर भी बे-गुनाह थें हम
शराफ़त ने चोला ओढ़ ली
कुछ यूँ…
रफ़्तार ज़िंदगी ने ली
मर्ज़ी ने दम तोड़ दी……….
Blog-http://merealfaazinder.blogspot.in