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"9:45 की लोकल"

17 जनवरी 2019

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ऑटो स्टैंड से दौड़ता हुआ , मैं जैसे ही रेलवे स्टेशन पहुँचा, पता चला 9:45 की लोकल जा चुकी है !
मेरे घर से तकरीबन 9 .कि.मि. दूर पर है रेलवे स्टेशन, छोटा सा स्टेशन है,लोकल ट्रेन के अलावा 1-2 एक्शप्रेस ट्रेन की भी स्टोपीज़ है, मैं स्टेशन मास्टर के पास गया और पूछा सर बनारस के लिए कोई ट्रेन है ! स्टेशन मास्टर ने बताया दोपहेर 2:45 पर 1 एक्सप्रेस है, वो भी 1 घंटा देर से है ! 10 बजने वाला था, तकरीबन 6 घंटे मुझे ट्रेन के लिए इंतेजारकरना पड़ेगा ! रेलवे स्टेशन से तकरीबन 100 मीटर की दूरी पर है, बस स्टैंड मैने सोचा चलो देखते है शायद कोई बस मिल जाए बनारस के लिए ! वहाँ जाकर पता चला के बनारस के लिए सुबह 8 बजे और शाम 5 बजे ही बस मिलती है! वापस रेलवे स्टेशन आकर मैं एक पेड़ के नीचे चबूतरा सा बना हुआ था, जहाँ 3 बुजुर्ग जो वहीं आस-पास के रहने वालेथे! बैठे बाते कर रहे थे, मैं भी उन्ही के बगल मे जाकर बैठ गया,
अभी 15-20 मिंन्ट ही गुज़रे होंगे, तभी 1 औरत जिनकी उम्र तकरीबन 50-55 साल की होगी, उन्होने मुझे हाथ से इशारा कर के बुलाया, मैने सोचा किसी और को बुला रही हैं, मैने ध्यान नही दिया, दुबारा फिर उन्होने बोला "बेटा ज़रा यहाँ आना" मैने सोचा यहाँ मेरी उम्र का कोई और तो दिख नही रहा, शायद मुझे ही बुला रही है, पर मैं तो इन्हे पहचानतानही ? हो सकता है ये मुझे पहचानती हो, ये सोचकर मैं उनके पास गया,
माफ़ कीजिएगा मैने आपको पहचाना नही क्या आप मुझे पहचानती है, मैने पास जाकर ये पूछा उन्होने कहा बेटा मैं (*******) गाव की रहने वाली हू, मेरे दो बेटे हैं बड़े बेटे की शादी हो गयी है उसके दो लड़के 1 लड़का 1 लड़की है, दिली मे अपने बीबी और बचों के साथ रहता है, दूसरा बेटा तुम्हारी ही उम्र का है, 3-4 दिन हुए वो भी भाई के पास दिल्ली गयाहुआ है, मुझे झुंझलाहट सा महसूस हुआ मैने कहा माजी आपने मुझे ये सब बताने के लिए यहाँ बुलाया, नही बेटा वो मैं अपने पत्ती के लिए दवा लेने आई थी उनकी दवा यही से चलता है, दवा लेके मैं ऑटो से बस स्टैंड रही थी,! मेरे पास 1 थैला था जिसमे कुछ समान थे, ऑटो वाले को किराया देकर मैने पैसे वाला बेग उस थैले मे रख दिया, जब मैं ऑटो से उतरी वो थैला ऑटो मे ही छूट गया,! जब मैं बस स्टैंड आई फिर मुझे ध्यान आया, वापस जाके देखा ऑटो वाला वहाँ नही था ! बेटा मेरा घर यहाँ से तकरीबन 25 किमी दूर है, मेरे पास पैसे नही हैं 35 रुपया बस का किराया लगता है, बेटे अगर तुम्हारे पास पैसे हो तो मुझे 35 रुपया दे दो ! जिस डॉकटर के यहाँ से दवा चलता है वहाँ जाने के लिए भी मेरे पास पैसे नही है,
पहले मुझे लगा झूठ बोल रही है, फिर सोचा कपड़े तो अच्छे पहने है, और देखने मे भी सीधी- साधी और सभ्य औरत मालूम हो रही थी, एक हाथ मे पोलिथीन का बेग था जिसमे टैब्लेट्स और कुछ कैप्सूल्स दिख रहे थे! मैने पर्स से 50 रुपया निकाला और उनकी तरफ बढ़ाया, उन्होने कहा बेटा मुझे सिर्फ़ 35 रुपया दे दो, मैने कहा माजी रख लो मेरे पास खुले नही है, पैसे लेते हुए बोली बेटा सुखी रहो भगवान तुम्हारी हर इच्छा पूरी करे, फिर उन्होने ने अपने घर का पता बताया और बोली बेटे कभी उधर आओगे तो मुझसे ज़रूर मिलना, मैने कहा ठीक है माजी, फिर वो बस स्टैंड की ओर जाने लगी,
फिर मेरे दिमाग़ मे ग़लत ख्याल आया मैने उसका पीछा किया, के कहीं झूठ तो नही बोल रही, फिर मैने देखा वो बस स्टैंड की तरफ गयी और एक बस मे चढ़ गयी, मुझे अपने आप पे बड़ा गुस्सा आया, फालतू मे मैने शक किया ! फिर मैं वापस स्टेशन मे आया और ट्रेन का इंतेजार करने लगा, 3 बज़कर 50 मिंट पर ट्रेन आई, टिकेट तो मैने पहले ही ले रखा था, रात को 9 बजे मैं बनारस पहुच गया, पूरी रात स्टेशन पर ही रहा, सुबह 9:30 बजे था, मेरे इंटरव्यू का टाइम मैं 9 बजे ही पहुच गया, मुझे नौकरी मिल गयी ! मैने अपना resume naukari.com पे डाल रखा था, वही से इंटरव्यू के लिए कॉल आया था !
2 साल बाद मेरे एक दोस्त की शादी थी, जो मेरे साथ ही काम करता था, बस से उतरने के बाद ऑटो द्वारा मैं दोस्त के घर की तरफ जा रहा था, तभी उसी ऑटो मे जिसमे मैं बैठा था, दो औरत चड़ी, एक की उम्र तकरीबन 50-55 के करीब होगा, और दूसरी 20-25 साल की होगी, उसकी गोद मे एक बचा भी था, जो 2-3 महीने का होगा, ऑटो चलने लगीवो बूढ़ी औरत बड़े ध्यान से मुझे देख रही थी, जब मैं उसकी तरफ देखा तो जैसे वो मुझे जानती हो वैसे मुझे देखकर हसने लगी, मुझे अजीब सा लगा, मैने ध्यान नही दिया, फिर देखा वो मेरी तरफ ही देख रही थी, मैं पूछने ही वाला था, के क्या आप मुझे जानती है, तभी उसने कहा बेटा तुम वही हो ना जिसने मुझे 50 रुपये दिए थे, जब मेरा पैसे वाला थैला,ऑटो मे छूट गया था, जैसे ही उन्होने ये बात कही मुझे याद आ गया, फिर मैने कहा वो आप ही है, उन्होने कहा हाँ बेटा वो मैं ही हू, ये मेरी बहू है दूसरे लड़के की पत्नी, मैने कहा वही जो दिल्ली नौकरी के लिए गया था बोली हाँ उसी की पत्नी है, और ये उसका बेटा है, इसी को लेकर डॉक्टर के पास गयी थी, हल्का सा बुखार है ! बहुत सारी बातें हुई, मेरे बारेपूछा क्या करते हो मैने बताया अपने बारे मे के 2 साल से नौकरी कर रहा हू, बनारस मे ! जिस दिन आप मुझे स्टेशन पे मिली थी न उस दिन मैं बनारस ही जा रहा था, इंटरव्यू के लिए ! बस गया और आपकी कृपा से नौकरी लग गयी, वहीं 2 साल से नौकरी कर रहा हू! फिर उन्होने अपने घर चलने को बहुत जिद्द किया,! मैने कहा माजी मेरे दोस्त की शादीहै, उसी के घर जा रहा हू, जो (******) गाव मे पड़ता है, उन्होने बताया जिस गाव मे जा रहे हो, वहाँ से हमारा गाव 4 किमी दूर है, कल शादी बीत जाए, परसों हमारे घर ज़रूर आना बेटे ! मैने कहा ठीक है माजी, मेरा स्टेशन आने वाला है , मैंने कहा ठीक है माजी मैं चलता हू, उन्होने अपने बैग से 500 रुपये का निकाला और मेरे पॉकेट मे डालने लगी! मैनेबहुत मना किया, पर वो नही मानी, बोली रख लो बेटा तुम मेरे बेटे जैसे हो और मेरे पॉकेट पैसा डाल दिया! मै वो पैसा पॉकेट से निकाल कर बचे के हाथ मे रखने लगा, उनके माना करने पर मैने कहा जब मैं आपके बेटे जैसा हू तो आपका बेटा मेरे भाई जैसा हुआ, और उसका बेटा मेरा भतीजा हुआ, इसलिए ये पैसा मैं अपने भतीजे को दे रहा हू ! ये कह करपैसा मैने बचे के हाथ मे थमा दिया ! उन्होने कहा ठीक है, लेकिन परसों तुम हमारे यहाँ ज़रूर आना बेटा, हम तुम्हारा इंतेजार करेंगे, और अपने बहू को बोली की बहू अपना मोबाइल नम्बर दे दो इनको, मोबाइल नंबर मैने लिख लिया, फिर मैं ऑटो से उतर गया,
दोस्त के घर पहुँच गया! अगले दिन शादी बीत जाने पर ! मैं और मेरा दोस्त उस गाव मे गये, पता पूछते हुए पहुँच गये, आगे बड़ा सा दालान था, उस दालान से ही सट्टे पीछे की तरफ तकरीबन 10-12 घर थे ! चारो तरफ से बाउंड्री दिया हुआ था, बड़ा सा लोहे का गेट लगा हुआ था, गेट खुला था ! हम अंदर चले गये, बाइक खड़ा कर के दालान मे गये, साइडके एक कमरे मे तकरीबन 60-65 साल के एक बुजुर्ग बैठे थे ! हमे देख के वो कमरे से बाहर आए, और हमे बैठने का इशारा किया, दालान मे 7-8 कुर्सिया रखी हुई थी, हम बैठ गये ! फिर वो घर की तरफ आवाज़ लगते हुआ बोलें "मनोज" (शायद उनके बेटे का नाम हो) दो लोग आए है, मीठा और पानी लाना ! अंदर से एक लड़का आया जो मेरे ही उम्र काथा, आया हमे देख कर फिर अंदर चला गया ! थोड़ी देर बाद एक प्लेट मे 4 लड्डू,एक जग मे पानी और 2 गिलास लेकर बाहर आया, लड्डू हमारे पास रख के गिलास मे पानी डालते हुए बोला पानी पीजिए ! हम पानी पीने लगे, फिर वो अंदर की तरफ आवाज़ लगाते हुए बोला माँ चाय बनाना !
हमारे पानी पीने के बाद हमसे पूछा कहाँ से आए हैं, आप लोग और किससे मिलना है ! मैने कहा जी मेरा नाम "इंदर" है, वो माजी से मिलना था ! इंदर ? कहीं आप आप वो तो नही जो रेलवे स्टेशन पर मेरी माँ से.....! मैने कहा जी मैं वही हू, फिर क्या था, इतना सुनना था के उसने मुझे गले लगा लिया, बोला बहुत-बहुत धन्याबाद भाई साहब, और फिरभागता हुआ अंदर की तरफ गया !
अंदर की तरफ से वो ही औरत आईं, नमस्ते माजी" खुश रहो बेटे आओ अंदर आओ,और हमे अंदर ले गयी, बहू फटाफट दो खाना लगाना, हमने माना किया, माजी हम खाना खा के आए है, पर वो हमारी एक सुनी, खाना लग गया, खाना खाने के बाद 2 घंटे तक हम बाते करते रहे, जिस तरह से वो पूरा परिवार हमारे साथ बर्ताव कर रहे थे, लग रहा थाजैसे मैने उन पर बहुत बड़ा एहसान किया हो, उस दिन मुझे अपने आप पर बड़ा गर्व महसूस हो रहा था ! और साथ ही उस दिन मुझे एक बात का एहसास हुआ, के चाहे इंसान कितना ही पैसे वाला क्यों ना हो पर "मजबूरी हर इंसान को मजबूर कर देती है" ! तभी तो वो औरत मुझसे मात्र 35 रुपये माँगने पर बिवस हो गई थी, जिसके घर और खेतों मे 100रूपये रोजाना काम करने वाले जाने कितने मजदूर काम कर रहे थें !
हमारे बहुत कहने बाद उन्ह लोगों ने हमे जाने की इजाज़त दी, मनोज गाव के बाहर तक हमे छोड़ने आया, मेरा मोबाइल नंबर लेते हुए बोला भाई साहब कभी भी कोई काम हो, या किसी चीज़ की ज़रूरत पड़े बस हमे एक कॉल कर देना, हमे बहुत खुशी होगी, के हम आपके कुछ काम सकें ! अपना नंबर भी हमे दिया,
फिर वहाँ से हम चल दिए, उस दिन दोस्त के घर ठहरा, अगले दिन अपने घर गया !
ख़त्म”

दोस्तो कभी भी कोई मजबूर और लाचार इंसान आप से मदद माँगे, तो आप उसकी मदद ज़रूर करना ! क्या पता वो इंसान सच मे मजबूर हो और इतने लोगों के बीच सिर्फ़ आपके पास आस लगा के आया हो आप से मदद माँगने ! कभी भी किसी ऐसे मजबूर इंसान को नज़र अंदाज़ नही करना,


Writer : इंदर”

Acct- (IBN_
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कहीं डूबा है कोई यादों मे…

23 जून 2016
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कहीं जख्म है नासूर बनें,कहीं समंदर बसा है आँखों मे,कहीं तन्हा हुआ सा है कोई,कहीं सुलग रहा कोई रातों मे…कुछ इस क़दर बेताब हुए, दीवानें राह-ए-उल्फ़त मे,कहीं जीना कोई भूल बैठा, तो कहीं डूबा है कोई यादों मे……इंदर भोले नाथ…http://merealfaazinder.blogspot.in/

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वो बूढ़ी औरत...

24 जून 2016
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रोज सुबह ड्यूटी पे जाना रोज शाम लौट के रूम पे आना,ये रूटीन सा बन गया था, मोहन के लिये ! हालाँकि रूम से फैक्ट्री ज़्यादा दूर नहीं था, तकरीबन१०-१५ मिनट का रास्ता है ! मोहन उत्तर प्रदेश का रहने वाला है,करीब २ सालों से यहाँ (नोएडा) मे एक प्राइवेट फैक्ट्री मे काम कर रहा है ! रोज सुबह ड्यूटी पे जाना,शाम क

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हमें रुलाना नहीं भूली...

25 जून 2016
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अरसा गुजर गये हमेंमुस्कराना भूले हुएहै ज़िंदगी अजीब तूँहमें रुलाना नहीं भूली…इंदर भोले नाथ…http://merealfaazinder.blogspot.in/

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मेरे लाल

30 जून 2016
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फूलों पे बैठेभौंरे गुनगुनानेलगे हैं..तितलियों केपंख भी अबलहराने लगे हैं..देखो वक़्तकितना निकलचुका है..उठो मेरे लालदिन निकलचुका है..देखो ठंडी हवाभी खिड़कियोंसे आने लगी है….गुदगुदा के वोभी तुम्हे उठानेलगी है…देखो तो सबकुछ कितनाबदल चुका है..उठो मेरे लालदिन निकलचुका है..हर जगहकितनी रौनकहै आ गई…..आसमान स

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“सिगरेट……( Cigarette)

30 जून 2016
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सारी रात मैं सुलगता रहा,वो मेरे साथ जलता रहामैं सुलग-सुलग केघुटता रहा,वो जल-जलके, ऐश-ट्रे मे गिरता रहा,गमों से तड़प के मैंहर बार सुलगता रहान जाने वो किस गममे हर बार जलता रहामैं अपनी सुलगन कोउसकी धुएँ मे उछालतारहा, वो हर बार अपनीजलन को ऐश-ट्रेमे डालता रहा,घंटों तलक ये सिलसिलाबस यूँ ही चलता रहामैं हर

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हैं वो ना-समझ “भगवन”

30 जून 2016
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हैं वो ना-समझ “भगवन”जो तुझे पैसों से रिझावे हैं,दुआ करोड़ों की माँगे,चन्द सिक्के चढ़ावे हैं…जिसे ज़रूरत है रोटी की,उसे पानी न पिलावे हैं,जो बना है पत्थरों का, उसे मेवा खिलावे हैं…... इंदर भोले नाथ…

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ख़ौफज़दा दिल…

30 जून 2016
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बड़ा ही ख़ौफज़दा है दिल,इन फरेबी हुक्मरानों से,हयात-ए-आबरू लूटते देखा,अपने ही पासबानों से……इंदर भोले नाथ…ख़ौफज़दा-डरा हुआफरेबी- झूठाहुक्मरानों- नियम बनाने वालेहयात- जीवनआबरू- मर्यादापासबानों- रक्षक-चौकीदार

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वही अपने सारे हैं......!!

2 जुलाई 2016
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चाँद भी वही तारे भी वही..!वही आसमाँ के नज़ारे हैं...!!बस नही तो वो "ज़िंदगी"..!जो "बचपन" मे जिया करते थे...!!वही सडकें वही गलियाँ..!वही मकान सारे हैं.......!!खेत वही खलिहान वही..!बागीचों के वही नज़ारे हैं...!!बस नही तो वो "ज़िंदगी"..!जो "बचपन" मे जिया करते थे...!!... इंदर भोले नाथ…

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"हरिया"

2 जुलाई 2016
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"हरिया"एक बूढ़ी दादी दरवाजे से बाहर आई, और रोते हुए मंगरू से बोली, बेटा तुम्हे लड़का हुआ है ! पर बेटा तोहार मेहरारू बसमतिया इस दुनिया से चल बसी, अब इस अभागे का जो है सो तुम्ही हो ! बेचारी इतने सालों से एक औलाद के लिए तरसती रही, इतने सालों बाद भगवान ने उसकी इच्छा पूरी की, तो बेचारी उसकी सकल देखे बिना

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जिसका नाम हिन्दुस्तान है…

11 जनवरी 2019
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हर तरफ है, मचा कोहराम,है बिखरा, टुकड़ों मे आवाम,है कहीं,नेताओं की मनमानी,सत्ता को समझे पुस्तानी…जिसे चुना, खुद को बचाने को,है वो तैयार, हमें मिटाने को…लड़ता रहा,जो सत्य के लिए,उसका कोई ज़िक्र नहीं…खुदा ढूंढते

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वही अपने सारे हैं......!!

17 जनवरी 2019
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चाँद भी वही तारे भी वही..!वही आसमाँ के नज़ारे हैं...!!बस नही तो वो "ज़िंदगी"..!जो "बचपन" मे जिया करते थे...!!वही सडकें वही गलियाँ..!वही मकान सारे हैं.......!!खेत वही खलिहान वही..!बागीचों के वही नज़ारे हैं...!!बस नही तो वो "ज़िंदगी"..!जो "बचपन" मे जिया करते थे...!!#मेरे_अल

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हे कान्हा....

17 जनवरी 2019
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हे कान्हा...अश्रु तरस रहें, निस दिन आँखों से बरस रहें,कब से आस लगाए बैठे हैं, एक दरश दिखाने आ जाते...बरसों से प्यासी नैनों की, प्यास बुझाने आ जाते...बृंदावन की गलियों मे, फिर रास रचाने आ जाते...राधा को दिल मे रख कर के, गोपियों संग रास रचा जाते...कहे दुखियारी मीरा तोह से,

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"9:45 की लोकल"

17 जनवरी 2019
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ऑटो स्टैंड से दौड़ता हुआ , मैं जैसे ही रेलवे स्टेशन पहुँचा, पता चला 9:45 की लोकल जा चुकी है !मेरे घर से तकरीबन 9 .कि.मि. दूर पर है रेलवे स्टेशन, छोटा सा स्टेशन है,लोकल ट्रेन के अलावा 1-2 एक्शप्रेस ट्रेन की भी स्टोपीज़ है, मैं स्टेशन मास्टर के पास गया और पूछा सर बनारस के लिए कोई ट्रेन है ! स्ट

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"9:45 की लोकल"

17 जनवरी 2019
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ऑटो स्टैंड से दौड़ता हुआ , मैं जैसे ही रेलवे स्टेशन पहुँचा, पता चला 9:45 की लोकल जा चुकी है !मेरे घर से तकरीबन 9 .कि.मि. दूर पर है रेलवे स्टेशन, छोटा सा स्टेशन है,लोकल ट्रेन के अलावा 1-2 एक्शप्रेस ट्रेन की भी स्टोपीज़ है, मैं स्टेशन मास्टर के पास गया और पूछा सर बनारस के लिए कोई ट्रेन है ! स्टेशन मास

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"सिगरेट......( Cigarette)

17 जनवरी 2019
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सारी रात मैं सुलगता रहा,वो मेरे साथ जलता रहामैं सुलग-सुलग के घुटता रहा,वो जल-जलके, ऐश-ट्रे मे गिरता रहा,गमों से तड़प के मैंहर बार सुलगता रहान जाने वो किस गममे हर बार जलता रहामैं अपनी सुलगन कोउसकी धुएँ मे उछालतारहा, वो हर बार अपनीजलन को ऐश-ट्रेमे डालता रहा,घंटों तलक ये सिलसि

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वो बूढ़ी औरत…..

18 जनवरी 2019
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रोज सुबह ड्यूटी पे जाना रोज शाम लौट के रूम पे आना,ये रूटीन सा बन गया था, मोहन के लिये ! हालाँकि रूम से फैक्ट्री ज़्यादा दूर नहीं था, तकरीबन१०-१५ मिनट का रास्ता है ! मोहन उत्तर प्रदेश का रहने वाला है,करीब २ सालों से यहाँ (नोएडा) मे एक प्राइवेट फैक्ट्री मे काम कर रहा है ! र

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बता ऐ-दिल-ए-नादां तुझे हुआ क्या है...

18 जनवरी 2019
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क्यूँ उदास हुआ खुद से है तूँ कहीं भटका हुआ सा है,न जाने किन ख्यालों मे हर-पल उलझा हूआ सा है,बता ऐ-दिल-ए-नादां तुझे हुआ क्या हैखोया-खोया सा रहता है अपनी ही दुनिया मे,गुज़री हुई यादों मे वहीं ठहरा हुआ सा है,बता ऐ-दिल-ए-नादां तुझे हुआ क्या हैशीशा-ए-ख्वाब तो टूटा नहीं तेरे हा

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वो-प्यार याद आया...

18 जनवरी 2019
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गुजरें जो गली से उसके,वो-दीदार याद आया पलते नफ़रतों के दरमियाँ,वो-प्यार याद आया आँखों से मिलने का वो इशारा करना उसका फिर करना तन्हा मेरा,वो इंतेजार याद आया शिकवे लिये लबों पे,बेचैन वो होना मेरा फिर चुपके से लिपट के उसका,वो इज़हार याद आया मिल के उससे दिल का,वो फूल सा खिल जा

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बसंत का मौसम

18 जनवरी 2019
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है महका हुआ गुलाब खिला हुआ कंवल है,हर दिल मे है उमंगेहर लब पे ग़ज़ल है,ठंडी-शीतल बहे ब्यार मौसम गया बदल है,हर डाल ओढ़ा नई चादर हर कली गई मचल है,प्रकृति भी हर्षित हुआ जो हुआ बसंत का आगमन है,चूजों ने भरी उड़ान जो गये पर नये निकल है,है हर गाँव

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“अब भी आता है”

18 जनवरी 2019
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ज़रा टूटा हुआ है,मगर बिखरा नहीं है ये,वफ़ा निभाने का हुनर इस दिल को अब भी आता है…तूँ भूल जाए हमे ये मुमकिन है लेकिन,हर शाम मेरे लब पे तेरा ज़िक्र अब भी आता है…हज़ारों फूल सजे होंगे महफ़िल मे तेरे लेकिन,मेरे किताबों मे सूखे उस गुलाब से खुश्बू

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भूख की आग…………

18 जनवरी 2019
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बहुत पहले की बात है किसी राज्य मे एक राजा रहता था ! राजा बहुत ही बहादुर,पराकर्मी होने के साथ-साथ घमंडी और दुष्ट प्रवृति का भी था ! उसने बहुत से राजाओं को हराकर उनके राज्य पर कब्जा कर लिया ! उसके बहादुरी और दुष्टता के किस्से दूर-दूर तक फैला हुआ था ! वो किसी भी साधु-महात्मा

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आँखों को जो उसका दीदार हो जाए

18 जनवरी 2019
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आँखों को जो उसका दीदार हो जाएमेरा सफ़र भी मुकम्मल यार हो जाएमैं भी हज़ारों ग़ज़ल लिखता उसपेकाश..हमें भी किसी से प्यार हो जाए==========================……......इंदर भोले नाथ…...……...

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ढूंढता फिर रहा खुद को...

18 जनवरी 2019
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कहीं गुम-सा हो गया हूँ मैं क़िस्सों और अफ़सानों मे…ढूंढता फिर रहा खुद को महफ़िलों और वीरानों मे…कभी डूबा रहा गम मे कभी खुशियों का मेला है…सफ़र है काफिलों के संग पाया खुद को अकेला है…प्यालों मे ढलते,देखा कभी कभी मीला मयखानों मे…..ढूंढता फिर रहा खुद को महफ़िलों और वीरानों म

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चूहों ने जब हिम्मत बनाई ,

18 जनवरी 2019
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चूहों ने जब हिम्मत बनाई ,बिल्ली को मार भगाने की…तब बिल्ली ने ढोंग रचाई,की तैयारी हज को जाने की…———————————-Acct- इंदर भोले नाथ…२१/०१/२०१६….

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खेदारु…. एक छोटी सी कहानी….

18 जनवरी 2019
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गंगा नदी के तट से कुछ दूर पे एक छोटा सा गाँव (चांदपुर) बसा है ! जो उत्तर प्रदेश के बलिया जिले मे स्थिति है,उस गाँव मे (स्वामी खपड़िया बाबा ) नाम का एक आश्रम है, जहाँ बहुत से साधु-महात्मा रहते हैं !उन दिनों गर्मियों का मौसम था, एक महात्मा आए हुए थें ! जिनका नाम स्वामी हरिह

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जब हम बिखर गयें…

18 जनवरी 2019
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बिखरे हुए ल्फ्ज़,अल्फाज़ों मे निखर गयें,निखरे मेरे-अल्फ़ाज़,जब हम बिखर गयें…——————————————————–Acct-इंदर भोले नाथ…08/02/2016

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पर अब है,इतना वक़्त कहाँ...

18 जनवरी 2019
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पर अब है,इतना वक़्त कहाँ...फिर लौट चलूं मैं,”बचपन” मे,पर अब है,इतना वक़्त कहाँ…खेलूँ फिर से,उस “आँगन” मे,पर अब है,इतना वक़्त कहाँ…क्या दिन थें वो,ख्वाबों जैसे,क्या ठाट थें वो,नवाबों जैसे…फिर लौट चलूं,उस “भोलेपन” मे,पर अब है,इतना वक़्त कहाँ…

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कुछ तो बहेका होगा,

18 जनवरी 2019
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कुछ तो बहेका होगा,रब भी तुझे बनाने मे…सौ मरतबा टूटा होगा,ख्वाहिशों को दबाने मे…!!आँखों मे है नशीलापन,लगे प्याले-ज़ाम हो जैसे…गालों पे है रंगत छाई,जुल्फ घनेरी शाम हो जैसे…सूरज से मिली हो लाली,शायद,लबों को सजाने मे…कुछ तो बहेका होगा,रब भी तुझे बनाने मे…!!मलिका हुस्न की हो या,हो कोई अप्सरा तुम…जो भी हो

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लम्हा तो चुरा लूँ…

18 जनवरी 2019
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उन गुज़रे हुए पलों से,इक लम्हा तो चुरा लूँ…इन खामोश निगाहों मे,कुछ सपने तो सज़ा लूँ…अरसा गुजर गये हैं,लबों को मुस्काराए हुए…सालों बीत गये “.ज़िंदगी”,तेरा दीदार किये हुए…खो गया है जो बचपन,उसे पास तो बुला लूँ…उन गुज़रे हुए पलों से,इक लम्हा तो चुरा लूँ…जी रहे हैं,हम मगर,जिंदगी

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बरसों बाद लौटें हम...

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बरसों बाद लौटें हम,जब उस,खंडहर से बिराने मे…जहाँ मीली थी बेसुमार,खुशियाँ,हमें किसी जमाने मे…कभी रौनके छाई थी जहाँ,आज वो बदल सा गया है…जो कभी खिला-खिला सा था,आज वो ढल सा गया है…लगे बरसों से किसी के,आने का उसे इंतेजार हो…न जाने कब से वो किसी,से मिलने को बेकरार हो…अकेला सा प

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वो पहला खत मेरा "तेरे नाम का"..........

18 जनवरी 2019
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वो पहला खत मेरा "तेरे नाम का"..........वो पहला खत मेरा “तेरे नाम का”……….मेरी प्यारी (******)हर वक़्त हमें तेरी मौजूदगी का एहसास क्यूँ है,जब याद करता दिल तुझे, तूँ पास क्यूँ है…ये क्या है क्यूँ है,कुछ समझ नहीं आता,तेरे न होने से आज दिल उदास क्यूँ है…कल तेरे न आने से,मैं सा

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कुछ पल और रुक ए -ज़िंदगी

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यादों के पन्ने से…..

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यादों के पन्ने से…..हर शाम….नई सुबह का इंतेजारहर सुबह….वो ममता का दुलारना ख्वाहिश,ना आरज़ूना किसी आस पेज़िंदगी गुजरती थी…हर बात….पे वो जिद्द अपनीमिलने की….वो उम्मीद अपनीथा वक़्त हमारी मुठ्ठी मेमर्ज़ी के बादशाह थे हमथें लड़ते भी,थें रूठते भीफिर भी बे-गुनाह थें हमवो सादगी क

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वो यादें..................

20 जनवरी 2019
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कागज़ की कश्ती बनाके समंदर में उतारा था हमने भी कभी ज़िंदगी बादशाहों सा गुजारा था,बर्तन में पानी रख के ,बैठ घंटों उसे निहारा था फ़लक के चाँद को जब

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"वो रिक्शा वाला"

21 जनवरी 2019
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"वो रिक्शा वाला" "साहेब मुझे छोड़ दो साहेब" "साहेब मुझे छोड़ दो साहेब" बार-बार यही फरियाद करता रहा, वो रिक्शा वाला थानेदार "साहेब" से........... "साहेब मुझे छोड़ दो साहेब" मैं बहुत ही ग़रीब आदमी हूँ "साहेब" माँ-बाप ने जैसे-तैसे क़र्ज़ लेकर

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"हरिया"-एक सच्चाई

21 जनवरी 2019
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"हरिया"-एक सच्चाई एक बूढ़ी दादी दरवाजे से बाहर आई, और रोते हुए मंगरू से बोली, बेटा तुम्हे लड़का हुआ है ! पर बेटा तोहार मेहरारू बसमतिया इस दुनिया से चल बसी, अब इस अभागे का जो है सो तुम्ही हो ! बेचारी इतने सालों से एक औलाद के लिए तरसती रही, इतने सालों बाद भगवान ने उसकी इच्छ

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मेरी शायरी

27 जनवरी 2019
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मैं बह गया क़तरा क़तरा, मैं टुटा जा़र जा़र सा, ये मेरी वफ़ा का ईनाम है, तेरी बेवफाई वजह नहीं...

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देश के खास मंदिर

30 जनवरी 2019
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करणी माता मंदिर इस मंदिर को चूहों वाली माता का मंदिर, चूहों वाला मंदिर और मूषक मंदिर भी कहा जाता है, जो राजस्थान के बीकानेर से 30 किलोमीटर दूर देशनोक शहर में स्थित है। करनी माता इस मंदिर की अधिष्ठात्री देवी हैं, जिनकी छत्रछाया में चूहों का साम्राज्य स्थापित है। इन चूहों में

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गज़ल

7 फरवरी 2019
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जीन्हे भुलने में है.....हमने उम्र गुजारी काश़ हम उन्हें दो वक्त याद आये तो होतें बहाया अश्कों का सागर यादों में जिनके काश़ वो आंसुओं के दो बूंद बहाये तो होतें जीन्हे भुलने में है.....हमने उम्र गुजारी काश़ हम उन्हें दो वक्त याद आये तो होतें

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गज़ल

9 फरवरी 2019
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जीना मुश्किल था कभी जिनका हमारे बीनाआज कल उनके लिए हम बेकार हो गये हैं,हमें देख कर कल निगाहें झुका लीगैरों के लिए आज तैयार हो गये हैं,आज कल उनके लिए हम बेकार हो गये हैं,वो वो नहीं रहें अब जो छूई मूई सा लगा थाआशियाने से निकल कर बाजार हो गये हैं,जो सहेम जाते थें रुह तक,देखकर काफिलामहफ़िलों में आज कल व

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दर्द

15 फरवरी 2019
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यह बात तमाचे कि नहीं जो बापू सा अहिंसावाद रहें वो खून की होली खेल रहें और हम निराशावाद रहें उतर के देखो सियासत से कभी उस घर में कितनी मातम है वो दर्द रूह को छलनी कर दे वो जख्म सालों बाद रहे क्यों मौन साधे यूं बैठे हो फिर तांडव का आगाज करो उन्होंने 40 मारे हैं तुम 400 का शिकार करो नदियां बहा दो खून क

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ग़ज़ल

8 जुलाई 2019
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फन्ना हुई कस्ती मेरी,मेरे आसूओं मे डूबकर,कुछ इस क़दर इश्क़ में रुलाया गया हूँ मैं...https://merealfaazinder.blogspot.com/2019/07/blog-post_73.html

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"गुलज़ार गली" Part-1

8 जुलाई 2019
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"गुलज़ार गली" भाग-१ hindi poem"तुम्हे जाना तो खुद पे हमें तरस आ गया,तमाम उम्र यूँही हम खुद को कोसते रहें"............"गुलज़ार गली" यही नाम था उस गली का....मैने कभी देखा नहीं था बस सुना था, हर किसी के ज़ुबान पे बस उसी गली की चर्चा रहती "गुलज़ार गली" |तकरीबन डेढ़ महीन

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शायरी

26 जुलाई 2019
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नई ज़िंदगी मिल जाती है, उस रोज मैखाने में,आब-ए-चश्म छलक जाते हैं जिस रोज पैमाने में........इंदर भोले नाथ

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वो जून कि गर्मी, वो पीपल का साया

3 अगस्त 2019
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वो जून कि गर्मी, वो पीपल का सायावो यारों की टोली, वो रिश्तों का मायावो मिट्टी का घरौंदा, वो खपरैलों का छतलिए सोंधी सी खुश्बू, वो काग़ज़ का ख़त https://merealfaazinder.blogspot.com/2019/08/blog-post_3.html

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