ये विषय कोई नयी बात नहीं, पर बहस कि तीव्रता जरूर कुछ नयी है । किसान को अन्नदाता का दर्जा देने वाली इन राजनैतिक पार्टियों एवं इनके नेताओ को वोट के सिवाए इस बहस से कुछ और हासिल करना है, इसमें हर किसी को शक है । फिर ये नेता किसी भी पार्टी के क्यों न हों । बहरहाल आजकल आप इस बहस का रोजाना आंनंद ले सकते हैं । ये जरूरी तो नहीं कि हर बहस किसी मुकाम तक जाये और वैसे भी यहाँ कोई राजनीति क बहस को किसी मुक्काम तक पहुच्चाने वाले नेताओं ने यह
देश शायद छोड़ ही दिया है । लेकिन फिर भी यह बहस युवाओं को काफी रोचक लगे, ऐसी सम्भावान्नाए बनी हुई हैं । हो सकता है की कुछ लोग कुछ और नया कर्म करने की ठान ही लें, या फिर कोई समाधान कुछ छाप छोड़ ही दे । राजनीति सम्भावानों के सहारे ही चलती है, इसमें कोई शक नहीं ।हाँ ये जरूर है की इससे नेताओं को नयी परस्थिति का सामना करना पड़ रहा है जिसे हर नेता वाकिफ न हो । और कुछ नेता इस समाज द्वारा रखांकित विचार को पचा पाने में अपने को सक्षम महसूस न करें । इससे नये राज्नीतग्यओं को बढ़ावा ही मिलेगा और ये अच्छी बात है हालाकि यह जरूरी नहीं की उनके पास कुछ समाधान हो। यह बात ये जरूर दर्शाती है की हम बदलाव के एक दौर से गुजर रहे हैं और इस दौर में लोगों को नयी ताकतों से दोस्ती करने के लिये तैयार रहने कि जरूरत है । हो सकता है की इस दौर में राजनैतिक ताकतें भी कुछ नये प्रयोग करें अथवा पुराने विरोधी भी मिलकर कुछ नये आयाम पर विचार करें ।