- अभी सरकारी बैंकों में डिफ़ॉल्ट/बकायेदारों का मामला गर्म है । इसलिए जबावदेही स्वयं बैंक के एग्जीक्यूटिव और शेयरधारक यानी सरकार दें । इसमें कुछ गलत नहीं क्योंकि सीधी जिम्मेवारी तो इन्ही की है, किन्तु क्या रिज़र्व बैंक पूरी तरह से पल्ला झार सकता है । बैंक कानूनी प्रावधानों की दुहाई भी दे रहा है, जबकि ऐसी बात पहले शायद कभी सामने नहीं आई । रिज़र्व बैंक अपने पल्ले से ज़िम्मेवारी-मुक्त है कि सरकारी बैंकों पर उसका अख्तियार अन्य बैंकों की तरह नहीं । रिज़र्व बैंक उन जानरिओं को जो सरकारी विजिलेंस तथा अन्य एजेंसीओं को प्राप्त हो रही है उसपर मशवरा करने या उसे इक्कठा करने को भी तैयार नहीं, क्योंकि जिम्मेवारी सरकार की है । पर जब कुछ वक्त पहले सुप्रीम कोर्ट ने सवाल उठाये थे पर मामला इतना गर्म नहीं था, तब इन्ही बकायेदारों, बैंक एग्जीक्यूटिव और शेयरधारक यानी सरकार को बचाने के लिए रिज़र्व बैंक स्वेच्छा से सामने आया था और खुलासे न करने/होने देने की दुहाई देने में मगन था । ऐसा क्यों था यह एक चिंता का विषय जरूर है, मगर ऐसे कठिन प्रशन पूछना हमारे पत्रकारों के बस की बात नहीं और इस समस्या में शायद उनकी दिलचस्पी भी नहीं । हाँ, लेकिन यदि किसी राजनेता के पुत्र-पुत्री को यदि अदालत से किसी केस में कुछ राहत मिलती है, फिर वो राजनेता सरकार में हो या विपक्ष में, तो यह एक बड़ी खबर बन जाती है । यह पत्रकारिता का नया पैमाना है और इसपर सुप्रीम कोर्ट की फटकार बिलकुल जायज है । बड़े वित्तिय गड्बरी के मामले में खुलासे और कार्यवाही विधिपूर्वक हो तो राजनेताओं के पुत्र-पुत्रीओं से जुड़े इन खुलासों पर, जोकि छोटे होते हैं, लगाम स्वतः ही लगेगी । दरसल ऐसे मामले कुछ हद तक व्यापार ी और उद्योग जगत के हथियार की तरह होते है, पर यह कभी-कभी बड़े भी हो सकते हैं । बजाये इसको समझने के मूर्तिपूजा से प्रेरित हमारे पत्रकार, राजनेताओं और उनके वंशजओं के मामलों को उछालने एवं इस आड़ में राजनेताओं का गुणगान करने अथवा उनकी बुराई करने की अपनी बनाई परंपरा को कायम रखने में व्यस्त रहतें है । इसमें कुछ हद तक यह कोशिश भी होती है की न्यायधीशों पर भी दबाव बनाया जा सके या प्रभावित किया जा सके । लेकिन बड़े मामले में हो रही जांच की अवहेलना या अनदेखी कर, ये जनता की कोई सेवा कर रहें हैं । राजनेता इस परिपार्टी को भली-भांति समझते हैं, पर इस परिपार्टी को त्यागने को तैयार नहीं । हाँ, इन सबके बावजूद लोकतंत्र पर मंडराते खतरे और पत्रकारिता पर बढते खतरों पर नित् नये बयान जरूर प्रचुर मात्रा में बोले जा सकते हैं ।