बैंक घोटाले पर आखिरकार कुछ तो बयान आ ही गया जिसके बारे में मीडिया और नेताओं में अटकलें थी। बस चर्चाओं का दौर शुरू होना बाकी है । सभी अधिकारिओं एवं एजेन्सिओं को अपना काम और बैंक सम्बंधित घोटाले की जांच पूरी निष्ठा के साथ ही करने को कहा गया है । सरकारी कर्मचारी इस निष्ठा शब्द को बखूबी समझते है और यह उनकी कार्यशैली में दिखाई भी देता है, बस देखने वाले को सही चश्मा चाहिए । अब बैंक घोटाले में हो रही प्रतिक्रियाओं को ही देख लीजिये । यहाँ पर हीरा व्यापार के क्षेत्र में हुए घोटाले के केस में, यानि की सिर्फ इन कम्पनिओं के एक प्रकार के क़र्ज़ के सिलसिले में ही सिर्फ ऑडिटरओं को पकड़ना है और बाकिओं में नहीं । यह बात आपके समझदार अधिकारी बखूबी जानते हैं पर आपको समझने की जरूरत है। इसलिए हीरा व्यापार को बैंकों द्वारा दिए गए अन्य क़र्ज़ के सिलसिले में उन्होंने किसी ऑडिटर अथवा बैंक अधिकारी के मिली-भगत की कोई सम्भावना नहीं देखी फिर वो क़र्ज़ चाहे इन्ही घोटाले में संदिग्घ्द व्यापारिओं को ही क्यों न दिया गया हो । और आपके राजनेता और मीडिया के अन्य गणमान्य सदस्य भी इस बात से पूरा इत्तेफाक रखतें हैं । दरसल गड्बरियो में शामिल इन कम्पनिओं को कई और तरह के लोन, कई और बैंकों द्वारा भी मुहैया कराये गए थे । पर वहाँ पर किसी किस्म की कोई तलाश की जरूरत नहीं समझी जा रही है जबकि कम-से-कम एक कम्पनी के ऑडिटर और उसके द्वारा सत्यापित अकाउंट तो शक के दायरे में हैं ही क्योंकि इससे बिलकुल भी पल्ला नहीं झाड़ा जा सकता। क्या अन्य बैंक अपने दिए हुए कर्ज को पूरी जांच-पड़ताल के बाद दे रहे थे और आप भी इस बात को समझ सकतें हैं ?
इसके साथ ही एक और कारोबारी का भी कर्ज-सम्बन्धी समस्या को मीडिया ने उतनी ही शिद्दत के साथ उजागर करने की कोशिश कर रहा है । किन्तु यहाँ पर किसी ऑडिटर या वकील की कोई भी गलती, या किसी भी प्रकार के गलत कागजात या व्यक्तव्य का सत्यापन होने का कोई पेहलू आपके सामने नहीं लाया गया है। इस केस में बिना किसी ऑडिटर के गलत-बयानी के सभी कागजात और व्यक्तव्य सवयं व्यापारी ने बैंक को दिए थे। जो लोग बैंकिंग के जानकार हैं वो ये बात जानतें है की व्यापार जगत को बैंक क़र्ज़ बिना ऑडिटर के द्वारा सत्यापित कागजों के प्राप्त नहीं होता । तो दरसल कंपनी के द्वारा फ्रॉड के सिलसिले में ऑडिटर को भूल जाने का अर्थ है की व्यापार द्वारा दिए हुए सत्यापित कागजों को सही मानना अथवा उसकी वैद्दता स्वीकार करना । दरसल बैंक के ऑडिटरओ और ऑडिटर एक दुसरे की मदद के बिना इस तरह के क़र्ज़ को अंजाम नहीं दे सकते । यहाँ पर कंपनी के ऑडिटर उस तरह के कागज सत्यापित करतें हैं जो बैंक के ऑडिटर को चाहिए और बैंक के ऑडिटर इनकी जांच-परख में हो रही कोताही पर आँख मूंद लेते हैं क्योंकि ये उनके द्वारा ही स्पोंसर की हुआ व्यवसाय है । बैंक के क़र्ज़ सम्बंधित अधिकारी इसे बखूबी समझते हैं चाहे वो इस की जड़ों की गहराई को न भी जानते हों ।
दरसल इस केस के अलावा भी कई अन्य केस, क़र्ज़ में हुए हेर-फेर के मामले, राष्ट्रीय कंपनी लॉ ट्रिब्यूनल में चल रहें है । इनके अलावा भी कई बैंक क़र्ज़ कम्पनीओ द्वारा नहीं चुकाए जा रहे और अब ये परंपरा बढती जा रही है । अगर इन केस में से उन केस को चिन्हित किया जाये जहाँ ऑडिटर ने गड्बरी की है या इसकी संभावना है तो यह एक बड़ी संख्या होगी । और कई ऑडिटर्स के ऊपर कार्यवाही होती है तो कई लोगों पर गाज गिरेगी । यह भी हो सकता है की राजनेताओं पर भी गाज गिरने की नौबत आ जाए क्यों की कोई तो इस बात का खुलासा कर ही सकता है। यह बात बड़ा राजनीति क रूप ले सकती है और इसकी गुंजाईश काफी ज्यादा है क्योंकि कई केस काफी बड़े क़र्ज़ के मामले हैं । इसलिए ये मान लेना की उन सब में ऑडिटर्स का कोई गोरखधंदा होने की कोई गुंजाईश नहीं है, सरकार के लिए ज्यादा श्रेश्यकर समझा जा रहा है और विरोधी दल भी शांत हैं । कम से कम हमारे नेता और मीडिया के गणमान्य लोग तो हम सबको यही समझाना चाहते है और अधिकारी वर्ग की निष्ठा भी सम्पूर्ण रूप से इस बात पर कायम है । इसलिए आप इन भूचालों को न समझने का नाटक करते हुए इस प्रकरण एवं अन्य समस्याओं को सुनकर अपनी जानकारी बढ़ाते रहें ।