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किसी भी लहजे में नहीं

7 जून 2016

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किसी भी लहजे में तो नहीं कहा,
की तुम्हारी कई बातें अच्छी नहीं,
झुंझलाहट भरी थी चुप्पी तेरी,
प्रेम में डूब के कैसे कहता की,
कुछ द्वेष भी तो पलने लगा अंदर,
कैसे बदलने लगा था व्वयहार तेरा,
बदल के तुम वो नहीं रहे अब,
या बदल के अब कैसे हो गए,
यहाँ कौन निर्धारण करेगा,
मेरा या तुम्हारा कर्म हो कैसा,
कोई तो तय नहीं कर सकता समयसीमा,
कौन किससे कबतक जुड़ा रहे,
या छुड़ा के जा सकता है दामन भी,
कैसे उस असंतोष को जताया जाता,
की तुम सहज ही रहे इस बिखराव पर,
और मेरा मन वेदना से भरा था !

किसी भी लहजे में तो नहीं कहा,
कह ही नहीं पाता शायद सामने,
हृदय मैं उठते क्षोभ के लिए बस,
मैं कुछ कवितायेँ ही लिख सका !

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किसी भी लहजे में नहीं ….

12 मई 2016
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किसी भी लहजे में तो नहीं कहा,की तुम्हारी कई बातें अच्छी नहीं,झुंझलाहट भरी थी चुप्पी तेरी,प्रेम में डूब के कैसे कहता की,कुछ द्वेष भी तो पलने लगा अंदर,कैसे बदलने लगा था व्वयहार तेरा,बदल के तुम वो नहीं रहे अब,या बदल के अब कैसे हो गए,यहाँ कौन निर्धारण करेगा,मेरा या तुम्हारा कर्म हो कैसा,कोई तो तय नहीं क

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किसी भी लहजे में नहीं

7 जून 2016
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किसी भी लहजे में तो नहीं कहा,की तुम्हारी कई बातें अच्छी नहीं,झुंझलाहट भरी थी चुप्पी तेरी,प्रेम में डूब के कैसे कहता की,कुछ द्वेष भी तो पलने लगा अंदर,कैसे बदलने लगा था व्वयहार तेरा,बदल के तुम वो नहीं रहे अब,या बदल के अब कैसे हो गए,यहाँ कौन निर्धारण करेगा,मेरा या तुम्हारा कर्म हो कैसा,कोई तो तय नहीं क

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तेरा चेहरा अब …

7 जून 2016
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हृदय का एक कोना,तुम्हारा एक हिस्सा था वहाँ,तेरा चेहरा और कई तस्वीरें,भरने लगा है वो,उलझनों से अब,जद्दोजहत तो होती है,अकेले उन्हें हटाने की,शायद रख पाता तुम्हें पर,तुमने भी कोई कोशिश नहीं की !ऐसे तो बसी है मन में,एक सुन्दर कृति पुरानी,रूखे रूखे रुख ने तेरे,कुछ उसको भी तो घिस दिया,जैसे रेगमाल रगड़ दिया

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