भाग 3
सावित्री घर जाकर बच्चों को खाना खिलाकर रेशमा को दोनों बच्चों को संभालने का कह कर काम पर आ जाती है। शाम को जाते समय भी खाने का इंतजाम हो गया।
उधर आज रामलाल की भी मजदूरी अच्छी हो गई तो बच्चों के लिए मिठाई इत्यादि लेता आया।
आते ही," सावित्री, अरी ओ सावित्री, उसके हाथ पे पैसे रख के, ले आज अच्छी मजूरी मिली है, और देख मिठाई भी लाया हूं, चल सब मिलकर खाएंगे"
"बच्चे खाना खा चुके हैं"
" खाना, मगर कहां से आया खाना"
"मुझे लाला की दुकान पर काम मिल गया"
रामलाल को पता है लाला अच्छा इन्सान नहीं, इसलिए वो सावित्री को वहां काम करने को मना करता है, " लाला की दुकान पर नहीं जाना काम करने, अब मुझे काम मिल गया है, तु कल से काम छोड़ देगी लाला का" हुक्म नामा सुनाते हुए।
मगर सावित्री कहती है कि," अगर वो पहले काम करती होती तो यूं दो दिन तक बच्चे भूख से ना बिलखते। और ना जाने आगे क्या हो, रामलाल का तो दिहाड़ी मजदूरी का काम है, किसी दिन काम मिला, किसी दिन नहीं मिला, एवं लाला की दुकान पर वो अकेली नहीं और भी स्त्रियां हैं काम करने वाली"
इस तरह सावित्री रोज़ काम पर जाने लगी। पहले तो रामलाल को जिस दिन काम ना मिलता उस बहुत दुःखी होता, लेकिन अब उसे कोई खास फर्क ना पड़ता, क्योंकि सावित्री के काम से घर चल जाता।
अब तो शराब पीकर देर रात को आना रामलाल का रोज़ का काम बन गया। जब काम मिलता तो उन पैसों से पी लेता, जब ना काम होता तो सावित्री से ले जाता, इस तरह सावित्री एक तो गर्भ से उस पर मेहनत भी दुगनी करनी पड़ती, एक तो घर का खर्च उस पर रामलाल की शराब का भी खर्च । नित- रोज़ घर में कलह रहती। जैसे-तैसे समय कट रहा था। एक दिन सावित्री को रात को प्रसुति पीड़ा ( लेबर पेन) शुरू हो गया, अस्पताल ले जाया गया। थोड़ी देर में नर्स ने आकर बताया कि लड़की हुई है।