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किसके नाम की मांग भरूं

1 फरवरी 2022

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भाग 3

सावित्री घर जाकर बच्चों को खाना खिलाकर रेशमा को दोनों बच्चों को संभालने का कह कर काम पर आ जाती है। शाम को जाते समय भी खाने का इंतजाम हो गया।
उधर आज रामलाल की भी मजदूरी अच्छी हो गई तो बच्चों के लिए मिठाई इत्यादि लेता आया।  
आते ही," सावित्री, अरी ओ सावित्री, उसके हाथ पे पैसे रख के, ले आज अच्छी मजूरी  मिली है, और देख मिठाई भी लाया हूं, चल सब मिलकर खाएंगे"
"बच्चे खाना खा चुके हैं" 
" खाना, मगर कहां से आया खाना"
"मुझे लाला की दुकान पर काम मिल गया"  
रामलाल को पता है लाला अच्छा इन्सान नहीं, इसलिए वो सावित्री को वहां काम करने को मना करता है, " लाला की दुकान पर नहीं जाना काम करने, अब मुझे काम मिल गया है, तु कल से काम छोड़ देगी लाला का" हुक्म नामा सुनाते हुए।
मगर सावित्री कहती है कि," अगर वो पहले काम करती होती तो यूं दो दिन तक बच्चे भूख से ना बिलखते। और ना जाने आगे क्या हो, रामलाल का तो दिहाड़ी मजदूरी का काम है, किसी दिन काम मिला, किसी दिन नहीं मिला, एवं लाला की दुकान पर वो अकेली नहीं और भी स्त्रियां हैं काम करने वाली"
इस तरह सावित्री रोज़ काम पर जाने लगी। पहले तो रामलाल को जिस दिन काम ना मिलता उस बहुत दुःखी होता, लेकिन अब उसे कोई खास फर्क ना पड़ता, क्योंकि सावित्री के काम से घर चल जाता।
अब तो शराब पीकर देर रात को आना रामलाल का रोज़ का काम बन गया। जब काम मिलता तो उन पैसों से पी लेता, जब ना काम होता तो सावित्री से ले जाता, इस तरह सावित्री एक तो गर्भ से उस पर मेहनत भी दुगनी करनी पड़ती, एक तो घर का खर्च उस पर रामलाल की शराब का भी खर्च । नित- रोज़ घर में कलह रहती। जैसे-तैसे समय कट रहा था। एक दिन सावित्री को रात को प्रसुति पीड़ा (  लेबर पेन) शुरू हो गया, अस्पताल ले जाया गया। थोड़ी देर में नर्स ने आकर बताया कि लड़की हुई है।
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रचनाएँ
किसके नाम की मांग भरूं?
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यह कहानी एक ऐसी औरत पर आधारित है, जिसे बचपन से ही लाल सुर्ख मांग अच्छी लगती थी, उसे मांग भरने का इतना शौंक था कि मांग भरने के मायने ना जानते हुए वो बचपन में खेल-खेल में मांग भरा करती थी, लेकिन किस्मत को कुछ और ही मंजूर था।
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किसके नाम की मांग भरूं --- भाग 2

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भाग 4चौथी बार फिर से बेटी, लेकिन इसके बाद सावित्री ने नसबंदी करा ली। रामलाल ने बहुत झगड़ा किया कि नहीं करानी नसबंदी। लेकिन सावित्री नहीं मानी बोली," एक लड़के की चाह में चार छोरियां हो गई और कितनी

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भाग 5रेशमा ईश्वर से सदा एक ही प्रार्थना करती," हे ईश्वर, मैं खुद तो अनपढ़ हूं लेकिन मैं मेहनत करके अपनी बहनों को पढ़ाऊंगी। मेरी मांग में सिंदूर ऐसे शख्स से भरवाना जो इसकी कद्र भी करें"सावित्री र

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भाग 6सावित्री ने बहुत कोशिश की, कि रेशमा लाला की नज़रों में ना आए, मगर होनी को कुछ और ही मंजूर था। सावित्री की एक ना चली, उसे रेशमा को लाला की दुकान पर काम के लिए लाना पड़ा। सावित्री रेशमा को दिन में

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भाग 7सावित्री उलझन में थी क्या करती अगर रेशमा को लाला के पास भेजती है तो बच्ची की ज़िंदगी खराब हो जाएगी, और अगर नहीं भेजती तो ना जाने क्या करेगा? सावित्री अच्छे से जानती है लाला की नज़र में जो च

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ना तुम बोले ना मैने कुछ कहा

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न तुम बोले न मैंने कुछ कहा आ तुझे मैं थोड़ा सा प्यार कर लूं, ज़माने से छुपकर तेरे कानों में बातें हज़ार कर लूं,सुनकर जिसे तू थोड़ा शरमाए, थोड़ा मुस्कुराए, आ तेरे कानों में कह दूं मैं वो तीन लफ्ज़

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