यह कहानी एक ऐसी औरत पर आधारित है, जिसे बचपन से ही लाल सुर्ख मांग अच्छी लगती थी, उसे मांग भरने का इतना शौंक था कि मांग भरने के मायने ना जानते हुए वो बचपन में खेल-खेल में मांग भरा करती थी, लेकिन किस्मत को कुछ और ही मंजूर था।
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Bahut accha likha aapne 👌👌
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भाग 2 सावित्री सुबह-सुबह लाला की दुकान पर जाती है।"लाला जी राम-राम" सावित्री लाला के सामने हाथ जोड़े, नज़रें झुकाए खड़ी है।लाला अवाक सा सावित्री को देखता ही रह जाता है, उसने इतनी सुन्दर और
भाग 3सावित्री घर जाकर बच्चों को खाना खिलाकर रेशमा को दोनों बच्चों को संभालने का कह कर काम पर आ जाती है। शाम को जाते समय भी खाने का इंतजाम हो गया।उधर आज रामलाल की भी मजदूरी अच्छी हो गई तो बच्चों के लिए
भाग 4चौथी बार फिर से बेटी, लेकिन इसके बाद सावित्री ने नसबंदी करा ली। रामलाल ने बहुत झगड़ा किया कि नहीं करानी नसबंदी। लेकिन सावित्री नहीं मानी बोली," एक लड़के की चाह में चार छोरियां हो गई और कितनी
भाग 5रेशमा ईश्वर से सदा एक ही प्रार्थना करती," हे ईश्वर, मैं खुद तो अनपढ़ हूं लेकिन मैं मेहनत करके अपनी बहनों को पढ़ाऊंगी। मेरी मांग में सिंदूर ऐसे शख्स से भरवाना जो इसकी कद्र भी करें"सावित्री र
भाग 6सावित्री ने बहुत कोशिश की, कि रेशमा लाला की नज़रों में ना आए, मगर होनी को कुछ और ही मंजूर था। सावित्री की एक ना चली, उसे रेशमा को लाला की दुकान पर काम के लिए लाना पड़ा। सावित्री रेशमा को दिन में
भाग 7सावित्री उलझन में थी क्या करती अगर रेशमा को लाला के पास भेजती है तो बच्ची की ज़िंदगी खराब हो जाएगी, और अगर नहीं भेजती तो ना जाने क्या करेगा? सावित्री अच्छे से जानती है लाला की नज़र में जो च
भाग 8सावित्री की ऑंखों से ऑंसुओं की धारा बह निकली, उसने रेशमा को गले से लगा लिया, आज मां-बेटी गले मिलकर बिन लब खोले ऑंसुओं की भाषा में बातें कर रही हैं।अब सावित्री की तरह रेशमा लाला के पास जाने लगी। ए
भाग 9रात को सावित्री लाला की हवेली पर दीपेन बाबु के पास चली गई, लेकिन दीपेन ने आते हुए वही लाला की तरह धमकी दी कि अगर कल से रेशमा को ना भेजा तो छबीली को बुला लेगा।अब रेशमा को छोटी बहन के लिए कुर्बानी
भाग 10लेकिन रेशमा लड़खड़ाती आवाज़ से चौंक गई, " ओ छमिया सुन, ये हमारे अन्नदाता है, इनकी हर बात मानिओ, खुश कर दे हमारे राजा जी को, तुझे बक्शीश देंगे" ये रमेश की आवाज़ थी। रेशमा ने घूंघट हटाक
भाग 11उधर शराब अधिक पीने के कारण रेशमा की शादी के कुछ ही दिनों बाद रामलाल की मौत हो गई थी, इस पर रेशमा को छबीली की चिंता सताने लगी, जो मां और रेशमा के साथ चल रहा था वही जीवन वो बाकी छोटी बहनों को नहीं
अन्तिम भाग 12रेशमा तड़के ही जग जाती थी। आज सूरज सिर पर चढ़ आया, उसने जैसे ही कमरे का दरवाज़ा खोला तो सामने रेशमा की लाश झूल रही थी पंखे के सहारे। उसने रोना-धोना शुरू कर कर दिया सब गांव वाले इकट्ठ
न तुम बोले न मैंने कुछ कहा आ तुझे मैं थोड़ा सा प्यार कर लूं, ज़माने से छुपकर तेरे कानों में बातें हज़ार कर लूं,सुनकर जिसे तू थोड़ा शरमाए, थोड़ा मुस्कुराए, आ तेरे कानों में कह दूं मैं वो तीन लफ्ज़