इस पुस्तक में समसामयिक मुद्दों पर मेरे विचार, जो आज के हालात हैं और जो कल थे। आप इसे पढ़े और अपने विचार व्यक्त करें।
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कैसा जीवन या कितना जीवनजीवन कैसा होना चाहिए या कितना जीवन अर्थात ज़िंदगी होनी चाहिए।बहुत ही अहम सवाल है। कुछ लोग समझते हैं कि ज़िन्दगी अगर लम्बी जीए है तो बहुत अच्छा है, कुछ सोचते हैं कि बेशक जीव
कौन कितने में बिकता हैजी हां सच सुना आप सबने , आप जितने चाहें सम्मान पत्र खरीद सकते हैं। आज के समय में सम्मान पत्र बेचे और खरीदें जाते हैं।लेखन की कोई कीमत नहीं रही, लेखक क्या लिखता है इसकी
युवा दोराहे पर क्यों हैं?सबसे पहले हमें युवा की परिभाषा को समझना होगा। ऑंखों में सतरंगी सपने, पंछी के जैसे उड़ान और उमंग से भरा मन, कुछ कर दिखाने का और दुनिया को मुठ्ठी में करने का साहस, यही है युवा क
झूठी रस्मेंशादी दो लोगों का ही नहीं दो परिवारों का मिलन होता है। इसलिए कभी-कभी दोनों परिवारों की रस्में, रीति-रिवाज अलग भी होते हैं। माना कि हल्दी, मेंहदी इत्यादि रस्में सभी करते हैं मगर कुछ एक
समलैंगिकतासमलैंगिकता एक अहम मुद्दा है, जो कुछ लोगों की नज़र में अपराधिक प्रवृत्ति मानी जाती है, इस विषय पर सभी के अपने-अपने विचार है, कुछ की नज़र में यह रिश्ता जिसे स्त्री समलिंगी को लेस्बियन और
स्त्री पर ही लांछन क्यों ?विचार: आज जब समाज स्त्री और पुरुष को समानता का अधिकार देता हैँ किन्तु फिर भी आज एक स्त्री को देर रात अपने घर लौटता देख हमारा समाज बिना कारण जाने उसे 'बदचलन'
आज की नारी की स्थिति क्या है ??आज की नारी दोराहे पर खड़ी है । मानते हैं कि नारी चाहती है कि वो पढ़ी-लिखी है तो वो अपने हुनर को व्यर्थ ना गँवाए, यूँ चार दीवारी में कैद रह कर अपनी ज़िन्दग
पितृपक्ष अथवा श्राद्ध क्या है?शास्त्रों के अनुसार जब हम पितृपक्ष में अपने पित्रों के निमित्त, अपनी सामर्थ्य अनुसार और श्रद्धा-पूर्वक जो श्राद्ध करते हैं, इससे हमारे मनोरथ पूरे होते हैं और घर-परिवार मे
प्रभुत्व का दीमक चाट रहा समाज कोआज कहने को स्त्री और पुरुष दोनों बराबर है, मगर क्या यह हकीकत में ऐसा है?क्या स्त्री को हर क्षेत्र में बराबरी का अधिकार है? भ्रुण जांच कराया जाता है, और अगर बे
रामधारी दिनकरस्वतंत्रता पूर्व विद्रोही कवि और स्वतंत्रता के पश्चात राष्ट्रकवि माने जाने वाले, छायावादोत्तर कवियों की पहली पीढ़ी के कवि थे।23 सितंबर 1908 सिमरिया घाट बेगुसराय, जिला बिहार, भारत श्
विधवा पुनर्विवाहविधवा पुनर्विवाह एक ऐसा संवेदनशील और महत्वपूर्ण विषय है जिस पर अधिकतर लोग 21 वीं सदी के होते हुए भी नाक मुंह सिकोड़ने लग जाते हैं।विधवा पुनर्विवाह क्यों विवादास्पद है?? पुनर्विवा
हम महमां एक "दम" के#कि दम था भरोसा यार दम आवे ना आवे,छड झगड़ा थे कर ले प्यार दम आवे ना आवे।जी हां दोस्तों हम एक दम अर्थात एक स्वांस के ही हैं केवल, ना मालूम कब हमारा आखिरी स्वास हो इसलिए जो स्वास सम अ
पिरियडस टाॅकमासिक धर्म प्रजनन क्रिया का एक प्राकृतिक हिस्सा है, जिसमें गर्भाशय से रक्त योनि से बाहर निकलता है। ये प्रक्रिया लड़कियों में लगभग 11 साल से 14 साल की उम्र में शूरू होती है। यही कुदरती प्रक
पाखंड या परम्परामाना भारत देश संस्कृति संस्कार और परंपराओं का देश है, मगर जब परंपराएं पाखंड बन जाती है तो बोझ लगने लगती है।कभी परंपरा पाखंड बन जाती है और कभी पाखंड परंपरा बन जाते है, परंपरा कोई