मेरे एक मित्र हैं, मार्क्सवादी विचारधारा के हैं| जब मैं उनके घर मिलने गया तो उनके पिताजी टीवी पर भागवत कथा सुन रहे थे| उन्होंने मेरा स्वागत किया और बिठाया| वे सेवानिवृत्त हो चुके थे| बातों ही बातों में उन्होंने बताया कि भागवत कथा में कृष्ण जन्म की कथा चल रही थी| स्वामी जी बता रहे थे कि जब संसार में अधर्म और पाप बढ़ गया तो सभी देवता ब्रह्माजी के साथ विष्णु भगवान के पास गए और विष्णु ने उन्हें आश्वासन दिया कि वे कंस आदि अधर्मियों का नाश करने के लिए पृथ्वी पर मथुरा में कृष्ण के रूप में अवतार लेंगे| कंस ने अपनी बहन की शादी में आकाशवाणी सुनी थी कि देवकी का आठवां गर्भ तेरा काल होगा| इससे डर कर कंस ने नवदंपत्ति को कारागार में डाल दिया और लगातार छह नवजातों को पैदा होते ही टांगे पकड़ कर एक शिला पर पटक कर मार दिया| सातवाँ गर्भ वासुदेव ने किसी तरकीब से गोकुत पहुंचा दिया और अपनी दूसरी पत्नी रोहिणी को सौंप दिया| आठवां गर्भ कृष्ण के रूप में आया जिसे चमत्कारिक रूप से कारागार से निकालकर गोकुल पहुँचाया और यशोदा की नवजात बालिका से बदलकर ले आए| कंस ने इस बालिका को भी शिला पर पटककर मारना चाहा परंतु वह छूट कर आकाश में जा पहुंची और बोली कि तेरा काल कहीं और पल रहा है|
इस कहानी को सुनकर भौतिक विज्ञानं के प्रोफेसर मेरे मित्र अजीब तरीके से मंद-मंद मुस्कराए| उनके पिताजी यह देखकर क्रोधित हुए और मुझसे शिकायत करते हुए बोले, “ आज के युवा इन दिव्य कहानियो को मजाक समझते हैं और अपने बच्चो को समझाते हैं कि ये सब काल्पनिक हैं|”
मेरे मित्र ने सफाई दी कि मेरे पिताजी भी अपने युवाकाल में मार्क्सवादी रहे हैं और हमें विवेकशील होना सिखाते थे और वैज्ञानिकता पर विश्वास करने का उपदेश देते थे| आज वे वृद्ध हो गए है तो अचानक धार्मिक हो गए| मैं अपने बच्चों को ऐसी गैर-तार्किक और काल्पनिक कहानियों पर विश्वास करने को कैसे बोल सकता हूँ जिनका आज के जीवन से कोई लेना-देना नहीं है|
तब मेरे मित्र के पिताजी बोले, “ देखो बेटा, मेरा बेटा तो कट्टर मार्क्सवादी बन गया है परंतु मैंने अपने ज्ञान और विवेक से पाया है कि ये पौराणिक कहानियों में भी कहीं-न-कहीं वैज्ञानिकता है| मैं मानता हूँ कि आज धर्म में झूठे मक्कार और ढोंगी बाबा-जोगियों की भरमार है परंतु जिन्होंने ये कहानियां सृजित की है वे इनके माध्यम से समाज को और कम ज्ञान वाले व्यक्तियों को कुछ संदेश देना चाहते थे| इनमें जीवन का दर्शन और प्रकृति का सत्य छिपा है| इनके पीछे वैज्ञानिक कारण हैं|”
मैंने भी उनका समर्थन किया तो मेरे मित्र ने पूछा तुम भी इसमें विश्वास रखते हो| मैंने अपने मित्र से कहा, “ देखो मित्र, कृष्ण को हम विष्णु का अवतार मानते हीं ना| विष्णु को हमारे पुराणों में कैसा दिखाया है|”
मित्र बोला, “ वैकुण्ठ में क्षीर सागर में पांच फन वाले शेषनाग पर नीले रंग के देवता शयन करते हुए|”
हाँ, अब बताओ हमारी आकाशगंगा को क्या नाम दिया है और उसका आकार कैसा माना जता है|
मिल्की वे, यह कई आकाशगंगा का समूह है और स्पाइरल व कोइल्ड शेप की है|
हाँ, क्षीर सागर भी मिल्की वे ही है और सर्पिल आकार से तात्पर्य कॉस्मिक स्नेक से है| हार्वर्ड-स्मिथसोनियन सेंटर ऑफ एस्ट्रो-फिजिक्स की नवीनतम खोजों से यह पता चला है कि हमारी आकाशगंगा के लगभग एक लाख सूर्य हैं| पुराणों में शेषनाग को अनंत नाम भी दिया है| जिसका अर्थ इन्फिनिटी से है| शेष का अर्थ भी है कि जब संसार नष्ट हो तो भी वह शेष रहे| यह चित्र इसी को इंगित करता है|”
मित्र बोला, “लेकिन पांच फन .......”
हाँ, सृष्टि किससे निर्मित हुई है? पांच महाभूतों से न|
और विष्णु नीले क्यों ?
नीला आसमान का रंग है जो सर्व-व्यापकता, सर्वत्र-विद्यमान होने और गहराई को प्रदर्शित करता है| अर्थात यह अनंत यानि इन्फिनिटी का प्रतीक है|
लेकिन विज्ञान के अनुसार आसमान का रंग तो नीला नहीं है| यह नीला जरूर दीखता है|
हम विज्ञान के अनुसार जिसे रे लाइट स्केटरिंग कहते हैं, उससे लगभग पांच हजार वर्ष पूर्व मार्केण्डेय पुराण (78.8) में स्पष्ट कहा गया है कि सूर्य की किरणों के छितराव के कारण आकाश नीला प्रतीत होता है|
और विष्णु की नाभि से ब्रह्मा कैसे पैदा होते हैं?
भागवत पुराण के अनुसार सृष्टि के आरंभ में विष्णु की नाभि से कमल पर विराजमान ब्रह्मा उत्पन्न हुए| ब्रह्मा को अपने आसपास अकेलापन और अंधकार ही दिखाई दिया तो उन्हें अपनी उत्पत्ति का प्रयोजन समझ नहीं आया| उन्होंने चारों दिशाओं में देखा| इसलिए उनके चार मुख माने गए| उन्होंने अनुभव किया कि सृष्टि में केवल मैं ही हूँ| इस प्रकार उनमें अहंकार पैदा हुआ| अपनी उत्पत्ति का स्रोत खोजने के लिए उन्होंने कमल की नाल में प्रवेश किया परंतु अनंत तक यात्रा के बाद भी कुछ नहीं मिला| तो उन्हें मृत्यु का भय अनुभव हुआ और वे तप करने लगे अर्थात ध्यान में लीन हो गए| ध्यान से उन्हें विष्णु का साक्षात्कार हुआ अर्थात सृष्टि में समय, अंतरिक्ष और जीव का रहस्य समझ में आया| कमल की नाल नाभि से उत्पन्न होने का अर्थ है- जीव की उत्पत्ति के समय उसका जन्म स्रोत से संबंध| अर्थात ब्रह्माण्ड से जीव का संबंध| जिस क्षण उन्हें समझ आया कि वे अलग नहीं बल्कि परब्रह्मस्वरूप हैं, वे ब्रह्मा कहलाये और उन्होंने अपना कर्म अर्थात सृष्टि की उत्पत्ति आरंभ की|
और ये कृष्ण अवतार की कथा, ये तो काल्पनिक ही है ना|
अवतारम् अर्थात अव+तारम् | अव का तात्पर्य है नीचे आना और तारम् अर्थात तारा या सूर्य| अवतारम् का अर्थ हुआ – जिसके अंतर में प्रकाश रूपी ज्ञान उतर आया हो| कृष्ण इसलिए अवतार पुरुष कहे जाते हैं| और कंस भय और अहंकार का प्रतीक है| उसने देवकी के जो 6 पुत्र मारे उनके भागवत पुराण के अनुसार नाम थे – स्मर, उद्गीथ, परिस्वंग, पतंग, क्षुद्रभृत, एवं घ्रणी| जिनके अर्थ होते हैं – याद, शब्दोच्चार, स्पर्श, प्रकाश, श्रवण और सूंघना| अर्थात ध्यान या तप में प्रथम अनिवार्यता है- मन से सभी स्मृतियों को मिटा कर पांचों इन्द्रियों के विषयों को मारना| इसके बाद आप बलराम सप्तम पुत्र का अर्थ जान सकते है कि इन छह प्रवृत्तियों पर नियंत्रण करके ही आप अनंत तक पहुंच सकते हैं| फिर भी यदि अहंकार नहीं मारा तो ईश्वर की प्राप्ति नहीं होगी| आठवें पुत्र के रूप में कृष्ण आने का अर्थ है- आप तभी ईश्वर को प्राप्त कर सकते हो जब इन सब बाधाओं को पार कर लो| तब आप प्रसन्न और सुखी अर्थात सत्-चित्त- आनंद को प्राप्त होंगे| तब आपको न भय सताएगा, न असुरक्षा की भावना आयेगी| आप अनंत में संगीतमय हो जाएंगे|
मित्र बोला, “ बड़ा ही रोचक ढंग से आपने समझाया| यदि हमारे साधू संत भी इसी शैली में समझाएं तो क्या बात है| परंतु वे पुराणों की कथाएं भावनात्मक और धार्मिक दृष्टि से ही बताते हैं| इससे लोगों में अंध-विश्वास बढ़ता है|
पुराणों की कथाएं प्रतीकात्मक हैं और उन्हें हम पूर्वाग्रह मानसिकता से न देखें बल्कि उनके माध्यम से प्रेषित संदेश पर ध्यान दें|