भारत के प्रधानमंत्री ने संयुक्त राष्ट्र संघ में अपनी बात हिंदी में रख कर और भारतीय विद्या योग की महत्ता जता कर विश्व समुदाय को आश्वस्त किया कि योग आज की आवश्यकता है और अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस 21 जून को हर वर्ष मानाने का निर्णय करवाया| यह विश्व में भारत की पहचान स्थापित करने की दिशा में महत्वपूर्ण कदम है और गर्व करने योग्य है| वास्तव में योग दर्शन व योग वेद का एक उपांग है और इस विषय का प्राचीनतम ग्रन्थ हजारों वर्ष पूर्व महर्षि पतंजलि ने लिखा था। वेद संसार की सबसे प्राचीनतन व ज्ञान, कर्म, उपासना व विज्ञान के यथार्थ ज्ञान का ईश्वरीय प्रेरणा से उत्पन्न रचना है जिसका कोई एक लेखक नहीं रहा| इसी प्रकार गुरूकुल संसार की सबसे प्राचीन शिक्षा पद्धति है| वर्तमान में भी प्राचीन आश्रम शिक्षा पद्धति पर आधारित हमारे गुरूकुल भारत की विश्व में पहचान हैं। लार्ड मैकाले द्वारा पोषित अंग्रेजी शिक्षा से पोषित स्कूलों के होते हुए भी देश भर में गुरूकुल शिक्षा प्रणाली से पोषित सैकड़ों गुरूकुल चल रहे हैं जहां ब्रह्मचारी अर्थात् विद्यार्थी अंग्रेजी व हिन्दी नहीं अपितु संस्कृत में वार्तालाप करते हैं। इससे सिद्ध होता है कि संस्कृत वर्तमान में जनसँख्या द्वारा बोलचाल में काम न लेने के बावजूद कोई मृत व अव्यवहारिक भाषा नहीं अपितु जाती जागती व्यवहारिक भाषा है। गुरूकुल शिक्षा पद्धति का अनुकरण व अनुसरण कर ही संसार में आवासीय प्रणाली के स्कूल स्थापित किये गये हैं जिन्हें आज अधिक महत्वपूर्ण माना जाता है। आने वाले समय में सारा संसार इसे अपनायेगा।
संस्कृत भाषा संसार में सबसे अधिक वैज्ञानिक भाषा है| इसमें मनुष्यों के मुख से उच्चारित होने वाली सभी ध्वनियों को स्वरों व व्यंजनों के माध्यम से लिपिबद्ध किया जा सकता है तथा उसे शुद्ध रूप से उच्चारित किया जा सकता है। संस्कृत के व्याकरण जैसा व्याकरण संसार की किसी भी भाषा में नहीं है। संस्कृत व हिन्दी भाषाओं की वर्णमाला एक है और यह संसार में अक्षर, एक-एक ध्वनि व शब्दोच्चार की सर्वोत्तम वर्णमाला है। संसार की अन्य भाषाओं में यह गुण विद्यमान नहीं है कि उनके द्वारा सभी ध्वनियों का पृथक-पृथक उच्चारण किया जा सके। इ़स कारण से संस्कृत संसार की सभी भाषाओं में शीर्ष स्थान पर है। इस तथ्य व यथार्थ स्थिति को विदेशी विद्वानों ने भी स्वीकार किया है। यह भाषा न केवल भारतीयों व उनके पूर्वजों की भाषा रही है अपितु विश्व के सभी लोगों के पूर्वजों की भाषा रही है जिसका कारण यह है कि प्राचीन काल में तिब्बत में ईश्वर ने प्रथम व आदि मनुष्यों की सृष्टि की थी। वहां धीरे-धीरे जनसंख्या वृद्धि होने व सुख समृद्धि होने पर लोग चारों दिशाओं में जाकर बसने लगे। जो स्थान उन्हें जलवायु व अन्य कारणों से पसन्द आता था वहां अपने परिवार व इष्टमित्रों को ले जाकर बस्ती बसा देते थे। आज हमारे देशवासियों व विदेशियों को यह वर्णन काल्पनिक लग सकता है परन्तु यह वास्तविकता है कि हमारे पूर्वज वेदज्ञान व विज्ञान से पूर्णतः परिचित थे व उसका आवश्यकतानुसार उपयोग करते थे। हां, यह भी सत्य है कि महाभारत काल से कुछ समय पूर्व पतन होना आरम्भ हुआ जो महाभारत काल के बाद बहुत तेजी से हुआ और हमारा समस्त ज्ञान-विज्ञान, हमारे तत्कालीन पूर्वजों के आलस्य प्रमाद व हमारे पण्डितों व पुजारियों की अकर्मण्यता व अध्ययन व अध्यापन आदि सभी अधिकार स्वयं में निहित कर लेने व दूसरों को इससे वंचित कर देने से नष्ट होकर सारा देश अज्ञान, अन्धविश्वासों एवं कुरीतियों से ग्रसित हो गया।
हिन्दी का संस्कृत से माता व पुत्री का सम्बन्ध है। हिन्दी के अधिकांश शब्द और व्याकरण अभिव्यक्तियाँ संस्कृत भाषा से आये हैं। हिन्दी में अपने भावों को बहुत ही सरलता व सहजता से व्यक्त किया जा सकता है। आज हिन्दी ने विश्व में अपना प्रमुख स्थान बना लिया है। अनेक हिन्दी के चैनलों का पूरे विश्व में प्रसारण होता है। हिंदी ने विश्व में संपर्क भाषा का काम संभालना शुरू कर दिया है| यदि हम अपने पड़ोसी देशों चीन, श्रीलंका, पाकिस्तान, बर्म्मा, भूटान व नेपाल आदि पर दृष्टि डाले तो हम पाते हैं कि इन सभी देशों में अपनी-अपनी भाषायें एवं बोलियां हैं परन्तु इनमें जनसंख्या की दृष्टि से यदि किसी भाषा का सबसे अधिक प्रभाव है तो वह प्रथम वा द्वितीय स्थान पर हिन्दी का ही है। अतः यह स्वीकार करने में कोई आपत्ति नहीं है कि संस्कृत की तरह आर्यभाषा हिन्दी भी भारत की विश्व में पहचान है।
आइए, इस पहचान को अपने प्रयासों से मजबूती प्रदान कर देश की सेवा में महत्वपूर्ण योगदान दें और हिंदी को अधिक से अधिक अपनाएं| जय हिंदी, जय हिंद ।