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हिंदी के प्रति अपने अवबोध को सुधारिए

14 अगस्त 2015

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सामान्यतया हम जो भी वास्तविकता देखते हैं उसे अपने ज्ञान, विश्वास, संस्कार, प्रवृत्ति, मान्यताओं और आवश्यकता के आधार पर ढाल लेते हैं या मन में बसा लेते हैं या दिमाग में परिभाषित कर लेते हैं और उस वास्तविकता को उसी प्रकार व्याख्या कर समझते हैं| इसे हम नजरिया या दृष्टिकोण कहते हैं जिसे शुद्ध रूप से अवबोध अर्थात perception कहा जाता है| हमारी आयु, ज्ञानेन्द्रियाँ, संस्कार, समझ-शक्ति और समाज में हम किस भूमिका में हैं जैसे भाई/बहन, पति/पत्नी, विद्यार्थी/शिक्षक, अधिकारी/अधीनस्थ आदि, इन सबका इस अवबोध पर पूरा प्रभाव रहता है| इसी अवबोध के कारण सामान्यतया हम हर सफलता का श्रेय “मेरा श्रम, मैंने किया” जैसे आतंरिक तत्वों को और असफलता का दोष “भाग्य, उसकी गलती, उसने किया” जैसे बाहरी तत्वों को देते हैं| हिंदी अपनाने में भी मेरी राय में हमारा अनुचित अवबोध सबसे बड़ी अड़चन है| सरकारी कामकाज में हिंदी की समुचित प्रगति न हो पाने के लिए हम अक्सर सरकार और तंत्र को दोषी मानते हैं| यह नहीं देखते कि एक हिंदीतरभाषी हिंदी सीख कर कुछ तो हिंदी प्रगति में योगदान दे रहा है लेकिन एक हिंदीभाषी उसमें कितना योगदान दे रहा है| हेलो इफेक्ट एक सिद्धांत है जिसके अनुसार हम किसी एक गुण या अवगुण के आधार पर किसी के सम्पूर्ण व्यक्तित्व के बारे में राय बना लेते हैं| अंग्रेजी और अंग्रेजी के बिना काम नहीं चलेगा- यह अवबोध इसी हेलो इफेक्ट के कारण है| कई बार हमारा अवबोध “कही-सुनी” के आधार पर होता है- जिसे ही हम वास्तविकता समझ लेते हैं| हिंदी के बारे में कई दुराग्रह और अंग्रेजी के लिए कई आग्रह हम भारतीयों के ऐसे ही अनुचित अवबोध का परिणाम प्रतीत होते हैं| अवबोध के कारण ही जो भी सूचना हमें अपने विश्वास और प्रवृत्ति के अनुरूप लगती है, उसे हम पूरी तरह सही मान बैठते हैं और स्वीकार कर लेते हैं और शेष सूचनाओं पर ध्यान ही नहीं देते, अपने दिमाग को बंद कर लेते हैं, अविश्वासी हो जाते हैं, एकतरफा सोचकर तुरत निर्णय पर पंहुच जाते है| जब हमें यह अनुचित अवबोध हो गया है कि केवल अंग्रेजी से ही काम चलेगा तो उस विश्वास और प्रवृत्ति से हम हिंदी की वास्तविकताओं और क्षमताओं को पहचान नहीं पाते| इसलिए हिंदी भाषा अपने आप में सक्षम होते हुए और अधिकतर कर्मचारी हिंदी में निपुण होते हुए भी अंग्रेजी के पिछलग्गू बने रहते हैं, भले ही उसके लिए अंग्रेजी में दक्ष होने की या द्विभाषी कागजात तैयार करने की अतिरिक्त मेहनत करनी पड़े| इसलिए हिंदी के प्रति अपने अवबोध को सुधारने का प्रयत्न अवश्य करें और अधिक से अधिक हिंदी को अपने कामकाज में अपनाएं| जय हिंदी, जय हिंद|

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